नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट पर बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे आपातकालीन प्रावधान के बारे में जिसे इंग्लिश में हम (Emergency Provisions) कहते हैं दोस्तों अगर आप छात्र हैं और किसी कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं जैसे यूपीएससी, यूपीसीएससी या यूपीएसएसएससी, एलएलबी, जुडिशियल ऐसे कई कंपटीशन एग्जाम है जिसकी आप तैयारी कर रहे हैं तो उन छात्रों के लिए यह आर्टिकल आपातकालीन प्रावधान पढ़ना अति अनिवार्य है।
दोस्तों संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकालीन प्रावधान उल्लिखित हैं। यह प्रावधान केंद्र को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी रूप से निपटने में सक्षम बनाते हैं। संविधान में इन प्रावधानों को जोड़ने का उद्देश्य देश के संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा करना है।
आपातकालीन स्थिति में केंद्र सरकार सर्वशक्तिमान हो जाता है। तथा सभी राज्य केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाते हैं। यह संविधान में औपचारिक संशोधन किए बिना ही संघीय ढांचे को एकात्मक ढांचे में परिवर्तित कर देते हैं। सामान्य समय में राजनैतिक व्यवस्था का संघीय स्वरूप से आपातकाल में एकात्मक स्वरूप में इस प्रकार का परिवर्तन भारतीय संविधान की अद्वितीय विशेषता है। इस परिपेक्ष में डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था कि:
अमेरिका शहर सभी संघीय व्यवस्थाएं में संघवाद के एक कड़ी स्वरूप में हैं। किसी भी परिस्थिति में यह अपना स्वरूप और आकार परिवर्तित नहीं कर सकते। दूसरी और भारत का संविधान समय एक परिस्थिति के अनुसार एकात्मक व संघीय दोनों प्रकार का हो सकता है। यह इस प्रकार निर्मित किया गया है कि सामान्यतया यह संघीय व्यवस्था के अनुरूप कार्य करता है परंतु आपातकाल में यह एकात्मक व्यवस्था के रूप में कार्य करता है।
संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल को निर्दिष्ट किया गया है:
1. युद्ध, ब्राह्म आक्रमण और सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकाल (अनुच्छेद 352) को राष्ट्रीय आपातकाल के नाम से जाना जाता है, किंतु संविधान में इस प्रकार के आपातकाल के लिए आपातकाल की घोषणा वाक्य का प्रयोग किया है।
2. राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता के कारण आपातकाल को राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद 356 के नाम से जाना जाता है इसे दो अन्य नामों से भी जाना जाता है राज्य आपातकाल अथवा संवैधानिक आपातकाल किंतु संविधान ने इस स्थिति के लिए आपातकाल शब्द का प्रयोग नहीं किया है
3. भारत की वित्तीय स्थायित्व अथवा साख के खतरे के कारण आरोपित आपातकाल वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) कहा जाता है।
राष्ट्रीय आपातकाल (rashtriy aapatkal)
घोषणा के आधार
यदि भारत की अथवा इससे के किसी भाग की सुरक्षा को युद्ध अथवा ब्राह्म आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह के कारण खतरा उत्पन्न हो गया हो तो अनुच्छेद 352 के अंतर्गत राष्ट्रपति, राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है। राजपथ राष्ट्रीय आपात की घोषणा वास्तविक युद्ध अथवा ब्राह्मण आक्रमण अथवा सशक्त विद्रोह से पहले भी कर सकता है यह दुआ समझे कि इनका आसन्न खतरा है।
राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा संपूर्ण देश अथवा केवल इस के किसी एक भाग पर लागू हो सकती है। 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम ने राष्ट्रपति को भारत की किसी विशेष भाग बार राष्ट्रीय आपातकाल लागू करने का अधिकार प्रदान किया है।
