नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से आप सबको बताएंगे कि भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं।संविधान जीवन का वह मार्ग है जिसे राज्य ने अपने लिए अपनाया है। प्रत्येक राज्य का किसी-ना-किसी रूप में संविधान अवश्य ही होता है और संविधान का यह रूप देश की परिस्थितियों के अनुसार होता है। प्रत्येक राज्य की परिस्थितियां भिन्न होने के कारण उस देश के संविधान की भी कुछ विशेष बातें होती हैं जिन्हें संविधान की विशेषताएं कहा जाता है। दोस्तों भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:
नम्बर | भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं |
1. | लोग प्रभुता पर आधारित संविधान |
2. | लिखित और सर्वाधिक व्यापक संविधान |
3. | संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य |
4. | समाजवादी राज |
5. | कठोरता और लचीलापन का समन्वय |
6. | धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना |
7. | एकात्मकता की ओर झुका हुआ संघात्मक शासन |
8. | संसदात्मक शासन व्यवस्था |
9. | मूल अधिकार और मूल कर्तव्य |
10 | नीति निदेशक तत्व |
11 | स्वतंत्र न्यायपालिका और अन्य स्वतंत्र अभिकरण |
12 | संसदीय प्रभुता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय |
13 | सांप्रदायिक निर्वाचन क्षेत्रों की समाप्ति |
14 | वयस्क मताधिकार का प्रारंभ |
15 | अल्पसंख्यक तथा पिछड़े हुए वर्गों के कल्याण की विशेष व्यवस्था |
16 | एकल नागरिकता |
17 | सामाजिक समानता की स्थापना |
18 | संकटकालीन प्रावधान |
19 | कल्याणकारी राज्य की स्थापना का आदर्श |
20 | एक राष्ट्रभाषा की व्यवस्था |
21 | ग्राम पंचायतों की स्थापना |
22 | विश्व शांति का समर्थक |
1.लोक प्रभुता पर आधारित संविधान(Lok prabhuta per Adharit Sanvidhan)
भारतीय संविधान लोकप्रिय संप्रभुता पर आधारित है अर्थात यह भारतीय जनता द्वारा निर्मित संविधान है और इसमें अंतिम सत्य भारतीय जनता को ही प्रदान की गई है। संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है: हम भारत के लोग दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर 1949 को एतद द्वारा संविधान को अंगीकृत अधिनियमित एवं आत्मार्पित करते हैं।
2. लिखित और सर्वाधिक व्यापक संविधान( Likhit aur sarvadhik vyapak sanvidhan)
भारत के संविधान के अधिकांश बातें लिखित हैं और इसका निर्माण एक विशेष समय पर हुआ है। इसके अतिरिक्त या विश्व के अन्य सभी देशों के संविधान से व्यापक है। वर्तमान समय में भारत के संविधान में 395 धाराएं 12 अनुसूचियां (Sechedules) और चार परिशिष्ट है जबकि अमेरिका के संविधान में केवल 7 ही धाराएं हैं।
3. संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतांत्रिक गणराज्य( sampurn prabhutw sampann loktantrik ganaraj)
संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य है
संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न– भारत एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य है, इसका तात्पर्य है कि हमारा राज्य आंतरिक और बाहरी दोनों ही प्रकार से सर्वोच्च सत्ताधारी है। आंतरिक प्रवक्ता का तात्पर्य है कि भारत क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों और भारत राज्य में स्थित सभी समुदायों पर भारत राज्य को अधिकार प्राप्त है और बाहरी प्रभुता का तात्पर्य है कि भारत किसी विदेशी राज्य के अधीन नहीं है तथा दूसरे राज्यों से वह अपनी इच्छा अनुसार संबंध स्थापित कर सकता है। 15 अगस्त 1947 के पूर्व भारत को या स्थिति प्राप्त नहीं थी।
लोकतांत्रिक- भारत एक लोकतंत्रात्मक राज्य है अर्थात भारत में राज्य सत्ता जनता में निहित है। जनता को अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने का अधिकार होगा
जो जनता के स्वामी ना होकर सेवक होंगे। इस राज्य में साधारण नागरिक राज्य के सबसे बड़े पद को धारण कर सकता है।
गणराज्य– गणराज्य का आशय यह है कि राज्य का अध्यक्ष निर्वाचित व्यक्ति हो। भारत एक पूर्ण गणराज्य है, क्योंकि भारतीय संघ का अध्यक्ष एक सम्राट ना होकर जनता द्वारा निर्वाचित राष्ट्रपति है।
4. समाजवादी राज्य( Samajwadi Rajya)
