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भारत में जनजातियां समस्याएं तथा उसका समाधान(Bharat men janjatiya Samsyaye Tatha uska Samadhan)

नमस्कार मित्रों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है। आज हम बात करने जा रहे हैं इस आर्टिकल में भारत में जनजातियां समस्याएं तथा उसका समाधान के बारे में दोस्तों स्थानीय आदिम समुदायों के किसी भी समूह को जो कि एक सामान्य क्षेत्र में रहता हो, एक सामान्य भाषा बोलता है। और एक सामान्य संस्कृत का अनुसरण करता हो एक जनजाति कहते हैं। तो चलिए दोस्तों अब हम जानते हैं। विस्तार पूर्वक भारत में जनजातियां समस्याएं तथा उसके समाधान के बारे में सबसे पहले दोस्तों मैं आप सबको जनजाति के बारे में बताएंगे कि जनजाति किसे कहते हैं।

जनजाति(Janjati)

गोत्र का एक विस्तृत रूप जनजाति हैं।यह खानाबदोशी जत्थे, झुंड, गोत्र, भ्रातृ दल एवं आदर्श अधिक विस्तृत एवं संगठित होती है। जनजातियों को आदिम समाज आदिवासी वन निजात गिरिजन एवं अनुसूचित जनजाति आदि नामों से पुकारा जाता है। जातियों को अनुसूचित जनजाति इसलिए कहा जाता है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत उल्लिखित सूची में जनजातियों के नाम सम्मिलित कर उन्हें जनजाति की कानूनी मान्यता प्रदान की जाती है। राष्ट्रपति संबंधित राज्य के राज्यपाल से परामर्श कर किस अनुसूची में संशोधन कर सकता है। सभी नामों में जन्मजात नाम ही सर्वाधिक उपयुक्त है। भारतीय संविधान के अधिकारी के हिंदी पाठ में इन्हें जनजाति का नाम ही दिया गया है।

जनजाति की परिभाषा(Janjati ki Paribhasha)

जनजाति की कुछ परिभाषाएं विद्वानों ने अपने अपने शब्दों में दिया है।

गिलिन (Gilin) के अनुसार – स्थानीय आदिम समुदायों के किसी भी समूह को जो कि एक सामान्य क्षेत्र में रहता हो, एक सामान्य भाषा बोलता हो और एक सामान्य संस्कृत का अनुसरण करता हो एक जनजाति कहलाता है।

डॉ मजूमदार (Dr. Majoomdar)के अनुसार – एक जनजाति परिवारों या परिवारों के समूह का संकलन होता है जिनका एक सामान्य नाम होता है जिसके सदस्य एक निश्चित भू-भाग में रहते हैं, सामान्य भाषा बोलते हैं और विवाह व्यवसाय उद्योग के विषय में निश्चित निषेधात्मक नियमों का पालन करते हैं और पारस्परिक कर्तव्यों की एक सुविकसित व्यवस्था को मानते हैं, जनजाति कहलाता है।

भारतीय संदर्भ में जनजातीय कैसा क्षेत्रीय मानव समूह होता है जिसके अपने रीति – रिवाज व्यवहार, जीवन के प्रति विशेष दृष्टिकोण तथा इन सब के योग के रूप में एक संस्कृत होती है, जिनकी एक भाषा और सामाजिक संगठन होता है तथा जो सामान्यतय: अन्तर्विवाह के नियमों का पालन करता है। भारत की अन्य जातियों, वर्गों और क्षेत्रों की तुलना में जनजातियां और उनसे जुड़े क्षेत्र भौतिकवाद और आधुनिकीकरण के प्रभाव से अपेक्षाकृत दूर है। कानूनी दृष्टि से जनजातियों की सूची घोषित करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति को है।

जनजाति के विशेषताएं या लक्षण(Janjati ke Visheshtaye ya Lakshan)

1.समान्य भू – भाग – एक जनजाति एक निश्चित भूभाग में ही निवास करती है।

2. विस्तृत आकार- एक जनजाति कई परिवारों वंश और गोत्र का संकलन होता है।

3. एक नाम- प्रत्येक जनजाति का कोई नाम अवश्य होता है जिसके द्वारा वह पहचानी जाती है मुंडा, कोल, भील, भोटिया, गारो, संथाल, मीणा, मुरिया, गोंड, खासी, कोरवा, बैगा, नागा और गरासिया लोहार: भारतीय संघ के विभिन्न राज्यों के क्षेत्रों से जुड़ी कुछ प्रमुख जनजातियों के नाम हैं।

