in

कार्यपालिका क्या है -karypalika kya hai

नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में बताएंगे की कार्यपालिका क्या है। दोस्तों व्यवस्थापिका द्वारा पास किए गए कानूनों और वार्षिक बजट को प्रस्तावित करने का कार्य कार्यपालिका करती है और न्याय विभाग की व्यवस्था का अंतिम उत्तरदायित्व कार्यपालिका का ही होता है।

कार्यपालिका का अर्थ?karypalika ka Arth)

कार्यपालिका सरकार का वह अंग है जिसका कार्य व्यवस्था पर द्वारा निर्मित कानूनों को कार्य रूप में परिणत करना और उनके आधार पर प्रशासन का संचालन करना होता है। राष्ट्रपति से लेकर साधारण पुलिसमैन तक प्रशासन से संबंधित प्रत्येक कर्मचारी कार्यपालिका का ही अंग होता है।

कार्यपालिका के मुख्यत: 2 भाग होते हैं-(1) राजनीति कार्यपालिका और (2) स्थायी कार्यपालिका या प्रशासन। राजनीतिक कार्यपालिका विधियों के आधार पर प्रशासन से संबंधित विभिन्न विभागों के संबंध में नीति निर्माण करती है और अस्थाई सेवा वर्ग नींद निर्माण में सहायता देता है तथा प्रमुख रूप से नीति को क्रियान्वित करता है। इसे

स्थायी कार्यपालिका इसलिए कहा जाता है, कि इसके सदस्यों (लोक सेवा के अधिकारी) का कार्यकाल स्थायी तथा लंबा होता है इसके विपरीत राजनीतिक कार्यपालिका (मंत्री परिषद) का कार्यकाल स्थायी होता है। संकुचित अर्थ में कार्यपालिका शब्द का प्रयोग राजनीतिक कार्यपालिका के लिए ही किया जाता है।

कार्यपालिका के प्रकार(Karypalika ke prakar)

1. नाम मात्र की व वास्तविक कार्यपालिका
2. एकल और बहुल कार्यपालिका

1. नाम मात्र की व वास्तविक कार्यपालिका – (Nominal and Read Executive) – नाम मात्र के कार्यपालिका का तात्पर्य पदाधिकारी से होता है, जिसे संविधान के द्वारा समस्त प्रशासनिक शक्ति प्रदान की गई हो, लेकिन जिसके द्वारा व्यवहार में उसे प्रशासनिक शक्ति का प्रयोग अपने विवेक के अनुसार ना किया जा सके। यद्यपि प्रशासन का संपूर्ण कार्य उसी के नाम पर होता है, किंतु व्यवहार में इन कार्यों को वास्तविक कार्यपालिका द्वारा किया जाता है।

2. एकल और बहुल कार्यपालिका – (Single and Plural Executive – संगठन की दृष्टि से कार्यपालिका दो प्रकार की होती है एकल कार्यपालिका और बहुल कार्यपालिका

एकल कार्यपालिका का तात्पर्य कार्यपालिका के ऐसे संगठन से है जिसके अंतर्गत निर्णायात्मक और अंतिम रूप में कार्यपालिका की समस्त सख्त किसी एक व्यक्ति के हाथों में केंद्रित होती है।

बहुल कार्यपालिका का तात्पर्य कार्यपालिका के ऐसे प्रकार से है जिसके अंतर्गत अंतिम रूप में कार्यपालिका शक्ति किसी एक व्यक्ति में निहित ना होकर व्यक्तियों के एक समुदाय में निहित होती है।

https://youtu.be/Vol5ElPI_2k

कार्यपालिका की नियुक्ति की विधि(karypalika ki niyukti ki vidhi)

आधुनिक समय में कार्यपालक की नियुक्ति विभिन्न देशों में अलग-अलग पद्धतियों से की जाती है इस संबंध में निम्नलिखित चार पद्धतियां प्रमुख है:

1. वंशानुगत पद्धति
2. जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन
3. जनता द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन
4. व्यवस्थापिका द्वारा निर्वाचन

