in

भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण तथा भारतीय संघ की विशेषताएं( Bhartiya sanvidhan ke Ykatmak Lakshan tatha Bhartiya Sangh ki visheshtaen)

नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में बताएंगे भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण तथा भारतीय संघ की विशेषताएं भारतीय संविधान द्वारा स्थापित संघात्मक व्यवस्था में अनेक एकात्मक लक्ष्मण को भी यथा स्थान देखा जा सकता है इन्हें ही भारतीय संघ की विशेषताएं कहा जा सकता है संविधान के यह एकात्मक लक्षण प्रमुख रूप से निम्नलिखित हैं

भारतीय संविधान के एकात्मक लक्षण तथा भारतीय संघ की विशेषताएं
1. शक्ति का विभाजन केंद्र के पक्ष में
2. इकहरी नागरिकता
3. संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान
4. एकीकृत न्याय व्यवस्था
5.संसद राज्यों की सीमाओं के परिवर्तन में समर्थन
6. भारतीय संविधान संकटकाल में एकात्मक
7. सामान्य काल में भी संघीय सरकार को असाधारण शक्तियां
8. मूलभूत विषयों में एकरूपता
9.राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा
10. राज्यसभा में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व नहीं
11. आर्थिक दृष्टि से राज्यों की केंद्र पर निर्भरता
12. संविधान के संशोधन में संघ को अधिक शक्तियां प्राप्त होना
13. अंतर अन्तर्राज्य परिषद और क्षेत्रीय परिषद
14. भारतीय संघ में संघीय क्षेत्र
15.योजना आयोग

1.शक्ति विभाजन केंद्र के पक्ष में( Shakti vibhajan Kendra ke Paksh mein)

भारतीय संविधान द्वारा संघ और राज्यों के बीच शक्ति विभाजन तो किया गया है, लेकिन सब विभाजन की इस संपूर्ण योजना में केंद्रीकरण की प्रवृत्ति बहुत अधिक प्रबल है। ऐसे शब्द विभाजन का रूप है: केंद्रीय सूची में 97 विषय राज्य सूची में 66 विषय और समवर्ती सूची में 47 विषय समवर्ती सूची के विषयों पर संघ और राज्य दोनों को ही कानून निर्माण की सख्त प्राप्त है लेकिन इन दोनों द्वारा निर्मित कानून में पारस्परिक विरोध की स्थिति में संघीय सरकार के कानून ही मान्य होंगे

2.इकहरी नागरिकता( EkHari nagrikta)

इकाई नागरिकता की यह व्यवस्था भारत की एकता को बनाए रखने की दृष्टि से उचित होते हुए भी उसे संघात्मक शासन के सिद्धांत के अनुकूल नहीं किया जा सकता 2005 में नागरिकता कानून में संशोधन कर कतिपय श्रेणी के प्रवासी भारतीयों को दोहरी नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है

3.संघ और राज्यों के लिए एक ही संविधान( Sangh aur rajyon ke liye ek hi sanvidhan)

साधारणतया संघात्मक व्यवस्था के अंतर्गत राज्यों के संविधान संघ से पृथक होते हैं, लेकिन भारत में भारतीय संविधान के अंतर्गत संघ के संविधान के साथ-साथ राज्यों के संविधान भी निम्नलिखित हैं। भारतीय संघ की इकाइयों को अमेरिकी संघ की इकाइयों की तरह अपने अलग-अलग संविधान के निर्माण का अधिकार नहीं है।

4.एकीकृत न्याय व्यवस्था( Ykikrit nyaay vyavastha)

संघात्मक व्यवस्था का यह महत्वपूर्ण लक्षण संधि और राज्य के कानूनों को लागू करने के लिए दोहरी न्याय व्यवस्था है, लेकिन भारतीय संघ में अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया के संघ की तरह दोहरी न्याय व्यवस्था का प्रबंध करने के स्थान पर न्यायपालिका को बहुत सीमा तक एकीकृत कर दिया गया है। राज्यों के उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय की शाखाएं हैं, सर्वोच्च न्यायालय को उन उच्च न्यायालय परजापत क्षेत्राधिकार प्रदान किया गया है और उच्च न्यायालय का निर्माण तथा गठन संघीय के द्वारा ही किया जाता है। दिल्ली स्थित सर्वोच्च न्यायालय देश की संपूर्ण न्याय व्यवस्था के शिखर पर स्थित है और यह केवल एक संघीय न्यायालय ही नहीं वरन सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय भी है

5.संसद राज्यों की सीमाओं के परिवर्तन में समर्थन( Sansad rajyon ki seemaon ke Parivartan mein samarthan)

अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया के संग में राज्य की सीमाओं में उनकी सहमति के बिना परिवर्तन नहीं किया जा सकता है और इसे संघात्मक व्यवस्था का एक आवश्यक सिद्धांत समझा जाता है, किंतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार संसद को यह अधिकार प्राप्त है कि उसके द्वारा वर्तमान राज्यों के क्षेत्र में कमियां वृद्धि की जा सकती है, राज्यों के नामों में परिवर्तन किया जा सकता है अथवा दो या दो से अधिक राज्यों को मिलाकर किसी नवीन राज्य का निर्माण किया जा सकता है।

6.भारतीय संविधान संकटकाल में एकात्मक( Bhartiya sanvidhan Sankat kal mein Ykatmak)

भारतीय संविधान में एकात्मक का यह ऐसा लक्षण है, जो साधारणतया अन्य किसी भी संघात्मक व्यवस्था में नहीं मिलता। संघात्मक व्यवस्था शांति काल और संकट काल दोनों में ही संघात्मक बनी रहती है, लेकिन भारतीय संविधान की विशेषता यह है कि सामान्य काल में तो संघात्मक बना रहेगा लेकिन संकट काल के समय इसे बिना किसी प्रकार के औपचारिक संशोधन के एकात्मक व्यवस्था का रूप दिया जा सकता है।

7.सामान्य काल में भी संघीय सरकार को साधारण शक्तियां( Samanya kal mein bhi sanghiy Sarkar ko Sadharan shaktiyan)

भारतीय संविधान संकटकाल में तो एकात्मक हो ही जाता है, संविधान द्वारा सामान्य काल में भी संघीय सरकार को असाधारण शक्तियां प्रदान की गई हैं।

8.मूल भूत विषयों में एकरूपता( mulbhut vishayon mein ykroopta)

सामान्यतया संघात्मक राज्यों में दोहरी कानून प्रशासन तथा दोहरी न्यायिक व्यवस्था होती हैं, किंतु भारत में उन समस्त मूलभूत विषयों के संबंध में जो राष्ट्र की एकता बनाए रखने के लिए आवश्यक है, एकरूपता स्थापित करने का प्रयत्न किया गया है।

9.राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा( rajyon ke rajyapalon ki Niyukti Rashtrapati dwara)

दोस्तों संयुक्त राज्य अमेरिका में राज्य के गवर्नर का चुनाव राज्य की जनता के द्वारा किया जाता है, लेकिन भारत में राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और राज्यपाल बहुत कुछ सीमा तक राष्ट्रपति के प्रतिनिधि के रूप में ही कार्य करता है। राज्यपाल की नियुक्ति और कार्य किया वीर संघात्मक व्यवस्था के सिद्धांतों के अनुसार नहीं है।

10.राज्यसभा में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व नहीं( Rajyasabha Mein ikaiyon ko Saman pratinidhitv Nahin)

दोस्तों संयुक्त राज्य अमेरिका स्विट्जरलैंड ऑस्ट्रेलिया और अन्य संघात्मक राज्यों में संघ की छोटी-बड़ी इकाइयों को संघीय व्यवस्थापिका के द्वितीय सदन में समान प्रतिनिधित्व प्रदान किया गया है, लेकिन भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्यसभा में इकाइयों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान नहीं किया गया है।

11.आर्थिक दृष्टि से राज्यों की केंद्र पर निर्भरता( Arthik Drishti Se rajyon Ki Kendra per nirbharta)

दोस्तों राज्य वित्तीय दृष्टि से आत्मनिर्भर होने के स्थान पर केंद्र पर निर्भर है। केंद्र के द्वारा राज्यों को विभिन्न प्रकार के अनुदान आज दिए जाते हैं और आर्थिक सहायता के कारण केंद्र राज्य पर छाया रहता है। वित्तीय क्षेत्र में आत्मनिर्भर ना होने के कारण राज्यों की स्वायत्तता नाम मात्र की ही है

12.संविधान के संशोधन में संघ को अधिक शक्तियां प्राप्त होना( sanvidhan ke sanshodhan mein Sangh ko Adhik shaktiyan prapt hona)

प्रश्न संविधान के संशोधन से संबंधित उपबंध भी राज्य सरकारों पर संघ की सर्वोच्चता के सिद्धांत पर बल देते हैं। संविधान के अनेक उप बंधुओं को तो संघीय संसद के द्वारा साधारण कानूनों के निर्माण की प्रक्रिया से ही संशोधित किया जा सकता है और दूसरे कुछ महत्वपूर्ण और उपबंधों को अकेली संघीय संसद के दोनों सदनों द्वारा अपने दो तिहाई बहुमत से संशोधित किया जा सकता है।

13.अन्तर्राज्य परिषद और क्षेत्रीय परिषदें( Antar Rajya Parishad aur Kshetriya Parishaden)

संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार राष्ट्रपति को अन्तर्राज्य परिषद की नियुक्ति का अधिकार है जिसका कार्य राज्यों के आपसी विवादों की जांच करना और सामान्य हित के विषयों पर विचार करना होगा। इसके अलावा 1957 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अंतर्गत क्षेत्रीय परिषदों(Zonal Councils) की स्थापना की गई थी और 1971 में उत्तर पूर्वी सीमा के 5 राज्यों और 2 केंद्र शासित क्षेत्रों के लिए पूर्वोत्तर सीमांत परिषद की स्थापना की गई है। वास्तव में अन्तर्राज्य परिषद और क्षेत्रीय परिषद ए राज्यों के कार्य में समन्वय की दिशा में ही उठाए गए कदम हैं। संविधान लागू होने के बाद 40 वर्षों तक अन्तर्राज्य परिषद की स्थापना नहीं की जा सकी। इसकी स्थापना सर्वप्रथम 1990 में की गई। इसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री तथा सदस्य सभी राज्यों के मुख्यमंत्री होते हैं। इसका मुख्य कार्य दो या अधिक राज्यों के सामान्य हितों के प्रश्नों पर विचार करना या उनके मतभेदों का समाधान करना होता है।

14.भारतीय संघ में संघीय क्षेत्र( Bhartiya Sangh Mein sanghiy kshetra)

भारतीय संघ में दो प्रकार की इकाइयां हैं: (क) राज्य और (ख) संघीय क्षेत्र। वर्तमान समय में 8 संघीय क्षेत्र हैं। संघ के राज्यों को तो राज्य के विषय पर लगभग पूर्ण अधिकार प्राप्त है, किंतु संघीय क्षेत्रों के संबंध में केंद्र को नियंत्रण की प्रभावशाली शक्तियां प्राप्त हैं। डॉक्टर महादेव प्रसाद वर्मा ठीक ही लिखते हैं कि´´ वास्तव में इन क्षेत्रों का केंद्र के साथ वही संबंध है जो किसी एकात्मक राज्य के उप खंडों का उसकी केंद्रीय सरकार के साथ होता है।

योजना आयोग( Yojana Aayog)

दोस्तों योजना आयोग ने केंद्रीय सूची और राज्य सूची के विभिन्न विषयों पर योजनाओं का निर्माण करते हुए राज्य सरकारों के कार्य संचालन पर बहुत अधिक नियंत्रण रखा है और कुछ सीमा तक राज्य सरकारें एक एकात्मक व्यवस्था के अंतर्गत स्थानीय प्रशासन की इकाइयां बनकर रह गई है।

निष्कर्ष(conclusion)

दोस्तों इस आर्टिकल में बताया गई जानकारी के आधार पर निष्कर्ष निकलकर यह आता है कि भारत एक अत्यंत विशाल और विविधता पूर्ण देश होने के कारण संविधान – निर्माताओं के द्वारा भारत में संघात्मक शासन की स्थापना करना उपयुक्त समझा गया, लेकिन संविधान – निर्माता भारतीय इतिहास के इस तथ्य से भी परिचित है कि भारत में जब-जब केंद्रीय सत्ता दुर्बल हो गई, तब – तब भारत की एकता भंग हो गई और उसे पराधीन होना पड़ा। संविधान निर्माता यह नहीं चाहते थे कि इतिहास अपने आप को दोहराय। इसके अतिरिक्त, संविधान – निर्माता इस बात से भी परिचित थे कि वर्तमान समय के सभी संघात्मक राज्यों में विविध उपायों से केंद्रीय सत्ता को पहले से अधिक शक्तिशाली बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर लिखा है, इसलिए यह आर्टिकल काफी हद तक सही है। अगर आप सबको इसमें कुछ मिस्टेक दिखाई देता है, तो आप कमेंट करके बता सकते हैं।

Written by skinfo

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं(Bhartiy Sanvidhan Pramukh vishestayen)

कर्नाटक का प्रथम युद्ध, द्वितीय युद्ध, तृतीय कब हुआ था -Karnatak ka Pratham yuddh, dwitiya yuddh, tritiya yuddh kab huwa tha