किंतु राष्ट्रपति, राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा केवल मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश प्राप्त होने पर ही कर सकता है। इसका तात्पर्य है कि आपातकाल की घोषणा केवल मंत्रिमंडल की सहमत से ही हो सकती है ना कि मात्र प्रधानमंत्री की सलाह से 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बिना मंत्रिमंडल की सलाह के राष्ट्रपति को आपातकाल की घोषणा करने की सलाह दी और आपातकाल लागू करने के बाद मंत्रिमंडल को इस उद्घोषणा के बारे में बताया 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम ने प्रधानमंत्री के इस संदर्भ में अकेले बात करने और निर्णय लेने की संभावना को समाप्त करने के लिए इस सुरक्षा का परिचय दिया है।
उदघोषणा की समाप्ति
राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की उदघोषणा किसी भी समय एक दूसरी उदघोषणा से समाप्त की जा सकती है ऐसी उदघोषणा को संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती।
इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति को ऐसी उदघोषणा को समाप्त कर देना आवश्यक है। जब लोकसभा इसके जारी रहने के अनुमोदन का प्रस्ताव निरस्त कर दें यह सुरक्षा उपाय भी 1978 के 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा पेश किया गया था। संशोधन से पहले राष्ट्रपति किसी उदघोषणा को अपने विवेक से समाप्त कर सकता था तथा लोकसभा का इस संदर्भ में कोई नियंत्रण नहीं था।
उदघोषणा को अस्वीकार करने का प्रस्ताव उदघोषणा के जारी रहने के अनुमोदन के प्रस्ताव से निम्न दो तरह से भिन्न होता है:
- पहला केवल लोकसभा से ही पारित होना आवश्यक है, जबकि दूसरे को संसद के दोनों सदनों से पारित होने की आवश्यकता है।
- पहले को केवल साधारण बहुमत से स्वीकार किया जाता है जबकि दूसरे को विशेष बहुमत से शुभ कार्य किया जाता है।
राष्ट्रीय आपातकाल के प्रभाव
आपात की उदघोषणाके राजनीतिक तंत्र पर तीव्र तथा दूरगामी प्रभाव होते हैं। इन परिणामों को निम्न तीन वर्गों में रखा जा सकता है।
- केंद्र राज्य संबंधों पर प्रभाव,
- लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव,
- मौलिक अधिकारों पर प्रभाव।
राष्ट्रपति शासन( Rashtrapati shasan)
आरोपण का आधार
अनुच्छेद 355 केंद्र को इस कर्तव्य के लिए विवश करती है कि प्रत्येक राज्य सरकार संविधान के प्रबंध व्यवस्था के अनुरूप ही कार्य करेगी। इस कर्तव्य के अनुपालन के लिए केंद्र अनुच्छेद 356 के अंतर्गत राज्य में संविधान तंत्र के विफल हो जाने पर राज्य सरकार को अपने नियंत्रण में ले सकता है या सामान्य रूप में राष्ट्रपति शासन के रूप में जाना जाता है। इसे राज्य आपात या संवैधानिक आपातकाल भी कहा जाता है।
राष्ट्रपति शासन अनुच्छेद 356 के अंतर्गत दो आधारों पर घोषित किया जा सकता है एक तो अनुच्छेद 356 में ही उल्लेखित है तथा दूसरा अनुच्छेद 365 में
1. अनुच्छेद 356 राष्ट्रपति को घोषणा जारी करने का अधिकार देता है, यदि वह आस्वस्त है की वह स्थिति आ गई है कि राज्य सरकार संविधान के प्रावधानों के अनुरूप नहीं चल सकती है। राष्ट्रपति राज्य के राज्यपाल रिपोर्ट के आधार पर या दूसरे ढंग से राज्यपाल के विवरण के बिना भी प्रतिक्रिया कर सकता है।
2. अनुच्छेद 365 के अनुसार यदि कोई राज्य केंद्र द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन कर ले या उसे प्रभावी करने में असफल होता है तो यह राष्ट्रपति, के लिए विधिसंगत होगा कि उस स्थिति को संभाले जिसमें अब राज्य सरकार संविधान की प्रबंध व्यवस्था के अनुरूप नहीं चल सकती।
राष्ट्रपति शासन के परिणाम( Rashtrapati shasan ke parinaam)
जब किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होता हो तो राष्ट्रपति को निम्नलिखित असाधारण शक्तियां प्राप्त हो जाती हैं:
- वह राज्य सरकार के कार्य अपने हाथ में ले लेता है और उसे राज्यपाल तथा अन्य कर्मचारी अधिकारियों की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
- वह घोषणा कर सकता है कि संसद राज्य विधायिका की शक्तियों का प्रयोग करेगी।
- वह वे सभी आवश्यक कदम उठा सकता है, जिसमें राज्य के किसी भी निकाय या प्राधिकरण से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों को निलंबन करना शामिल है।