4. सामान्य भाषा- एक जनजाति के लोग अपने विचारों का आदान – प्रदान करने के लिए जनजाति की अपनी एक सामान्य भाषा का प्रयोग करते हैं। वर्तमान समय में बाहरी जगत के साथ संपर्क के साथ कई जनजातियां द्विभाषी हो गई हैं।

5.अन्तर्विवाह- एक जनजाति के सदस्य अपने ही जनजाति में विवाह करते हैं।

6. सामान्य निषेध- सामान्य संस्कृत से ही जुड़ी हुई बात यह है कि एक जन्मजात खान-पान, विवाह, परिवार और व्यवसाय आदि से संबंधित कुछ सामान्य निषेधों का पालन करती है।

7. सामाजिक संगठन- सामान्यतया प्रत्येक जनजाति का अपना एक निजी सामाजिक संगठन होता है। संगठन का प्रमुख अधिकांशतया एक वंशानुगत मुखिया होता है, कहीं-कहीं मुखिया की सहायता के लिए वयोवृद्ध लोगों की एक परिषद भी होती है। या संगठन परंपराओं का पालन कराने नियंत्रण बनाए रखने और नियमों का उल्लंघन करने वालों को दंडित करने का कार्य करता है। इस दृष्टि से कुछ अध्ययनकर्ता इसे राजनीतिक संगठन का नाम देते हैं।

लेकिन भारत में संविधान के अंतर्गत किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए निम्न मापदंड अपनाए जाते हैं:

1.व्यक्तित्व व्यवहार के प्राचीन गुण 2. विशिष्ट संस्कृति 3.ब्राह्म समुदाय से संपर्क में हिचक 4.भौगोलिक अलगाव।

भारत में अनुसूचित जनजातियों की संख्या(Bharat men Anusuchit Janjati ki Sankhya)

1941 में जनजातियों की जनसंख्या लगभग ढाई करोड़ थी भारत के विभाजन से कुछ जनजातीय क्षेत्र पाकिस्तान में चले गए, अतः 1951 में इनकी जनसंख्या लगभग 1 करोड़ 91 लाख रह गई। अन्य जातियों और वर्गों के समान ही जनजातियों की जनसंख्या में भी निरंतर वृद्धि हुई और 2011 ई. की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जनजातीय जनसंख्या 10.42 करोड़ हो गई जो देश की कुल जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत हैं। इस प्रकार आज जनजातियां भारत की समस्त जनसंख्या का 8.6 प्रतिशत है। राज्यों में जनजातियों का सर्वाधिक प्रतिशत मिजोरम में है भारतीय संविधान के दिशा निर्देशों के अंतर्गत निर्मित केंद्र सरकार की सूची में 560 जनजातियों का उल्लेख है जो विभिन्न राज्यों के ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों में निवास करती हैं।

भारतीय संघ के कुछ राज्यों में जनजाति जनसंख्या अधिक है और कुछ राज्यों में कम। झारखंड और छत्तीसगढ़ में जनजातीय जनसंख्या सर्वाधिक है। इसके बाद ओडिशा (उड़ीसा), बिहार, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, आंध्रप्रदेश तथा असोम राज्य आते हैं। उत्तर प्रदेश, केरल एवं तमिलनाडु में जनजातीय जनसंख्या अपेक्षाकृत कम है।

यदि भारतीय संघ के किसी विशेष राज्य की जनसंख्या में जनजातीय जनसंख्या के प्रतिशत की दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो मणिपुर, मेघालय, नागालैण्ड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम ऐसे राज्य हैं, जिनकी समस्त जनसंख्या में जनजाति जनसंख्या का अनुपात 20 प्रतिशत से अधिक है। मेघालय नागालैण्ड और अरुणाचल प्रदेश राज्यों में तो जनजातीय जनसंख्या राज्य की समस्त जनसंख्या की लगभग 50 प्रतिशत या 50 प्रतिशत से अधिक है।

भारतीय जनजातीय समस्याओं के कारण(bhartiy Janjatiy Samsyaon ke karan)