1. वंशानुगत पद्धति – इस पद्धति का संबंध राजतंत्रिये के शासन से है। इसमें पद की अवधि आजीवन होती और उत्तराधिकार जेष्ठाधिकार कानून द्वारा शासित होता है।

2. जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन – कुछ देशों में कार्यपालिका का चुनाव जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। बोलविया, मैक्सिको, ब्राजील, पेरू आदि लैटिन अमेरिकी राज्यों में राष्ट्रपति को सर्व

3. जनता द्वारा अप्रत्यक्ष निर्वाचन – इस पद्धति के अंतर्गत सर्वसाधारण जनता द्वारा एक निर्वाचक-मंडल का निर्वाचन किया जाता है और इस निर्वाचन-मंडल द्वारा कार्यकारिणी का चुनाव किया जाता है। अमेरिका के राष्ट्रपति के निर्वाचन की यही पद्धति है किंतु व्यवहार में राष्ट्रपति के चुनाव से प्रत्यक्ष चुनाव का रूप ग्रहण कर लिया है, भारत में भी राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है।

4. व्यवस्थापिका द्वारा निर्वाचन – इस पद्धति में कार्यपालिका को व्यवस्थापिका द्वारा चुना जाता है। स्विट्जरलैंड में कार्यपालिका प्रधान के चुनाव की यही पद्धति है। इस पद्धति में कुछ व्यावहारिक होने के कारण दूसरे देशों द्वारा इस पद्धति को नहीं अपनाया जा सकता है।

कार्यपालिका के कार्य(Karypalika ke kary)

वर्तमान समय में कार्यपालिका के प्रमुख कार्य निम्नलिखित कहे जा सकते हैं:

1. आंतरिक शासन संबंधी कार्य
2. बैदेशिक संबंधों का संचालन
3. सैनिक कार्य
4. विधि निर्माण संबंधी कार्य
5. वित्तीय कार्य
6. न्याय संबंधी कार्य
7. विविध कार्य

1. आंतरिक शासन सम्बन्धी कार्य – प्रत्येक राज्य राजनीतिक रूप में संगठित समाज है और इस संगठन समाज के सर्वप्रथम आवश्यकता शांति और व्यवस्था बनाए रखना होता है तथा यह कार्य कार्यपालिका के द्वारा ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त व्यापार और यातायात शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाओं की व्यवस्था और कृषि पर नियंत्रण अधिकारी भी कार्यपालिका द्वारा ही किए जाते हैं।

2. बैदेशिक सम्बधों का संचालन – वर्तमान समय में वैज्ञानिक प्रगति तथा राजनीतिक चेतना ने बैदेशिक संबंधों के संचालन को अत्यधिक महत्वपूर्ण बना दिया है और राज्य की ओर से बैदेशिक संबंधों का संचालन कार्यपालिका के द्वारा ही किया जाता है।

3. सैनिक कार्य – सामान्यतया राज्य की कार्यपालिका का प्रधान सेनाओं के सभी अंगों (स्थल जल और वायु) के प्रधान के रूप में कार्य करता है और विदेशी आक्रमण से देश की रक्षा करना कार्यालय का महत्वपूर्ण कार्य होता है। अपने इस कार्य के अंतर्गत कार्यपालिका आवश्यकतानुसार युद्ध अथवा शांति की घोषणा कर सकती है।

4. विधि-निर्माण सम्बन्धी कार्य – कार्यपालिका के विधि-नर्माण संबंधी कार्य बहुत कुछ सीमा तक शासन व्यवस्था के शुरू पर निर्भर करते हैं।

5. वित्तीय कार्य – यद्यपि वार्षिक बजट स्वीकृत करने का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा किया जाता है किंतु इस बजट का प्रारूप तैयार करने का कार्य कार्यपालिका ही करती है।

