हेलो मित्रों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है। आज हम अपने इस वेबसाइट Skinfo.co.ni के माध्यम से इस आर्टिकल में चर्चा करने जा रहे हैं राष्ट्रीय गांधी का युद्ध (1920 – 1947) तक।
राष्ट्रीयता का गांधी युग (1920 – 1947) rashtriyta ka Gandhi Yug (1920 – 1947)
1918 से 1947 तक के काल को राष्ट्रीयता के गांधी युग के नाम से पुकारा जाता है। इसका कारण यह है कि इस संपूर्ण काल में राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व महात्मा गांधी द्वारा किया गया। इस संपूर्ण काल में महात्मा जी के द्वारा भारत की सभी नेता प्राप्ति के लिए प्रमुख रूप से तीन अहिंसक संघर्ष किए गए –
1. असहयोग आंदोलन (1920)
2. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)
3. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
महात्मा जी का भारतीय राजनीति में प्रवेश
महात्मा गांधी ने अपने सार्वजनिक जीवन का प्रारंभ 1893 में दक्षिणी अफ्रीका सरकार की वर्णभेद की नीति का सफल विरोध करते हुए किया। दक्षिणी अफ्रीका में सफल सत्याग्रही की ख्याति प्राप्त कर चुकने के बाद जनवरी 1915 में महात्मा जी भारत आए। भारतीय जनता गांधीजी से प्रभावित थी ही गोखले और फिरोज शाह के देहावसान तिलक की योग्यता और सुरेंद्रनाथ बनर्जी व बिपिन चंद्र पाल आदि नेताओं के उत्साह में कमी हो जाने के कारण भारतीय राजनीति का नेतृत्व स्वतः ही महात्मा गांधी के हाथ में आ गया। अखिल भारतीय राजनीति में प्रवेश से पूर्व महात्मा जी ने चंपारण खेड़ा और अहमदाबाद में सत्याग्रह का सफल प्रयोग किया।
महात्मा गांधी सहयोगी से सहयोगी
महात्मा गांधी के द्वारा भारतीय राजनीति में ब्रिटिश शासन के सहयोगी के रुप में प्रवेश किया गया। इस समय महात्मा जी को ब्रिटिश सरकार की न्याय प्रियता में पूरा पूरा विश्वास था और महात्मा जी ने भारतीय जनता में ब्रिटिश सरकार के युद्ध प्रयत्नों में जन और धन की पूरी पूरी सहायता देने की अपील की। शासन के द्वारा भी उन्हें केसर – ए – हिंद की उपाधि प्राप्त की गई। किंतु इसके बाद कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिसके कारण महात्मा जी सहयोगी से असहयोगी हो गए और उनके द्वारा ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन प्रारंभ किया गया।
असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि
रौलट एक्ट – जैसे-जैसे प्रथम महायुद्ध की समाप्ति समीप आ रही थी भारतीय जनता आशा करने लगी थी कि बेटे सरकार अब उसे स्वराज्य की दिशा में कोई बड़ा पुरस्कार प्रदान करेंगी, लेकिन ब्रिटिश सरकार भारतीय जीवन पर कठोर नियंत्रण बनाए रखने के उपायों पर विचार कर रही थी और इन उपायों के अंतर्गत भारतीय विरोध के बावजूद 18 अप्रैल 1919 को रौलट एक्ट बनाया गया जिसके अनुसार शासन के द्वारा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकता था और कानूनी कार्यवाही किए बिना मनमाने समय तक नजरबंद रखा जा सकता था।
जलियांवाला हत्याकांड – महात्मा जी के द्वारा रौलट एक्ट का विरोध करने के लिए 6 अप्रैल 1919 को संपूर्ण देश में हड़ताल करने का निश्चय किया गया और शहरों तथा गांव में सभी जगह शांतिपूर्ण और सफल हड़ताल रही। सरकार ने दमन चक्र प्रारंभ करते हुए 7 अप्रैल को ही महात्मा जी को गिरफ्तार कर लिया पंजाब में ब्रिटिश सरकार का विरोध करने के लिए विशेष उत्साह था और पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर जनता बर्धमन करने के लिए व्यग्र हो रहे थे। 10 अप्रैल को प्रातः अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर ने बिना किसी कारण के पंजाब के दो प्रसिद्ध नेताओं सत्यपाल और डॉक्टर किचलू को धर्मशाला में नजरबंद कर अमृतसर से निष्कासन के आदेश दे दिए।
जनता ने इसका विरोध किया और स्थिति तनावपूर्ण हो गई रौलट एक्ट और सरकार के इन कार्यों का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक सार्वजनिक सभा हुई। इस सभा में सैनिक शासन के प्रतिनिधि जनरल डायर के द्वारा अनावश्यक और अंधाधुंध गोली वर्षा की गई, जिसके परिणाम स्वरूप 800 व्यक्ति मरे और 2000 घायल हुए। इस हत्याकांड का भारतीय जनमानस पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा इसके बाद भी समस्त पंजाब में सैनिक शासन ने अमानवी अत्याचार किए।
हण्टर कमेटी की रिपोर्ट – जलियांवाला हत्याकांड की जांच करने के लिए हण्टर कमेटी की नियुक्ति की गई थी लेकिन इस कमेटी ने हत्याकांड के लिए उत्तरदायी जनरल डायर को दंड देने की सिफारिश करने के स्थान पर उनके कार्य का अप्रत्यक्ष समर्थन ही किया। ब्रिटिश लार्ड सभा में जनरल डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का शेर कहा और आंग्ल भारतीय प्रेस ने ब्रिटिश राज्य का रक्षक। डिटेल में उसके प्रशंसकों ने उसे एक तलवार व 20000 पौंड की थैली भेंट की। यह सब भारतीयों के जले पर नमक छिड़कना था और इससे उदार भारतीयों को असहनीय ठेस पहुंची।
खिलाफत आंदोलन – विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन टर्की के साथ सेवरीज की संधि की जिसके द्वारा टर्की के सुल्तान के अधिकार छीन लिए गए। इससे टर्की में सुल्तान को अपना खलीफा (धर्मगुरु) मानने वाले भारतीय मुसलमान ब्रिटिश शासन के बहुत अधिक विरुद्ध हो गए और उन्होंने खिलाफत आंदोलन शुरू कर दिया। खिलाफत आंदोलन का आशय था खलीफा (टर्की के सुल्तान) के सत्ता की पुनर्स्थापना का आंदोलन इस प्रकार 1919 के अंदर तक हिंदू और मुसलमान भारत के दोनों ही प्रमुख ब्रिटिश शासन से अत्यधिक रुष्ट हो गए।
असहयोग आंदोलन – सितंबर 1920 में कोलकाता में कांग्रेस का जो विशेष अधिवेशन हुआ उसमें महात्मा जी ने असहयोग आंदोलन संबंधी प्रस्ताव रखा मिसेज एनी बेसेंट, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, मदन मोहन मालवीय, बिपिनचंद्र पाल चितरंजन दास, मि. जिन्ना, नारायण चंदावरकर और शंकर नायर तथा स्वामी सभापति लाला लाजपत राय इस प्रस्ताव के विरुद्ध थे, लेकिन गांधीजी का प्रस्ताव भारी बहुमत से स्वीकृत हो गया। इसके बाद 20 दिसंबर के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव भारी बहुमत से पुनः स्वीकृत हुआ। अधिवेशन के द्वारा गांधी जी को ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध शांति माय और अहिंसक आंदोलन करने के अधिकार प्रदान कर दिए गए।
अस्वीकरण (Disclemar)
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