नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में चर्चा करेंगे लोकसभा की रचना या संगठन के बारे में दोस्तों अगर आप किसी कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं तो आप सबके लिए यह आर्टिकल अच्छा साबित हो सकता है। तो चलिए दोस्तों अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं विस्तार पूर्वक लोकसभा की रचनाएं संगठन के बारे में?
लोक सभा की रचना या संगठन – Loksabha ki rachana ya संगठन
लोकसभा संसद का प्रथम या निम्न सदन है इसे लोकप्रिय सदन भी कहते हैं, क्योंकि इसे सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होते हैं।लोकसभा, राज्यसभा से अधिक शक्तिशाली है और अनेक प्रसंगों में संसद का आशय लोकसभा से ही लिया गया है।
सदस्य संख्या (sadasya sankhya)
मूल संविधान में लोकसभा के सदस्य संख्या 500 निश्चित की गई थी, लेकिन समय-समय पर इसे वृद्धि की गई अब गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम 1987 द्वारा निश्चित किया गया है कि लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 552 हो सकती है। इनमें से अधिकतम 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से व अधिकतम 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित किए जा सकेंगे एवं राष्ट्रपति आंग्ल भारतीय वर्ग के 2 सदस्य का मनोनयन कर सकेंगे। वर्तमान में लोकसभा 15वीं लोकसभा के सदस्य संख्या 545 है यह सदस्यों में 530 सदस्य 28 राज्यों से और 13 सदस्य 7 संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित होते हैं तथा 2 सदस्य आंग्ल भारतीय वर्ग के प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत हैं। भारतीय संविधान में व्यवस्था की गई थी कि प्रति 10 वर्ष पश्चात होने वाली गणना के आधार पर परिसीमन आयोग लोकसभा में राज्यों में संघीय क्षेत्रों के प्रतिनिधियों की संख्या निश्चित करेगा।
संविधान की इस व्यवस्था के अंतर्गत 1971 की जनगणना के आधार पर भविष्य के लिए लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या निश्चित की गई।
71ववें संवैधानिक संशोधन 1992 और 84वें संवैधानिक संशोधन 2002 के आधार पर लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या और लोकसभा में राज्यवार प्रतिनिधित्व 2026 तक यथावत रखने का निर्णय लिया गया है। कोरियर स्थानों और राज्यवार प्रतिनिधित्व यथावत रखते हुए राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्सीमांकन किया जा सकेगा। पुनर्सीमांकन के आधार पर आरक्षित सीटों की संख्या में परिवर्तन हो सकता है, आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र को सामान निर्वाचन क्षेत्र और सामान निर्वाचन क्षेत्र को आरक्षित बनाया जा सकता है। संवैधानिक संशोधन के आधार पर व्यवस्था की गई है कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्सीमांकन 2001 ईस्वी की जनगणना के आधार पर किया जाएगा। इसी व्यवस्था के आधार पर 2008 में लोकसभा की सीटों का परिसीमन किया गया था नए परिसीमन के बाद आरक्षित वर्ग की सीटें बढ़ गई हैं तथा निर्वाचन क्षेत्रों की पूर्व सीमा में भी परिवर्तन हो गया है।
निर्वाचन (Nirvachan)
लोकसभा के सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से और वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। भारत में 61वें संविधान संशोधन के अनुसार अब 18 वर्ष की आयु प्राप्त व्यक्ति को वयस्क माना गया है। अब लोकसभा के सभी निर्वाचन क्षेत्र एकल सदस्यीय रखे गए हैं। प्रतिनिधित्व का अनुपात को अपवादों को छोड़कर यथासंभव समस्त देश में समान रखने का प्रयत्न किया जाएगा। मूल संविधान में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों हर 10 वर्ष की अवधि के लिए स्थान सुरक्षित रखे गए थे किंतु बाद में या अवैध बढ़ा दी गई संविधान के 79वें संवैधानिक संशोधन 1999 के अनुसार 25 जनवरी 2010 ईस्वी तक बढ़ा दी गई थी। लेकिन अगस्त 2009 में 95वें संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद 334 को संशोधित कर आरक्षण की अवधि अगले 10 वर्ष अर्थात 25 जनवरी 2020 तक बढ़ा दी गई थी।
मतदाताओं के लिए योग्यताएं (matdataon ke liye yogyataen)