6. न्याय सम्बन्धी कार्य – प्रायः प्रत्येक राज्य में कार्यपालिका को कुछ न्यायिक शक्तियां भी प्राप्त होती हैं। सभी देशों में कार्यपालिका प्रधान को क्षमादान का अधिकार प्राप्त होता है, जिसके अनुसार कार्यपालिका न्यायपालिका द्वारा दंडित व्यक्तियों पर दया करके उनके दंड को कम कर सकती है उन्हें क्षमा प्रदान कर सकती हैं।

7. विविध कार्य – उपर्युक्त के अतिरिक्त अनेक देशों में कार्यपालिका को उपाधियां वितरित करने का अधिकार भी होता है। कुछ देशों में विशिष्ट सेवा के बदले पेंशन या अन्य प्रकार से सहायता देने का अधिकार भी कार्यपालिका का होता है।

कार्यपालिका के आवश्यक गुण(Karypalika ke Aawasyk gun)

कार्यपालिका अपने उपयुक्त कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न कर सके इसके लिए उसमें कुछ आवश्यक गुण होने चाहिए यह गुण निम्नलिखित हैं।

1. कर्तव्य परायणता
2. कार्यकुशलता
3. निर्णय में शीघ्रता
4. सच्चाई तथा ईमानदारी
5. निष्पक्षता
6. गोपनीयता

1. कर्तव्यपरायणता – व्यवहार के अंतर्गत कार्यपालिका के कार्य बहुत अधिक व्यापक हैं और कार्यपालिका अपने कार्य उसी समय सफलतापूर्वक संपन्न कर सकती है जबकि उसी के कर्तव्य निष्ठा की भावना हो।

2. कार्यकुशलता – कार्यपालिका का कार डीलर डाला या देर करने की प्रवृत्ति वाला नहीं होना चाहिए, वरन कार्यपालिका के कार्य में कुशलता, शीघ्रता और स्फूर्ति होनी चाहिए।

3. निर्णय में शीघ्रता – कार्यपालिका के द्वारा दृढ़ता के साथ निर्णय लेकर उन्हें शीघ्रता से क्रियान्वित किया जाना चाहिए।

4. सच्चाई तथा ईमानदारी – कार्यपालिका के सदस्यों को बहुत सच्चा और ईमानदार होना चाहिए उन्हें किसी भी प्रकार के प्रलोभन में नहीं पड़ना चाहिए, अन्यथा भ्रष्टाचार फैलेगा।

5. निष्पक्षता – कार्यपालिका को नितांत निष्पक्ष होना चाहिए। उसके द्वारा किसी वर्ग, संप्रदाय या व्यक्ति के साथ पक्षपात ना करते हुए सबको समान दृष्टि से देखना जाना चाहिए।

6. गोपनीयता – कार्यपालिका आंतरिक और बाहरी प्रशासन के क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य कर सके इसके लिए निर्णयों को गोपनीय रखना बहुत आवश्यक होता है।ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि कार्यपालिका के निर्णय उचित समय के पूर्व प्रगट ना हो जाए।

निष्कर्ष(conclusion)

दोस्तों पूरा आर्टिकल पढ़ने के बाद निष्कर्ष निकलकर यह आता है कि सरकार का दूसरा महत्वपूर्ण अंग कार्यपालिका होता है। सरकार के इस अंग का महत्व प्राचीन काल से ही बहुत अधिक रहा है प्राचीन काल के लोकतांत्रीय राज्यों मे तो कार्यपालिका ही सब कुछ होती थी। यद्यपि वर्तमान समय में कार्यपालिका का महत्व पहले से कम हो गया है, किंतु फिर भी अंतिम रूप में सरकार के समस्त अंगों का उत्तरदायित्व कार्यपालिका पर ही होता है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों यह पोस्ट हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर लिखा है इसलिए यह पोस्ट काफी हद तक सही है अगर आप सबक इस पोस्ट में कुछ मिस्टेक दिखाई पड़ता है तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयास करेंगे।

Written by skinfo

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

संसदात्मक व अध्यक्षात्मक शासन की विशेषताएं-Sansdatmak va Adhykshatmak Visheshtaen

न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के उपाय(nyaypalika swatantrta ko banaye Rakhne ke upay)