भारतीय जनजातियों में व्याप्त विविध समस्याओं के मूल कारण निम्न प्रकार हैं

1. निर्धनता अज्ञान और विकास के लाभ जनजातियों तक ना पहुंचना- जनजातीय समस्याओं का भी मूल कारण तो वही है, जो देश में सर्वत्र व्याप्त स्थिति और समस्याओं का मूल कारण है। जनजातियां भारतीय समाज के अन्य किसी भी वर्ग की तुलना में निर्धनता और अज्ञानता से अधिक पीड़ित हैं। इस निर्धनता और अज्ञानता के कारण समाज के संपन्न वर्ग, व्यापारी वर्ग, नौकरशाह और राजनीतिज्ञ उनका मनमाना शोषण करते हैं। भारत सरकार और राज्य सरकारों ने अब तक जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए अनेकानेक हजारों करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की है, लेकिन इन धनराशियों का उचित उपयोग नहीं हुआ है। इन धनराशियों का एक बड़ा भाग नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के हाथों से आगे नहीं बढ़ पाया।

2. पृथक और दूर-दराज क्षेत्रों में निवास- भारत की लगभग सभी जनजातियां पहाड़ों, जंगलों और दूरदराज क्षेत्रों में निवास करती हैं जहां उनका अन्य लोगों से संपर्क नहीं हो पाता। पृथक एवं दुर्गम निवास के कारण उनकी प्रकृति पर निर्भरता बढ़ गई है और जीवन यापन के साधन उन्हें स्वयं ही उठाने पड़ रहे हैं। साधनों के अभाव के कारण व ज्ञान विज्ञान और भौतिक विकास की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाए।

3. नयी प्रशासन व्यवस्था और प्रशासक वर्ग- ब्रिटिश शासन से पूर्व सभी जनजातीय राजनीतिक दृष्टि से स्वायत्त इकाइयां थी वह अपनी भूमि तथा जंगलों की स्वामी थीं।तथा आवश्यकता अनुसार उनका उपयोग करती थी, किंतु अंग्रेजों ने संपूर्ण देश पर एक समान राजनीतिक व्यवस्था लागू की, जिसके द्वारा जनजातियों के अधिकार सीमित कर दिए गए तथा उनके द्वारा की जाने वाली स्थानांतरित खेती एवं वन उपज के उपयोग और उपभोग पर रोक लगा दी गई। फिर स्वतंत्रता प्राप्ति और लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के बाद भी स्थिति में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं आया। प्रणामतया जनजातियों प्रशासक वर्ग के बीच गहरी खाई पैदा हो गई तथा जनजातियों के जीवन में अनेक नई समस्याओं ने जन्म ले लिया।

जनजातीय समस्याएं(Janjatiy Samsyaye)

कुछ विद्वानों ने जनजातियों की समस्याओं का व्यापक अध्ययन किया है इनमें प्रमुख हैं डॉक्टर घुरिए, बेरियन, एल्बिन, एन. के.बोस, एस. सी. दुबे और मजूमदार एवं मदान आज इन सभी अध्ययनों पर आधारित जनजातियों की समस्याओं का एक संक्षिप्त अध्ययन किया है जो इस प्रकार है:

1. दुर्गम निवास स्थान समस्या- अधिकांश जनजातियां पहाड़ी भागो जंगलों दलदल भूमि और ऐसे स्थानों में निवास करती हैं जहां सड़क को का अभाव और यातायात एवं संचार के आधुनिक साधन अभी वहां उपलब्ध नहीं हो पाए हैं।

2. आर्थिक समस्याएं- निर्धनता प्रमुख आर्थिक समस्या है तथा जनजातीय क्षेत्रों में या समस्या लंबे समय से चली आ रही है।

3. स्थानान्तरित खेती के चलन और स्थानान्तरित खेती के अन्त से उत्पन्न समस्या- भूमि समित होने,भूमि का अभाव होने के कारण लंबे समय तक स्थानान्तरित खेती को नहीं अपनाया जा सकता इसके अतिरिक्त भूमि संबंधी नवीन व्यवस्था के कारण बंपर से जनजातियों का अधिकार समाप्त हो गया।

4. जंगलों पर स्वामित्व के अंत से उत्पन्न समस्या- पहले जनजातियों का जंगलों पर स्वामित्व होता था तथा वह जंगलों से प्राप्त लकड़ी और अन्य वस्तुओं के आधार पर अपनी आजीविका चलाते थे परंतु अब सरकार की नई नीति के कारण जंगलों को काटना मना कर दिया गया तथा अनेक क्षेत्रों में शिकार करने और शराब बनाने पर भी रोक लगा दी गई ऐसी स्थिति में जनजातियों के लोगों को कम मजदूरी पर ठेकेदारों साहूकारों और उद्योगपतियों के यहां काम करने के लिए बाध्य होना पड़ा

