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बेरोजगारी की समस्या, परिभाषा, प्रकार, कारण-Berojgari ki Samsya, Paribhasha,karan

नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट भी बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों इस आर्टिकल में हम एजुकेशन रिलेटेड बेरोजगारी की समस्या, परिभाषा, प्रकार, कारण बताने जा रहा हूं। दोस्तों बेरोजगारी की समस्या भारत तथा अन्य देशों में गरीबी की ही भारत एक गंभीर सामाजिक व आर्थिक चुनौती है। जिसके व्यापक परिणाम होते हैं। भारत में जनसंख्या वृद्धि के अनुपात में रोजगार के अवसरों का सृजन नहीं हो रहा है इसलिए वर्तमान में बेरोजगारी की समस्या भयावह रूप धारण कर गई है रोजगार से रहित होने की स्थिति में बेरोजगारी कहा जाता ह

दोस्तों हम इस आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं बेरोजगारी की समस्या, परिभाषा, प्रकार और कारण के बारे में विस्तार पूर्वक-

बेरोजगारी की परिभाषा(Berojgari ki Paribhasha)

बेरोजगारी या बेकारी किसी काम करने के लिए योग्य उपलब्ध व्यक्त की वह अवस्था होती है जिसमें उसकी ना तो किसी कंपनियां, संस्थान के साथ और ना ही अपने ही किसी व्यवसाय में नियुक्ति होती है। दोस्तों बेरोजगारी या बेकारी की परिभाषा कुछ विद्वानों ने अपने अपने शब्दों में दी है।

कार्ल प्रिबाम के अनुसार,´´ बेकारी श्रम बाजार कि वह दशा है जिसके अंतर्गत श्रम शक्ति की पूर्ति कार्य करने के संस्थानों की अपेक्षा अधिक होती है।

फ्लोरेंस ने इसकी परिभाषा देते हुए लिखा है कि,´´ बेरोजगारी या बेकारी उन व्यक्तियों की निष्क्रियता के रूप में परिभाषित की जा सकती है जो कार्य करने के योग्य इच्छुक हैं

काम करने योग्य ओम काम करने के इच्छुक लोगों के लिए आर्थिक अर्थ में कार्य का अभाव ही बेकारी कहलाता है। अंधे, बहरे, लूले, लंगड़े रोगी, बच्चे अथवा अपाहिज व्यक्ति जो काम करने के सर्वथा अयोग्य हैं, बेकार नहीं माने जाते। इसी प्रकार भिखारी वा साधु सन्यासी जो काम करने के इच्छुक नहीं हैं वे भी बेकार नहीं समझे जाते। बेकारी का मूल्य कारण होता है, जितनी संख्या में व्यक्ति उपलब्ध है, उनकी तुलना में कम व्यक्तियों के लिए काम उपलब्ध होना।

उपर्युक्त अर्थ के आधार पर बेकारी के निम्न मुख्य तत्व स्पष्ट होते हैं :

1. किसी भी व्यक्ति को बेकार उस समय कहा जाएगा जब वह काम करने की इच्छा रखता हो और उसे काम ना मिले
2. व्यक्ति में कार्य करने की शारीरिक व मानसिक योग्यता भी होनी चाहिए
3. उसे के द्वारा कार्य पाने के लिए प्रयत्न करना भी आवश्यक है
4. व्यक्ति द्वारा काम करने का उद्देश्य धन अर्जन करना होना चाहिए

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि बेकारी वह अवस्था है जिसमें सारी रिक्वेस्ट से स्वस्थ एवं समर्थ व्यक्ति को जो कार्य करने की इच्छा रखता है प्रचलित दर पर काम नहीं मिलता है।

बेरोजगारी के प्रकार(Berojgari ke Prakar)

बेरोजगारी का कोई एक रूप नहीं, वरन् विभिन्न रूप होते हैं और भारत में बेरोजगारी अपने इन सभी रूपों में है। भारत में बेरोजगारी के प्रकार निम्नलिखित हैं:

1. संरचनात्मक बेरोजगारी – यह बेरोजगारी की वह स्थिति है जब किसी देश में उत्पादन विनियोग तथा प्रभावपूर्ण मांग की कमी से रोजगार के अवसरों में कमी हो जाती है जबकि श्रम व्यक्त में तीव्रतर वृद्धि से लाखों लोग रोजगार की तलाश में दर-दर ठोकरें खाते हैं। भारत में लगभग 5% व्यक्ति संरचनात्मक बेरोजगारी से पीड़ित हैं।

2. छिपी हुई बेरोजगारी – जब श्रमिक वैसे तो काम पर लगा हुआ होता है, परंतु उसके काम में उत्पादन में लगभग कोई वृद्धि नहीं होती। अगर उस श्रमिक को काम से हटा लिया जाए तो, भी कुल उत्पादन में लगभग कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता इससे अदृश्य बेरोजगारी भी कहते हैं।

3. मौसमी बेरोजगारी – जब श्रमिकों को वर्ष भर निरंतर काम नहीं मिल पाता और किसी मौसम विशेष में उन्हें बेकार ही बैठना पड़ता है तो उसे मौसमी बेकारी कहते हैं। जैसे – भारत में रबी और खरीफ की फसलों के बीच की अवधि में मानसून आने तक किसान को बेकार बैठना पड़ता है।

4. अर्द्ध-बेरोजगारी – जब किसी सक्षम व्यक्ति को योगिता अनुसार कार्य न मिलने के कारण उसे कम योग्यता वाले पद्य कार्य में अपनी सेवाएं देने को विवश होना पड़ता है तो वह अर्द्ध बेरोजगारी की स्थिति में होती है।

