नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है आज हम इस आर्टिकल में सहज और सरल शब्दों में चर्चा करने जा रहे हैं खिलजी वंश का विस्तार। दोस्तों बलबन की मृत्यु के बाद दिल्ली की सत्ता पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए तुर्क तथा खिलजी सरदारों के मध्य संघर्ष प्रारंभ हो गया। इस संघर्ष में खिलजी सरदार जलालुद्दीन फिरोज सुल्तान बनने में सफल रहा। जलालुद्दीन फिरोज खिलजी के पूर्व अफगानिस्तान के खाल्ज नामक स्थान से भारत आए थे। अब गानों की भाषा में प्रदेश को खाली कहते हैं अतः यह खेल जी का लाइव। चलिए दोस्तों हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं खिलजी वंश का विस्तार
खिलजी वंश का विस्तार Khilji Vansh ka vistar
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290 – 1296ई०)
जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने दिल्ली में खिलजी वंश की स्थापना की वह एक उदार सहिष्णु शासक था उसने दंड के नियमों को माननीय बनाने पर ध्यान दिया तथा विद्रोही तुर्क सरदारों को संतुष्ट करने की नीति अपनाई।
सुल्तान का भतीजा अलाउद्दीन जो कड़ा (कौशांबी उत्तर प्रदेश) एवं अवध का इक्तादार तथा रक्षा मंत्री था, देवगिरी पर आक्रमण करने के लिए स्वयं निकला। वहां उसे बिजई के साथ-साथ अपार धन मिला। सुल्तान अपने भतीजे अलाउद्दीन के इस अभियान की सफलता के कारण उससे मिलने कड़ा (कौशांबी उत्तर प्रदेश) की ओर चल पड़ा। पर कड़ा में सुल्तान की हत्या उसके भतीजे अलाउद्दीन द्वारा कर दी गई। जलालुद्दीन की मृत्यु के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने सिंहासन प्राप्त किया।
अलाउद्दीन खिलजी (1296 – 1316)
अलाउद्दीन खिलजी 1296 ई० में दिल्ली के तख्त पर बैठा। वह महान विजेता कुशल शासक और चतुर राजनीतिज्ञ था। उसके सुल्तान बनते समय दिल्ली सल्तनत में अव्यवस्था का बोलबाला था। उलेमाओं का दखल शासन में बहुत बढ़ गया था। अमीर तथा सरदार विद्रोह कर रहे थे। मंगोल आक्रमणकारी लगातार हमले कर रहे थे। इन परिस्थितियों का सामना उसने बड़े धैर्य तथा सुनियोजित योजना बनाकर किया। सबसे पहले उसने जलालुद्दीन खिलजी की उदार एवं सहिष्णु की नीति का त्याग कर कठोर नियमों को लागू किया। इन कठोर नियमों तथा सुनियोजित योजनाओं के बल पर वह विशाल साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहा। और वह 1316 ई० तक राज्य किया।
फिर अलाउद्दीन खिलजी के बाद मुबारकशाह दिल्ली सल्तनत का अंतिम शासक बना जोकि 1316 से 1320 ई० यानी 4 वर्ष तक रहा।
प्रशासन में राज्य और धर्म का अलगाव– 2 दिन को शासन के मामले में धर्मगुरुओं (उलेमा) का दखल पसंद नहीं था। इसलिए वह शासन संबंधी नियम बनाने और उन्हें लागू करने में उनकी बातों को नहीं मानता था।
सैनिक सुधार– अलाउद्दीन खिलजी की विजयों का श्रेय उसकी संघर्ष सेना को था। अलाउद्दीन ने एक विशाल स्थाई सेना का संगठन किया। उसकी सेना में 475000 सैनिक थे। सैनिकों की नियुक्ति घुड़सवारी शस्त्र चलाने की योग्यताओं के आधार पर की जाती थी। सैनिकों के हुलिया का पूरा विवरण रखा जाता था सैनिकों को नगद वेतन देने की प्रणाली अपनाई गई और घोड़ों पर दांव लगाने की व्यवस्था प्रारंभ की। अपने विस्तृत साम्राज्य की सुरक्षा के लिए उसने अनेक नए किलो का निर्माण कराया तथा पुराने किलो की मरम्मत करवाई। इन किलों को रसद आपूर्ति की भी पूरी व्यवस्था की गई।
राज्य विस्तार
सुल्तान बनने के बाद अलाउद्दीन ने अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहा। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उसने गुजरात, रणथंभोर, चित्तौड़, उज्जैन, मांडू, धार तथा चंदेरी के राजपूत राजाओं को हराकर उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया।
अलाउद्दीन के सेनापति मलिकापुर न वारंगल दक्षिण भारत के देवगिरी तेलंगाना (वारंगल) और होयसल राज्यों पर विजय प्राप्त की और उन्हें सुल्तान की अधीनता स्वीकार करने के लिए विवश किया। इन शासकों को इस शर्त पर अपने राज्य में शासन करने दिया गया कि वे सुल्तान को कर देते रहेंगे एवं उसकी अधीनता स्वीकार करेंगे।
अलाउद्दन ने दक्षिण के राज्यों को अपने राज्य में क्यों नहीं मिलाया इस तरह की नींद गुप्त साम्राज्य किस शासक ने अपनाई थी।
अमीरों तथा सरदारों पर नियंत्रण
अलादीन का मानना था कि दावतों तथा उस समय में मिलने से अमीरों तथा सरदारों मैं निकटता तथा आत्मीयता बढ़ती है जिसे सुल्तान के षड्यंत्र एवं विद्रोह करने का अवसर मिलता है। अतः बिद्रोहो का रोकने के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने दरबार के अमीरों से सरदारों पर कठोर प्रतिबंध लगाए उनके इलाकों पर राज्य द्वारा अधिकार कर लिया गया। अमीरों के दावतों मदिरापान एवं गोष्ठियों पर भी नियंत्रण लागू किया गया। सुल्तान के पूर्व आज्ञा के बिना अमीर सामाजिक समारोहों का आयोजन नहीं कर सकते थे। उनको तो सदैव उन पर नजर भी रखते थे इन प्रतिबंधों से सरदार और अमीर भयभीत हो रहे थे सुल्तान के विरुद्ध किसी को उठाने का साहस नहीं था। इस प्रकार उसका अमीरों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था।
कृषि नीति
अलाउद्दीन पहला मध्यकालीन शासक था जिसने लगान का सही अनुमान लगाने के लिए भूमि को विस्वा से नापने की प्रथा शुरू की। लगान पैसे में नहीं बल्कि अनाज के रूप में वसूल किया जाने लगा ताकि नगरों को पर्याप्त मात्रा में अनाज पहुंचाया जा सके।
साहित्य व कला का विकास
प्रसिद्ध विद्वान अमीर खुसरो व बरनी उसके दरबार में रहते थे। अमीर खुसरो का लोकप्रिय नाम तूती-ए-हिंद था। तथा वह प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य अमीर खुसरो को खड़ी बोली तथा सितार के आविष्कार का श्रेय दिया जाता है। अमीर खुसरो अपनी पहेलियों दोहों मुकरियों और कव्वालियों के लिए प्रसिद्ध है।
पहेली—–
एक गोरी ने यह गुण कीना, हरियल पिंजरे में दे देना।देखो जादूगर का कमाल, डाला हरा निकाला लाल।
अस्वीकरण(Disclemar)
दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ा होगा और विस्तारपूर्वक जाना होगा खिलजी वंश का विस्तार के बारे में दोस्तों आप और हमने अपने स्टडी के माध्यम से लिखा है इसलिए यह सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयास करेंगे।