जनजातियों की समस्याओं का समाधान(Janjatiyo ki Samsyaon ka Samadhan)

जनजातियों की समस्याओं को हल करने के लिए बुद्धिजीवियों द्वारा समय-समय पर सुझाव दिए गए हैं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा कुछ कार्य किए किए गए हैं तथा भारत सरकार और राज्य सरकारों द्वारा कुछ समय समय पर विविध प्रयत्न किए गए हैं

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भारतीय संविधान स्वतंत्रता समानता भ्रातृत्व और न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है अतः संविधान के नीति निदेशक तत्वों में कहा गया है कि राज्य कमजोर वर्ग के लोगों विशेषकर अनुसूचित जातियों व जनजातियों के शैक्षणिक तथा आर्थिक हितों को बढ़ावा देगा तथा उन्हें सामाजिक अन्याय एवं शोषण से सुरक्षा प्रदान करेगा

भारत सरकार जनजातियों के लिए संविधान संविधान के अंतर्गत व्यवस्था की है, जो इस प्रकार है-

1.संविधान के बारहवें भाग के 275 अनुच्छेद के अनुसार केंद्रीय सरकार राज्यों को जनजातीय कल्याण एवं उनके उचित प्रशासन के लिए विशेष धनराशि देगी।

2. अनुच्छेद 164 में यह व्यवस्था है कि 4 राज्यों- मध्यप्रदेश ओडिशा (उड़ीसा), झारखंड तथा छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार में अनुसूचित जनजातियों की देखभाल के लिए एक अलग मंत्री की नियुक्ति की जाएगी

2.सोलहवें भाग के 330 व 332वें अनुच्छेद– मैं लोकसभा एवं राज्य विधानसभा में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित किए गए हैं फरवरी 2008 में लागू की गई परिसीमन आयोग रिपोर्ट की

4.335वां अनुच्छेद आश्वासन देता है कि सरकार नौकरियों में इनके लिए स्थान सुरक्षित रखेगी।

5.338अ अनुच्छेद में राष्ट्रपति द्वारा जनजातियों के लिए अलग आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई है। यह आयोग प्रतिवर्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा।

6. पांचवीं अनुसूची में जनजातीय सलाहकार परिषद की नियुक्ति की व्यवस्था है जिसमें अधिकतम 20 सदस्य हो सकते हैं जिनमें से तीन चौथाई सदस्य राज्य विधानसभाओं के अनुसूचित जनजातियों के होंगे।

निष्कर्ष(conclusion)

दोस्तों इस आर्टिकल को पूरा पढ़ने के बाद निष्कर्ष निकलकर या आता है कि भारत विविधताओं से परिपूर्ण एक विशाल देश है। यहां अनेक धर्मों के अनुयायी विभिन्न प्रजातियां और जातियों से जुड़े व्यक्ति रहते हैं। विविधताओं का एक अन्य रूप विकास के प्रसंग में गंभीर क्षेत्रीय विषमता यह तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वयं एक संदर्भ में 1966 में कहा था हम एक ही साथ अनेक सदियों में रह रहे हैं(We are living together in many centuries)।एक और मुंबई, दिल्ली और अन्य महानगरों की कुछ विकसित औद्योगिक बस्तियां हैं जो व्यक्ति विश्व के शहरों के साथ प्रतियोगिता करने की होड़ में लगी है, दूसरी और विभिन्न राज्यों में ऐसे क्षेत्र जहां शहरी जीवन की सुविधाओं में प्रवेश भी नहीं किया है। इन क्षेत्रों को देखकर ऐसा लगता है कि हमने अभी 21वी सदी में प्रवेश भी नहीं किया है। अधिकतर जनजातियां और जनजाति जनसंख्या का एक बड़ा भाग ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों में निवास करता है जहां सभ्यता का प्रकाश बहुत थोड़े आंसुओं में ही पहुंचता है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों या पोस्ट हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर लिखा है। इसलिए यह काफी हद तक सही है अगर इसमें आपको कोई मिस्टेक दिखाई देता है, तो आप कमेंट करके बता सकते हैं।

Written by skinfo

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