संविधान सभा में इस बात पर पर्याप्त वाद – विवाद हुआ था कि भारत के द्वारा समाजवादी को राज्य दर्शन के रूप में स्वीकार किया जाए अथवा नहीं। अंत में यही सोचा गया था कि किसी एक विशेष दर्शन को स्वीकार करने से नवीन विवादों को जन्म मिलेगा लेकिन इस बात पर सभी भारतीय सहमत रहे हैं कि भारत के लिए समाजवाद का मार्ग ही उपयुक्त हो सकता है। इस सामान्य भावना को स्वीकार करते हुए ही 42 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा प्रस्तावना में भारत को समाजवादी राज्य घोषित किया गया।
5. कठोरता और लचीलापन का समन्वय( kathorta Aur lachilapan Ka samnvay)
भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए संविधान में काफी लचीलापन रखा गया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है, कि भारत का संविधान ना तो बहुत कठोर है और ना ही बहुत लचीला।
6. धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना( dharmnirpeksh Rajya ki sthapna)
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ है कि भारत में किसी धर्म विशेष को राज्य धर्म की स्थिति या अन्य किसी रूप में प्रमुखता की स्थिति प्राप्त नहीं है। राज्य की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं और धर्म के आधार पर उसके द्वारा अपने नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। भारत के सभी नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
7. एकात्मकता कि और झुका हुआ संघात्मक शासन( ekatmakta ki or Jhuka Hua sanghatmak shasan)
भारतीय संविधान के प्रथम अनुच्छेद के अनुसार इंडिया अर्थात भारत राज्यों का एक संघ होगा। इस प्रकार भारत में संघात्मक शासन की स्थापना की गई है और उसमें संघात्मक शासन के सभी लक्षण विद्यमान हैं।
8. संसदात्मक शासन व्यवस्था (sansdatmak shasan vyavastha)
व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के पारस्परिक संबंध की दृष्टि से जो दो प्रकार की शासन – व्यवस्थाएं होती हैं, उनमें संविधान निर्माताओं ने केंद्र और राज्यों में संसदात्मक शासन व्यवस्था को ही अपनाया है।संसदात्मक शासन के तीन प्रमुख लक्षण होते हैं (क) शासन का एक नाम मात्र का प्रधान (ख) व्यवस्थापिका और कार्यपालिका का पारस्परिक संबंध तथा (ग) कार्यपालिका का कार्यकाल निश्चित ना होना।
9. मूल अधिकार और मूल कर्तव्य(Mul Adhikar aur Mul Kartavya)
अमेरिका और आयरलैंड आज देशों के संविधान की तरह हमारे संविधान द्वारा नागरिकों को मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं। मूल अधिकारों का तात्पर्य संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त ऐसे अधिकार और स्वतंत्रता ओं से हैं जिन्हें राज्य तथा सरकार के विरुद्ध भी लागू किया जा सकता है, मूल अधिकारों के संबंध में विशेष बात यह है कि संविधान द्वारा ही अधिकारों के साथ-साथ प्रतिबंधों की व्यवस्था भी की गई है और इन अधिकारों की क्रियान्वित की भी व्यवस्था है।
10. नीति निदेशक तत्व (Niti nideshak Tatv)
भारतीय संविधान के चौथे अध्याय में शासन संचालन के कुछ मूलभूत सिद्धांतों का वर्णन किया गया है और इन्हें ही राज्य की नीति के निदेशक तत्व अर्थात नीति निश्चित करने वाले तत्व कहा गया है।
11. स्वतंत्र न्यायपालिका और अन्य स्वतंत्र अभिकरण (Swatantra nyaypalika aur Anya Swatantra abhikaran)
संघात्मक शासन व्यवस्था में न्यायपालिका संविधान के व्याख्याता और रक्षक होने के कारण उसका स्वतंत्र होना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदत्त मूल अधिकारों की रक्षा के लिए भी न्यायपालिका की स्वतंत्रता नितांत आवश्यक हो जाती है।
12. संसदीय प्रभुता तथा न्यायिक सर्वोच्चता में समन्वय (sansadiy prabhuta tatha nyayik sarvochta mein samnvay)
इंग्लैंड में संसद सर्वोच्च है और ब्रिटिश संसद द्वारा निर्मित कानून को किसी भी न्यायालय द्वारा चुनौती नहीं दी जा सकती है इसके विपरीत अमेरिका के संविधान में न्यायपालिका की सर्वोच्चता के सिद्धांत को अपनाया गया है
13. सांप्रदायिक निर्वाचन क्षेत्रों की समाप्ति (sampradayik Nirvachan kshetron ki samapti)
स्वतंत्र भारत के संविधान में सांप्रदायिक निर्वाचन क्षेत्रों को समाप्त कर संयुक्त प्रतिनिधित्व की पद्धति को अपनाया गया है जिसमें सब मिलकर एक साथ अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करते हैं
14. वयस्क मताधिकार का प्रारंभ (vayask matadhikar ka prarambh)
भारतीय संविधान के अंतर्गत वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है, जिसके अनुसार सभी वयस्क स्त्री पुरुषों (पागल दिवालीय और अपराधियों को छोड़कर) को मतदान का अधिकार दिया गया है। मतदान के लिए वयस्कता की आयु 21 वर्ष रखी गई थी, जिसे 61वें संवैधानिक संशोधन 1989 के आधार पर 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया है।