लोकसभा के चुनाव में उन सभी व्यक्तियों को मतदान का अधिकार है जो:
1. उसे भारत के नागरिक होना चाहिए।
2. उसकी आयु 18 वर्ष या अधिक होना चाहिए।
3. वह पागल या दिवालिया नहीं होना चाहिए।
4. जिन्हें संसद के कानून द्वारा किसी अपराध भ्रष्टाचार या गैर-कानूनी व्यवहार के कारण मतदान से वंचित नहीं कर दिया गया हो।
सदस्यों के लिए योग्यताएं (sadasyon ke liye yogyataen)
लोकसभा की सदस्यता के लिए संविधान के अनुसार निम्नलिखित योग्यताएं होना आवश्यक है:
1. वह व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
2. उसी की आयु 25 वर्ष या उससे अधिक हो।
3. भारत सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के अंतर्गत वह कोई लाभ पद का धारणा किए हो।
4. वह किसी न्यायालय द्वारा पागल ना ठहराया हो तथा दिवालिया ना हो।
योग्यताओं के अतिरिक्त अन्य योग्यताएं निर्धारित करने का अधिकार संविधान के द्वारा संसद को दिया गया है। इस अधिकार के अंतर्गत संसद ने 1951 में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम पास कर संसद सदस्यों के लिए अगर योग्यताएं निर्धारित की है।
कार्यकाल (karyakal)
लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष है प्रधानमंत्री के परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा लोकसभा को समय से पूर्व भी भंग किया जा सकता है ऐसा अब तक 9 बार 1970, 1977, 1979 नवंबर, 1984 नवंबर, 1989 मार्च, 1991 दिसंबर, 1997 अप्रैल, 1999 और फरवरी 2004 में किया गया है। संकटकाल की घोषणा लागू होने पर संसद विधि द्वारा लोकसभा के कार्यकाल में वृद्धि कर सकती है जो एक बार में 1 वर्ष से अधिक ना होगी। 1976 में लोकसभा का कार्यकाल 2 बार एक-एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया था।
लोकसभा को समय के पूर्व कब या किन परिस्थितियों में भंग किया जा सकता है (Loksabha ko Samay ke purv kab ya kin paristhitiyon Mein Bhang Kiya Ja sakta hai)
विशेष रुप से दो परिस्थितियों में लोकसभा को समय से पूर्व (5 वर्ष का कार्यकाल समाप्त होने से पहले) बंद किया जा सकता है।
2. जब केंद्र में एक सरकार का पतन हो जाए तथा उसके स्थान पर दूसरे सरकार का गठन कर पाना संभव ना हो।
उदाहरण– अप्रैल 1999 में बाजपेई सरकार का पतन हो गया तथा विपक्षी दल सरकार का गठन ना कर पाये।
2. संसदीय व्यवस्था का यह निश्चित व्यवहार है कि जब प्रधानमंत्री राष्ट्राध्यक्ष (भारत के प्रसंग में राष्ट्रपति) को परामर्श दें कि लोकसभा को समय के पूर्व भंग कर दें तो राष्ट्रपति इस परामर्श को स्वीकार करते हुए लोकसभा को भंग कर देते हैं। राष्ट्रपति वैधानिक दृष्टि से इस प्रकार का परामर्श मारने के लिए बाध्य नहीं है, लेकिन सामान्य व्यवहार यही है कि इस प्रकार के परामर्श को स्वीकार किया जाएगा।
अधिवेशन (adhiveshan)
लोकसभा और राज्यसभा के अधिवेशन राष्ट्रपति के द्वारा ही बुलाए और आस्था गीत किए जाते हैं और इस संबंध में नियम केवल या है कि लोकसभा की दो बैठकों में 6 माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए।
लोकसभा अध्यक्ष के कार्य और शक्तियां (Loksabha Adhyaksh ke Karya aur shaktiyan)
भारतीय लोकसभा के अध्यक्ष को लगभग वही अधिकार प्राप्त है जो ब्रिटिश लोक सदन के अध्यक्ष को हैं। अध्यक्ष के द्वारा लोकसभा की सभी बैठकों की अध्यक्षता की जाती है और अध्यक्ष होने के नाते उसके द्वारा सदन में शांति व्यवस्था और अनुशासन बनाए रखने का कार्य किया जाता है। यदि उसकी दृष्टि में सदन के किसी सदस्य का आचरण अनुचित हो तो वह उसे सदन के बाहर भेज सकता है। यदि कोई सदस्य उसकी अज्ञाएं ना माने वह सदन की कार्रवाई में निरंतर बाधा डाले तो वह उसके सदस्यता को निलंबित भी कर सकता है।
अस्वीकरण (Disclemar)
दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी विस्तार पूर्वक पढ होगा और समझा होगा कि लोकसभा की रचना या संगठन कैसे होता है। दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर दिया है इसलिए यह आर्टिकल सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं। हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।