5. शिक्षित व अशिक्षित बेरोजगारी – जब देश में शिक्षित वर्ग में बेरोजगारी होती है तो उसे शिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है और जब आशिक्षतों में काम करने की इच्छा, शक्ति और क्षमता होने पर भी उन्हें वर्तमान वेतन दर पर रोजगार उपलब्ध नहीं होता है, तो इसे अशिक्षित बेरोजगारी कहा जाता है।

बेरोजगारी के कारण(Berojgari ke karan)

भारत में बेरोजगारी के लिए निम्नलिखित कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी हैं :

1.जनसंख्या में वृद्धि
2.सार्वजनिक क्षेत्र में विनियोग का अभाव
3.सीमित भूमि
4.लघु एवं कुटीर उद्योगों का पतन एवं उनके पुनर्विकास की धीमी गति
5.दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षकों का दृष्टिकोण
6.औद्योगीकरण का अभाव
7.भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन
8.स्वरोजगार के अवसरों की कमी

1. जनसंख्या में वृद्धि – भारत में बेरोजगारी का सबसे महत्वपूर्ण कारण जनसंख्या की तीव्र गति से वृद्धि है। हमारे यहां प्रतिवर्ष 1.64% जनसंख्या बढ़ जाती है। जनसंख्या के तेजी से बढ़ने के कारण श्रम शक्ति के आधिक्य की समस्या उत्पन्न हो गई है। जनसंख्या में इस वृद्धि ने बेरोजगारी की समस्या को गंभीर बनाने में सबसे अधिक योग दिया है।

2. सार्वजनिक क्षेत्र में विनियोग का अभाव – सार्वजनिक क्षेत्र में पूंजी निवेश के बढ़ने से रोजगार में वृद्धि होती है। देश में 1965 के बाद सार्वजनिक विनियोग व सार्वजनिक व्यय वार्षिक वृद्धि दर पहले से कम हुई है, जिसमें इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग को के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ा तथा साथ ही रोजगार के अवसर भी कम बढ़ पाए।

3. सीमित भूमि – जनसंख्या में तो वृद्धि हो रही है किंतु भूमि तो सीमित है। जनसंख्या के बढ़ने से प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि में कमी आती है परिवार में संपत्ति के बंटवारे में भूमि भी बढ़ जाती है भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े अनुत्पादक हो जाते हैं। अरे छोटे-छोटे टुकड़ों पर परिवार के सभी सदस्य कृषि कार्य करते हैं जिसमें ´छिपी बेरोजगारी´ पनपती है।

4. लघु एवं कुटीर उद्योगों का पतन एवं उनके पुनर्विकास की धीमी गति – लघु एवं कुटीर उद्योग मशीनों की सहायता से होने वाले उत्पादन की तुलना में अधिक लोगों को रोजगार दे पाते हैं। कच्चे माल की कमी वित्तीय साधनों के अभाव तथा बड़े उद्योगों के सामने ना टिक पाने के कारण सुनियोजित कारीगर तथा मजदूर भी बेरोजगारी के शिकार हो गए। यद्यपि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन उद्योगों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन विभिन्न कारणों से इनका अपेक्षित विकास नहीं हो पाया है।

5. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली तथा शिक्षकों का दृष्टिकोण – भारत में विश्वविद्यालयी शिक्षा सैद्धांतिक ज्यादा है और व्यवसाय या व्यावहारिक कम। विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त करने के पश्चात भी आज का युवक किसी भी व्यवसाय के अनुकूल अपने आप को नहीं बना पाता। इसके अतिरिक्त शिक्षित व्यक्तियों का दृष्टिकोण भी बेरोजगारी के लिए उत्तरदायी है।

6. औद्योगीकरण का अभाव – भारत में औद्योगिकीकरण की गति बड़ी मंदिर रही तथा देश में आधारभूत उद्योगों के अभाव तथा पूंजी एवं तकनीकी ज्ञान के अभाव के कारण औद्योगिक पिछड़ना बन रहा। परिणामतया गैर-कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित रहे।

7. भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन – विभाजन के समय पाकिस्तान में शरणार्थी आए। इसके बाद भी दक्षिण अफ्रीका, म्यांमार तथा श्रीलंका से प्रवासी भारतीयों की वापसी हुई। तिब्बत से दलाई लामा के साथ तिब्बती तथा पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिंदुओं का आगमन हुआ।

8. स्वरोजगार के अवसरों की कमी – भारत में जनता की मानसिकता सरकारी रोजगार पाने की है। स्वरोजगार में असुरक्षा की भावना प्रबल होती है। स्वरोजगार हेतु पर्याप्त वित्तीय साधन कौशल विकास तथा पहल की कमी उल्लेखनीय है।

अन्य कारण – स्त्रियों तथा सेवा निवृत्त व्यक्तियों द्वारा रोजगार की तलाश के कारण भी अन्य व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर कम हो गए हैं। इसके अलावा देश में बचत व विनियोग की निम्न दर, निम्न आय स्तर, प्रभावपूर्ण मांग अभाव, ऊंचे मूल्यों के कारण वस्तुओं की मांग का कम होना तथा भारतीयों में स्वदेशी माल के उपयोग की कमी रुचि, आज कारणों ने बेरोजगारी को बढ़ाने में योग दिया है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों यह पोस्ट हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर लिखा है इसीलिए यह आर्टिकल काफी हद तक सही है। अगर इस आर्टिकल में आप सबको कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।

Written by skinfo

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