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जनहित याचिका किसे कहते हैं – janhit yachika Kise Kahate Hain

नमस्कार मित्रों आप सबका हमारे वेबसाइट में स्वागत है मित्रों आज हम अपने इस वेबसाइट Skinfo.co.in के माध्यम से इस आर्टिकल में चर्चा करने जा रहे हैं जनहित याचिका किसे कहते हैं जिसे अंग्रेजी में हम P.I.N.(Public Interest Litigation) कहते हैं। तो चलिए मित्रों अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं विस्तार पूर्वक

जनहित याचिका किसे कहते हैं janhit yachika Kise Kahate hain

जनहित याचिका की अवधारणा की उत्पत्ति एवं विकास अमेरिका में 1960 के दशक में हुई। अमेरिका में इसे प्रतिनिधित्व विहीन समूहों एवं हितों को कानूनी या बौद्धिक प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिए रूपायित किया गया था। इसे इस तथ्य के आलोक में शुरू किया गया कि कानूनी सेवाएं प्रदान करने वाले बाजार आबादी के महत्वपूर्ण विभागों एवं महत्वपूर्ण हितों को अपनी सेवाएं देने में विफल रहते हैं। इनमें शामिल हैं गरीब, पर्यावरणवादी, उपभोक्ता, प्रजाति एवं नृजातीय अल्पसंख्यक तथा अन्य।

भारत में जनहित याचिका पीआईएल सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक सक्रियता का यह उत्पाद है। इसकी शुरुआत 1980 के दशक के मध्य में हुई। न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर तथा न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती पीआईएल की अवधारणा के प्रवर्तक रहे हैं।

पीआईएल को सामाजिक क्रिया याचिका[Social Action Litigation(SAL)] सामाजिक हित याचिका[Social Interest Litigation (SIL)] तथा वर्गीय क्रिया याचिका[Class Action Litigation (CAL)] के रूप में भी जाना जाता है।

पी.आई.एल. का अर्थ (PIL)

भारत में पीआईएल की शुरुआत पारंपरिक अधिकारिता के शासन एवं नियमों में रियायत से शुरू हुई। इस कानून के अनुसार केवल वहीद संवैधानिक उपचार के लिए न्यायालय में जा सकता है जिनके अधिकारों का हनन हुआ है। वही पीआईएल इस पारंपरिक नियम कानून के अपवादस्वरूप है। पीआईएल यानी जनहित याचिका के अंतर्गत कोई भी जन भावना वाला व्यक्ति या सामाजिक संगठन किसी भी व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह के अधिकार दिलाने के लिए न्यायालय जा सकता है, अगर यह व्यक्ति/समूह निर्धनता, अज्ञान अथवा अपनी सामाजिक – आर्थिक रूप से प्रतिकूल दशाओं के कारण न्यायालय उपचार के लिए नहीं जा सकते। इस प्रकार पीआईएल में एक व्यक्ति अपनी पर्याप्त रुचि के बल पर ही अन्य व्यक्तियों के अधिकार दिलाने अथवा एक आम शिकायत दूर करने के लिए न्यायालय जा सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने पीआईएल को इस प्रकार परिभाषित किया है:

एक विधि न्यायालय में सार्वजनिक हित अथवा सामान्य हित जिसमें जनता या किसी समुदाय के वर्ग का आर्थिक हित है अथवा ऐसा कोई हित जुड़ा है जिसके कारण उनके कानूनी अधिकार अथवा दायित्व प्रभावित हो रहे हो, के मामले में कानूनी कार्रवाई शुरू करना।

पीआईएल कानून के शासन के लिए बिल्कुल जरूरी है, इससे न्याय के मुद्दे को आगे बढ़ाया जा सकता है तथा संवैधानिक उद्देश्यों की प्राप्त की गति को तीव्र किया जा सकता है दूसरे शब्दों में पीआईएल के वास्तविक उद्देश्य हैं: (i) कानून के शासन की रक्षा, (ii) सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों की न्याय प्रभाव कारी पहुंच बनाना,(iii) मौलिक अधिकारों का सार्थक रूप में प्राप्त करना।

पीआईएल की विशेषताएं ( PIL ki visheshtaen)

पीआईएल की अन्य विशेषताएं निम्नवत हैं:

1. पीआईएल कानूनी सहायता आंदोलन का रणजीत अंग है और इसका आशय है गरीब जनता तथा न्याय को 16 बनाना जो कि मानवता के कम दृष्टि हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है।

2. पीआईएल एक भिन्न प्रकार का वाद है सामान्य पारंपरिक वाद के मुकाबले जिसमें 2 याचिकाकर्ता पक्षों के बीच किसी बात पर विवाद होता है और एक पक्ष दूसरे पक्ष के खिलाफ सहायता का दावा करता है और दूसरा पक्ष ऐसी किसी सहायता का विरोध करता है।

3. सामान्य वाद की तरह पीआईएल न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति के अन्य व्यक्ति के खिलाफ अपने अधिकार का दावा और उसे लागू करने के लिए दाखिल नहीं किया जाता है, बल्कि इसका आशय सार्वजनिक हित को आगे बढ़ाना तथा रक्षा करना होता है।

4. पीआईएल की मांग है कि उन लोगों के संवैधानिक अथवा कानूनी अधिकारों के उल्लंघन की अनदेखी नहीं होनी चाहिए या अनिवार्य नहीं रहना चाहिए जिनकी संख्या बहुत बड़ी है, जो गरीब और अशिक्षित हैं और सामाजिक-आर्थिक रूप से साधन हीन है।

5. पीआईएल अनिवार्य रूप से एक सहकारी प्रयास है याचिकाकर्ता राज्य सर्वजनिक प्राधिकार तथा न्यायालय की ओर से यह सुनिश्चित करने के लिए समुदाय के कमजोर वर्गों के लिए संवैधानिक या कानूनी अधिकारों सुविधाओं व विशेषाधिकारों को उपलब्ध कराया जाए और उन्हें सामाजिक न्याय सुलभ कराया जाए।

6. पीआईएल में जनाधार का निवारण करने सर्वजनिक कर्तव्य का परिवर्तन करने सामाजिक सामूहिक विसरित अधिकारों एवं हितों अथवा सार्वजनिक किया जनहित के रक्षण के लिए वाद दाखिल किया जाता है।

7. पीआईएल में न्यायालय की भूमिका उसकी पारंपरिक कार्यवाही ओं की तुलना में अधिक मुखर होती है-जनता के प्रति कर्तव्य के लिए बाध्य करने, सामाजिक, सामूहिक, विसरित अधिकारों एवं हितों अथवा जनहित को बढ़ाने में।

8. हालांकि पीआईएल में न्यायालय पारंपरिक निजी विधि वादों के अनजान लचीलेपन का प्रयोग करता है न्यायालय द्वारा चाहे जो भी प्रक्रिया अपनाई जाए यह वह प्रक्रिया होनी चाहिए जो कि न्यायिक मत एवं न्यायिक कार्यवाही के लिए जाना जाता हो।

9. पीआईएल में पारंपरिक विवाद समाधान प्रक्रिया से अलग वैयक्तिक अधिकारों का न्याय निर्णय नहीं होता।

अस्वीकरण (Disclemar)

मित्रों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अन्य तक पढ़ा होगा और जाना होगा जनहित याचिका किसे कहते हैं। मित्रों यह आर्टिकल हमने अपने शिक्षा के आधार पर लिखा है इसलिए यह सही है।अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।

Written by skinfo

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