अतः जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो तो राष्ट्रपति मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्री परिषद को भंग कर देता है। राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति के नाम पर राज्य सचिव की सहायता से अथवा राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी सलाहकार की सहायता से राज्य का प्रशासन चलाता है। यही कारण है कि अनुच्छेद 356 के अंतर्गत की गई घोषणा को राज्य में राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।
अनुच्छेद 356 का प्रयोग( anuchchhed 356 ka prayog)
वर्ष 1950 से अब तक सबसे अधिक बार राष्ट्रपति शासन का प्रयोग किया जा चुका है, अर्थात औसतन प्रत्येक वर्ष में दो बार इसका प्रयोग होता है। इसके अतिरिक्त अनेक अवसरों पर राष्ट्रपति शासन का प्रयोग मनमाने ढंग से राजनैतिक व व्यक्तिगत कारणों से किया जाता है। अतः अनुच्छेद 356 संविधान का सबसे विवादास्पद एवं आलोचनात्मक प्रावधान बन गया है।
सर्वप्रथम राष्ट्रपति शासन का प्रयोग 1951 में पंजाब में किया गया। अब तक लगभग सभी राज्यों में एक अथवा दो अथवा इससे अधिक बारिश का प्रयोग हो चुका है।
राष्ट्रीय आपातकाल एवं राष्ट्रपति शासन में तुलना(rashtriy aapatkalyan Rashtrapati shasan mein tulna)
राष्ट्रीय आपातकाल अनुच्छेद 352 | राष्ट्रीय शासन अनुच्छेद 356 |
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1. यह केवल तब उदघोषित की जाती है जब भारत अथवा इसके किसी भाग की सुरक्षा पर युद्ध, ब्राह्म आक्रमण अथवा सशस्त्र विद्रोह का खतरा हो। | 1. इसकी घोषणा तब की जाती है जब किसी राज्य की सरकार संविधान के प्रावधान के अनुसार कार्य न कर रही हो और इनका कारण युद्ध ब्राह्मण आक्रमण व सैन्य विद्रोह ना हो |
2. इसकी घोषणा के बाद राज्य कार्यकारिणी व विधायिका संविधान के प्रावधानों के अंतर्गत कार्य करती हैं। प्रावधान यह होता है कि राज्य की विधायी एवं प्रशासनिक शक्तियां केंद्र को प्राप्त हो जाती हैं। | 2. इस स्थिति में राज्य कार्यपालिका बर्खास्त हो जाती है तथा राज्य विधायिका या तो निलंबित हो जाती है अथवा विघटित हो जाती है। राष्ट्रपति, राज्यपाल के माध्यम से राज्य का प्रशासन चलाता है तथा संसद राज्य के लिए कानून बनाती है। संक्षेप में राज्य की कार्यकारी व विधाई शक्तियां केंद्र को प्राप्त हो जाती हैं। |
3. इसके अंतर्गत संसद राज्य विषयों पर स्वयं नियम बनाती है अर्थात यह शक्ति किसी अन्य निकाय अथवा प्राधिकरण को नहीं दी जाती है। | 3. इसके अंतर्गत संसद राज्य के लिए नियमित बनाने का अधिकार राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त अन्य किसी प्राधिकारी को सौंप सकती है। अब तक यह पद्धति रही है कि राष्ट्रपति संबंधित राज्य से संसद के लिए चुने गए सदस्यों की सलाह पर विधियां बनाता है। यह कानून राष्ट्रपति के नियम के रूप में जाने जाते हैं। |
4. इसी के लिए अधिकतम समयावधि निश्चित नहीं है। इसे प्रत्येक 6 माह बाद संसद से अनुमति लेकर अनिश्चित काल तक लागू किया जा सकता है। | 4. इसके लिए अधिकतम 3 वर्ष की अवधि निश्चित की गई है। इसके पश्चात इसकी समाप्ति तथा राज्य में सामान्य संवैधानिक तंत्र की स्थापना आवश्यक है। |
5. इसके अंतर्गत सभी राज्यों तथा केंद्र के बीच संबंध परिवर्तित होते हैं। | 5. इसके तहत केवल उस राज्य जहां पर आपातकाल लागू हो तथा केंद्र के बीच संबंध परिवर्तित होते हैं। |
6. इसकी घोषणा करने अथवा इसे जारी रखने से संबंधित सभी प्रस्ताव संसद में विशेष बहुमत द्वारा पारित होने चाहिए। | 6. इसको घोषणा करने अथवा इसे जारी करने से संबंधित सभी प्रस्ताव संसद के सामान्य बहुमत द्वारा पारित होने चाहिए। |
7. यह नागरिकों के मूल अधिकारों को प्रभावित करता है। | 7. या नागरिकों के मूल अधिकारों को प्रभावित करते हैं। |
8. लोकसभा इसकी घोषणा वापस लेने के लिए प्रस्ताव पारित कर सकती है। | 8. इसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है इसे राष्ट्रपति स्वयं वापस ले सकता है। |
आपातकालीन प्रावधानों की आलोचना(aapatkalin pravdhanon ki aalochana)
