नमस्कार मित्रों हमारे बेवसाइड में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है। आज हम बात करने जा रहे हैं नागरिक के अधिकार और उनके कर्तव्य के बारे में दोस्तों स्वभावतया प्राकृति के द्वारा सब मनुष्यों को समान रूप से उत्पन्न किया गया है। और उनके कुछ जन्मजात अधिकार हैं जिन्हें मनुष्य स्वयं अपने जीवन अथवा अपनी संतानों से पृथक नहीं कर सकते यथा जीवन और स्वतंत्रता संपत्ति के अर्जन और सुखी जीवन की प्राप्ति का अधिकार है। तो चलिए दोस्तों अब हम आगे बढ़ते हैं और इस आर्टिकल में आप सब को बताते हैं सबसे पहले नागरिक के अधिकार की परिभाषा फिर उसके बाद में हम बताएंगे कि नागरिक के कर्तव्य के बारे में बस आप लोग इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ें?
नागरिक के अधिकार की परिभाषा(Nagrik ke Adhikar Ki Paribhasha)
प्राकृति के द्वारा मनुष्य को विभिन्न प्रकार की शक्तियां प्रदान की गई हैं, लेकिन इन शक्तियों का स्वयं अपने और समाज के हित में उचित रूप से प्रयोग करने के लिए बाहरी सुविधाओं की आवश्यकता होती है। राज्य का सर्वोत्तम लक्ष्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का पूर्ण विकास है, इस कारण राज्य के द्वारा व्यक्ति को यह सुविधाएं प्रदान की जाती है और राज्य के द्वारा व्यक्ति को प्रदान की जाने वाली इन बाहरी सुविधाओं का नाम ही अधिकार है।
´´ अधिकार का अभिप्राय राज्य द्वारा व्यक्ति को दी गई कुछ कार्य करने की स्वतंत्रता या सकारात्मक सुविधा प्रदान करता है जिससे व्यक्ति अपनी शारीरिक, मानसिक एवं नैतिक शक्तियों का पूर्ण विकास कर सके प्रमुख विद्वानों द्वारा अधिकार की निम्नलिखित शब्दों में परिभाषाएं की गई हैं
नम्बर | विद्वान | |
1. | लास्की | अधिकार सामाजिक जीवन की वह परिस्थितियां हैं जिनके अभाव में सामान्यतया कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर पाता है |
2. | वाइल्ड | अधिकार कुछ विशेष कार्यों को करने की सुधि नेता की उचित मांग है |
3. | बोसांके | अधिकार वह मांग है जिसे समाज सरकार करता है और राज लागू करता है |
4. | डॉ.बेनी प्रसाद | अधिकार व सामाजिक दशा में हैं जो कि मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं |
5. | श्रीनिवास शास्त्री | अधिकार समुदाय के कानून द्वारा स्वीकृत वह व्यवस्था, नियम या।रीति है जो नागरिक के सर्वोच्च नैतिक कल्याण में सहायक हो।´´ |
नागरिक के अधिकार के आवश्यक लक्षण(Nagrik ke Adhikar ke Aawasyk Lacchan)
लास्की, बाइल्ड और श्रीनिवास शास्त्री ने अधिकार की जो परिभाषाएं दी हैं उन परिभाषा और अधिकार के सामान्य धारणा के आधार पर अधिकार के निम्नलिखित आवश्यक लक्षण कहे जा सकते हैं:
1.सामाजिक स्वरूप– अधिकार का सर्वप्रथम लक्षण यह है कि अधिकारी के लिए सामाजिक स्वीकृति आवश्यक है, सामाजिक स्वीकृति के अभाव में व्यक्त जीने शक्तियों का उपयोग करता है उसके अधिकार ना होकर प्राकृतिक शक्तियां हैं। अधिकार तो राज्य द्वारा नागरिकों को प्रदान की गई स्वतंत्रता और सुविधा का नाम है और इस स्वतंत्रता एवं सुविधा की आवश्यकता तथा उपभोग समाज में ही संभव है। ब्रिटिश विचारक टी.एच. ग्रीन ने अधिकार समाज द्वारा स्वीकृत होते हैं। राज्य केवल उन्हें कानूनी मान्यता प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त राज्य के द्वारा व्यक्ति को जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अधिकार प्रदान किए जाते हैं, उसकी स्थिति समाज में ही संभव है इस दृष्टि से भी अधिकार समाज जगत ही होते हैं।