15. अल्पसंख्यक तथा पिछड़े हुए वर्गों के कल्याण की विशेष व्यवस्था (alpsankhyak tatha pichhade Hue vargon Ke Kalyan Ki Vishesh vyavastha)
अनेक बार प्रजातंत्र की आलोचना करते हुए इसे बहुमत का अत्याचार कहा जाता है लेकिन भारतीय संविधान के निर्माताओं ने इस प्रकार की आलोचना के लिए कोई स
अस्थान नहीं रख छोड़ा है। संविधान में अल्पसंख्यकों के धार्मिक भाषाई और सांस्कृतिक हितों की रक्षा की विशेष व्यवस्था की गई है।
16. एकल नागरिकता(Ykal nagrikta)
भारतीय संविधान के द्वारा संघात्मक शासन व्यवस्था स्थापित की गई है और सामान्यतया ऐसा समझा जाता है कि संघ राज्य के नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होनी चाहिए। प्रथम संघ की नागरिकता और द्वितीय संघ की इकाइयां राज्य की नागरिकता।
17. सामाजिक समानता की स्थापना (Samajik Samanta ki sthapna)
सामान्यतया संविधान के द्वारा अपने नागरिकों की राजनीतिक और कानूनी समानता पर ही बल दिया जाता है सामाजिक समानता पर नहीं लेकिन भारतीय संविधान की विशेष यह है कि संविधान के द्वारा सामाजिक क्षेत्र में सभी नागरिकों की समानता के सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया है
18. संकटकालीन प्रावधान(SankatKalin pravdhan)
संकटकाल के संबंध में विशेष प्रावधान हमारे संविधान की एक अन्य विशेषता है जिसके अनुसार संकट काल में हमारी राज्य व्यवस्था में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाते हैं। संविधान में तीन प्रकार के संकटकाल का उल्लेख किया गया है:
(i) युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति उत्पन्न होने पर (अनुच्छेद 352)
(ii) राज्यों में संवैधानिक व्यवस्था के भांग हो जाने पर (अनुच्छेद 356)
(iii) वित्तीय संकट के उत्पन्न होने पर (अनुच्छेद 360)
19. कल्याणकारी राज्य की स्थापना का आदर्श (kalyankari Rajya ki sthapna ka Aadarsh)
संविधान के नीति निर्देशक तत्व के अध्ययन से नितांत स्पष्ट हो जाता है कि संविधान निर्माताओं द्वारा भारत के लिए एक आदर्श निश्चित किया गया है और यह आदर्श है कल्याणकारी राज्य की स्थापना
20. एक राष्ट्रभाषा की व्यवस्था (Ek rashtrabhasha ki vyavastha)
राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ करने के लिए हमारे संविधान में हिंदी को देवनागरी लिपि में भारत के राष्ट्र भाषा घोषित किया गया है
21. ग्राम पंचायतों की स्थापना (gram panchayaton ki sthapna)
संविधान निर्माताओं ने जहां एक और बीसवीं सदी की शासन व्यवस्था को अपनाया है वहां दूसरी ओर इस बात को नहीं बुलाया है कि भारतीय व्यवस्था के आधार ग्राम हैं जिनका प्रबंध ग्राम पंचायतों के आधार पर ही भली-भांति संभव है नीति निदेशक तत्व में कहा गया है कि ग्राम पंचायतों की स्थापना कर उन्हें स्थानीय शासन की प्राथमिक इकाई बनाया जाएगा
22. विश्व शांति का समर्थक (Vishva Shanti ka samarthak)
वसुधैव कुटुम्बकम भारतीय जीवन और संस्कृत का आदर्श रहा है और हमारे संविधान निर्माता भी इस आदर्श के प्रति सचेष्ट थे। इसी कारण संविधान के नीति निदेशक तत्व में कहा गया है, राज्य अंतरराष्ट्रीय शांति तथा सुरक्षा की उन्नति का और राष्ट्रों के बीच न्याय तथा सम्मान पूर्ण संबंधों को बनाए रखने का प्रयत्न करेगा। व्यवहार के अंतर्गत भी भारत द्वारा विश्व शांति बनाए रखने की प्रत्येक संभव चेष्टा की गई है। सूरज
निष्कर्ष(conclusion)
दोस्तों पूरा आर्टिकल पढ़ने के बाद निष्कर्ष यह निकल कर आता है की उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त स्त्री पुरुष की समानता तथा राजनीतिक एकता का पोषण आदि भी भारतीय संविधान की विशेषताएं कहीं जा सकती हैं। संक्षेप में, भारत का नवीन संविधान जनता की प्रभुसत्ता के मूल सिद्धांत पर आधारित है तथा भारतीय जनता की वास्तविक एकता का प्रतीक है। भारतीय संविधान के स्वरूप और विशेषताओं से स्पष्ट है कि भारत का संविधान एक ऐसा आदर्श प्रलेख है जिसमें सिद्धांत और व्यावहारिकता का श्रेष्ठ समन्वय है।
अस्वीकरण(Disclaimer)
दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने शिक्षा के आधार पर दिया है इसीलिए यह काफी हद तक सही है। अगर आपको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई देता है, तो आप कमेंट कर हमसे बता सकते हैं।