संविधान सभा के कुछ सदस्यों ने संविधान में आपातकालीन प्रावधानों के संसर्ग के आधार पर आलोचना की है:
1. संविधान का संघीय प्रभाव नष्ट होगा तथा केंद्र सर्वशक्तिमान बन जाएगा।
2. राज्य की शक्तियां (एकल एवं संघीय दोनों) पूरी तरह से केंद्रीय प्रबंधन के हाथ में आ जाएगी।
3. राष्ट्रपति की तानाशाह बन जाएगा।
4. राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता निरर्थक हो जाएंगी।
5. मूल अधिकार अर्थहीन हो जाएंगे और परिणाम स्वरूप संविधान की प्रजातांत्रिक आधारशिला नष्ट हो जाएगी।
राष्ट्रपति शासन लगाना (1951 – 2016) (Rashtrapati shasan Lagana 1951 – 2016)
क्र.सं. | राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश | कितनी बार लगाया गया | किस वर्ष लगाया गया |
---|---|---|---|
1 | आंध्र प्रदेश | 3 बार | 1954,1973,2014 |
2 | अरुणाचल प्रदेश | 2 | 1979,2016 |
3 | असम | 4 | 1979,1981,1982,1990 |
4 | बिहार | 8 | 1968,1969,1972,1977,1980,1995,1999,2005 |
5 | छत्तीसगढ़ | – | |
6 | गोवा | 5 | 1966,1979,1900,1999,2005 |
7 | गुजरात | 5 | 1971,1974,1976,1980,1996 |
8 | हरियाणा | 3 | 1967,1977,1991 |
9 | हिमाचल प्रदेश | 2 | 1977,1992 |
10 | जम्मू एवं कश्मीर | 7 | 1977,1986,1990,2002,2008,2015,2016 |
11 | झारखंड | 3 | 2009,2010,2013 |
12 | कर्नाटक | 6 | 1971,1977,1989,1990,2007,2007 |
13 | केरल | 5 | 1956,1959,1964,1970,1979 |
14 | मध्य प्रदेश | 3 | 1974,1980,1992 |
15 | महाराष्ट्र | 2 | 1980,2014 |
16 | मणिपुर | 10 | 1967,1967,1969,1973,1977,1979,1981,1992 |
17 | मेघालय | 2 | 1991,2009 |
18 | 3 | 1977,1978,1988 | |
19 | नागालैंड | 4 | 1975,1988,1992,2008 |
20 | ओडिशा | 6 | 1961,1971,1973,1976,1977,1980 |
21 | पंजाब | 8 | 1957,1966,1968,1971,1977,1980,1983,1987 |
22 | राजस्थान | 4 | 1947,1967,1980,1992 |
23 | सिक्किम | 2 | 1978,1984 |
24 | तमिलनाडु | 4 | 1976,1980,1988,1991 |
25 | तेलंगाना | – | |
26 | त्रिपुरा | 3 | 1971,1977,1993 |
27 | उत्तराखंड | 2 | 2016,2016 |
28 | उत्तर प्रदेश | 9 | 19661970,1973,1975,1977,1980,1992,1995,2002 |
29 | पश्चिम बंगाल | 4 | 1962,1968,1970,1971 |
II. | संघ शासित प्रदेश | ||
1 | दिल्ली | 1 | 2014 |
2 | 6 | 1968,1974,1974,1978,1983,1991 |
आपात प्रावधान संबंधी अनुच्छेद : एक नजर में( aapat pravdhan sambandhi anuchchhed Ek Najar mein)
अनुच्छेद | विषय वस्तु |
---|---|
352- | आपातकाल की घोषणा। |
353- | आपातकाल लागू होने के प्रभाव |
354- | आपातकाल की घोषणा जारी रहते राजस्व के वितरण से संबंधित प्रावधानों का लागू होना |
355- | राज्यों की बाहरी आक्रमण तथा आंतरिक अव्यवस्था से सुरक्षा संबंधित संघ के कर्तव्य। |
356- | राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता की स्थिति संबंधी प्रावधान |
357- | अनुच्छेद 356 के अंतर्गत जारी घोषणा के बाद विधाई शक्तियों का प्रयोग |
358- | आपातकाल में अनुच्छेद 19 के प्रावधानों का स्थगन। |
359- | आपातकाल में III भाग में प्रदत्त अधिकारों को लागू करना स्थगित रखना। |
359ए – | इस भाग को पंजाब राज्य पर भी लागू करना (निरस्त)। |
360- | वित्तीय आपातकाल संबंधी प्रावधान |
जबकि डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने भी संविधान सभा में आपातकालीन प्रावधानों के बचाव में उनके दुरुपयोग की भावनाओं को व्यक्त किया उन्होंने कहा मैं पूर्ण रूप से इनकार नहीं करता कि इन अनुच्छेदों का दुरुपयोग अथवा राजनीतिक उद्देश्य के लिए इनके प्रयोग की संभावना है।
अस्वीकरण(Disclemar)
दोस्तों हमें पूर्ण आशा है कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ा होगा और विस्तार पूर्वक आप लोगों ने जाना होगा दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने स्टडी के माध्यम से दी है इसलिए या बिल्कुल सही है अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे