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भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया -Bhartiya sanvidhan Mein sanshodhan ki prakriya

नमस्कार मित्रों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है आज अपने हम इस वेबसाइट Skinfo.co.in के माध्यम से किस आर्टिकल में सहज व सरल शब्दों में चर्चा करने जा रहे हैं भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के बारे में

तो चलिए मित्रों अब हम आगे बढ़ते हैं और किस आर्टिकल में जानते हैं भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के बारे में विस्तार पूर्वक-

भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया – Bhartiya sanvidhan Mein sanshodhan ki prakriya

भारत के द्वारा संघात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है, अतः संयुक्त राज्य अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और स्वीटजरलैंड के संविधान ओं की तरह भारत के द्वारा एक कठोर संविधान को अपनाया गया है। लेकिन संविधान निर्माता अमेरिका जैसे अत्यधिक कठोर संविधान को अपनाने से उत्पन्न होने वाले कठिनाइयों से परिचित थे, अतः उनके द्वारा संविधान के संशोधन के लिए एक ऐसी प्रक्रिया को अपनाया गया है जो ना तो इंग्लैंड के संविधान की तरह अत्यधिक लचीली है और ना ही अमेरिका के संविधान की तरह कठोर।

पं. जवाहरलाल नेहरू ने इस संबंध में संविधान सभा में कहा था,´´ यद्यपि जहां तक संभव हो हम इस संविधान को एक ठोस और स्थाई संविधान का रूप देना चाहते हैं, संविधान में कोई अस्तित्व नहीं होता। इसमें कुछ लचीलापन होना ही चाहिए। यदि आप इसे कठोर और स्थाई बनाते हैं हमें तो आप एक राष्ट्र की प्रगति पर जीवित, प्राणवत् एवं शरीरधारी व्यक्तियों की प्रगति पर रोक लगा देते हैं

संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन संविधान के भाग 20 अनुच्छेद 368 में किया गया है अनुच्छेद 368 में संवैधानिक संशोधन की दो प्रक्रियाओं का उल्लेख किया गया है, लेकिन संविधान में संशोधन की एक अन्य प्रक्रिया भी है, इसका उल्लेख अनुच्छेद 368 में नहीं किया गया है। वस्तुतः भारतीय संविधान में संशोधन तीन प्रकार से हो सकता है। संधान में संशोधन के यह तीन प्रक्रियाएं इस प्रकार हैं –

(क) संसद द्वारा सामान्य कानून निर्माण की प्रक्रिया के आधार पर संशोधन,

(ख) संसद के विशिष्ट बहुमत द्वारा संशोधन की प्रक्रिया,

(ग) संसद के विशिष्ट बहुमत और राज्य के विधान मंडलों के अनुमोदन से संशोधन की प्रक्रिया।

(क) संसद द्वारा सामान्य कानून निर्माण की प्रक्रिया के आधार पर संशोधन – भारतीय संविधान बहुमत अधिक व्यापक है तथा संविधान निर्माता इस बात से परिचित थे कि संविधान के कुछ प्रावधानों में जल्दी ही परिवर्तन तथा समय-समय पर परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है। इसके साथ ही संविधान निर्माता संविधान में आवश्यक लचीलापन चाहते थे, इसलिए पारिभाषिक दृष्टि से संविधान कठोर होते हुए भी इस संविधान के कुछ अंश ऐसे हैं जिनके संबंध में भारतीय संसद के दोनों सदन पृथक पृथक साधारण बहुमत से प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रपति के पास स्वीकृति लिए भेज सकते हैं और राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर संविधान में इस आशय का संशोधन हो जाता है। राज्यों के क्षेत्र सीमा और नाम में परिवर्तन, कुछ शर्तों के साथ राज्य विधानमंडल के द्वितीय सदन का गठन और समाप्ति, नागरिकता, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से संबंधित व्यवस्था, संसदीय विशेषाधिकार, संसदीय गणपूर्ति, संसद द्वारा कानून निर्माण हेतु अपनाई गई प्रक्रिया तथा द्वितीय अनुसूची की कुछ व्यवस्थाएं आदि।

संविधान में संशोधन की उपयुक्त प्रक्रिया का उल्लेख अनुच्छेद 368 में नहीं किया गया है, वरन् विधान के तत्व संबंधी अनुच्छेदों में यह बताया गया है कि इसमें संसद साधारण बहुमत से संशोधन कर सकेगी और अनुच्छेद 368 की प्रक्रिया इन पर लागू नहीं होगी।

संविधान में संशोधन की निम्न दो प्रक्रियाओं का उल्लेख अनुच्छेद 368 में किया गया है।

(ख) संसद के विशिष्ट बहुमत द्वारा संशोधन की प्रक्रिया – इसके अंतर्गत संविधान की वे व्यवस्थाएं आती हैं जिनमें संसद के विशिष्ट बहुमत द्वारा ही संशोधन किया जा सकता है। संविधान के ऐसे संशोधन का विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किया जा सकता है। यदि संसद का वह सदन कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थिति और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से उस विधेयक को पारित कर दे तो वह दूसरे सदन में भेज दिया जाता है और उस सदन में भी इसी प्रकार पारित होने के बाद वह राष्ट्रपति की अनुमति से संविधान का अंग बन जाता है।

मूल अधिकार, नीति निर्देशक तत्व तथा संविधान की अन्य सभी व्यवस्थाएं जो प्रथम और तृतीय श्रेणी में नहीं आती इसी के अंतर्गत आती हैं।

(ग) संसद के विशिष्ट बहुमत और राज्य विधान मंडलों के अनुमोदन से संशोधन की प्रक्रिया – अंतिम तथा तीसरे वर्ग में संविधान की वे व्यवस्थाएं आती हैं जिनमें संशोधन के लिए संसद के विशिष्ट बहुमत अर्थात संसद के दोनों सदनों द्वारा पृथक- पृथक अपने कुल बहुमत तथा उपस्थिति और मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से विधेयक पारित होना चाहिए तथा विधायक का राज्यों के कुल विधान मंडलों में से कम से कम आधे द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है

संविधान के निम्नलिखित उपबन्धो को संशोधित करने के लिए इस प्रक्रिया को अपना ना होता है:

(i) राष्ट्रपति का निर्वाचन (अनुच्छेद 54)।
(ii) राष्ट्रपति के निर्वाचन के पद्धति अनुच्छेद 55
(iii) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार (अनुच्छेद 73)।
(iv) राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार (अनुच्छेद 162)।
(v) संघीय न्यायपालिका (भाग 5 का अध्याय 4)
(vi) राज्यों के उच्च न्यायालय (भाग 6 का अध्याय 5)
(vii) केंद्र शासित क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 241)
(viii) संघ तथा राज्यों के विधायी संबंध (भाग II का अध्याय 1)
(ix) सातवीं अनुसूची में से कोई भी सूची
(x) संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व
(xi) संविधान के संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित उपबंध जिनका उल्लेख अनुच्छेद 368 में किया गया है।

सभी शंकाओं को दूर करने के लिए घोषित किया गया कि संसद की संविधान के उपबन्धो के परिवर्तित करने और निरस्त करने की शक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा।

एक विशेष बात यह है कि संविधान में संशोधन के किसी विषय पर संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा में मतभेद उत्पन्न हो जाने की स्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसी प्रत्येक स्थिति में संविधान में संशोधन का प्रस्ताव गिर जाता है।

24वें संवैधानिक संशोधन (1971) द्वारा संशोधन प्रक्रिया की एक अस्पष्टता दूर कर दी गई है। इसे संवैधानिक संशोधन में कहा गया है कि जब कोई संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष उनकी अनुमति के लिए रखा जाए तो इन्हें उस पर अनुमति दे देनी चाहिए।

भारतीय संविधान में संशोधन के लिए अपनाई गई उपयुक्त प्रक्रिया से नितांत स्पष्ट है कि भारतीय संविधान में लचीलेपन और कठोरता का अपूर्व सम्मिश्रण है। संविधान संशोधन के संबंध मैं सूच्य है कि सर्वोच्च न्यायालय के केशवानंदन भारती 1973 के मामले में संविधान के मौलिक ढांचे में संशोधन पर रोक लगा दी है। दूसरी तरफ संविधान का अनुच्छेद 368 संसद को प्रत्येक प्रकार के संशोधन हेतु अधिकृत करता है। अतः इस संबंध में संसद के अधिकार के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बीच विरोधाभास व्याप्त है

अब तक भारतीय संविधान में 97 संशोधन किए जा चुके हैं 97वें संशोधन द्वारा कोऑपरेटिव सोसायटी गठित करने का अधिकार दिया गया है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ा होगा और जाना होगा भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के बारे में विस्तार पूर्वक दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने शिक्षा के आधार पर दिया है इसलिए आर्टिकल सही है। अगर आप सबको इसमें कोई संदेह दिखाई पड़ता है, तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।

Written by skinfo

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