2. कल्याणकारी स्वरूप- अधिकारों का संबंध आवश्यक रूप से व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास से होता है। इस कारण अधिकारी के रूप में केवल वही स्वतंत्रता और सुविधाएं प्रदान की जाती है, जो व्यक्तित्व के विकास हेतु आवश्यक या सहायक हो।
3. लोकहित में प्रयोग- व्यक्ति को अधिकार उसके स्वयं के व्यक्तित्व के विकास और संपूर्ण समाज के सामूहिक हित के लिए प्रदान किए जाते हैं।
4. राज्य का संरक्षण- अधिकार का एक आवश्यक लक्षण यह भी है कि उसकी रक्षा का दायित्व राज्य अपने ऊपर लेता है और इस संबंध में राज्य और सकता व्यवस्था भी करता है।
5. सार्वभौमिक या सर्वव्यापकता- अधिकार का एक अन्य लक्षण या भी है कि अधिकार समाज के सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्रदान किए जाते हैं और इस संबंध में जाति, धर्म, लिंग और वर्ग के आधार पर कोई भेद नहीं किया जाता है। अधिकारों में भेदभाव करना अधिकारों की मूल भावना की हनन है।
अधिकारों का वर्गीकरण(Adhikaron ka wargikaran)
दोस्तों साधारणतया अधिकार दो प्रकार के होते हैं -(1)नैतिक अधिकार और (2)कानूनी अधिकार
1.नैतिक अधिकार – नैतिक अधिकार हुए अधिकार होते हैं जिनका संबंध मानव के नैतिक आचरण से होता है।
2.कानूनी अधिकार- यह वह अधिकार हैं जिनके व्यवस्था राज्य द्वारा की जाती है और जिन का उल्लंघन कानून से दंडनीय होता है कानून का संरक्षण प्राप्त होने के कारण इन अधिकारों को लागू करने के लिए राज्य द्वारा आवश्यक कार्रवाई की जाती है
कानूनी अधिकार के दो भेद किए जा सकते हैं सामाजिक या नागरिक अधिकार राजनीतिक अधिकार
- सामाजिक या नागरिक अधिकार(social or civil rights) इसका तात्पर्य है कि समाज में धर्म जाति भाषा संपत्ति वर्ण या लिंग के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और व्यक्ति को व्यक्ति होने के नाते ही समाज में सम्मान प्राप्त होना चाहिए।
- राजनीतिक का अधिकार (right to politic)
इसका तात्पर्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता अनुसार बिना किसी भेदभाव के देश के शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होना चाहिए।
मित्रों अभी तक आपने जाना नागरिक के अधिकार के बारे में अब हम आप सब को बताते हैं कि नागरिक के कर्तव्य क्या-क्या होने चाहिए।
नागरिक के कर्तव्य(Nagrik ke kartaby)
किसी विशेष कार्य के करने या न करने के संबंध में व्यक्ति के उत्तरदायित्व को ही कर्तव्य कहा जा सकता है। दूसरे शब्दों में जिन कार्यों के संबंध में समाज एवं राज्य सामान्य रूप से व्यक्ति से यह आशा करता है, कि उसे वह कार्य करने चाहिए वही व्यक्ति के कर्तव्य कहे जा सकते हैं। कर्तव्य दो प्रकार के होते हैं (1)नैतिक कर्तव्य और (2)कानूनी कर्तव्य।
1. नैतिक कर्तव्य(moral duty)- नैतिक कर्तव्यों से तात्पर्य उन कर्तव्यों से है जिनका संबंध मनुष्य के अंतः करण में नैतिकता व औचित्य और अनौचित्य की प्रवृति से होता है: जैसे सत्य बोलना और प्राणी मात्र के हित की कामना आदि।
2. कानूनी कर्तव्य(legal duty)- ये व्यक्ति के वे कर्तव्य होते हैं जिनका पालन करना अनिवार्य होता है। जिनका पालन न करने पर व्यक्ति को राज्य द्वारा प्रदत्त दंड के भागी होते हैं।
निष्कर्ष(conclusion)
दोस्तों पूरा आर्टिकल पढ़ने के बाद निष्कर्ष यह निकल कर आता है की अधिकार हमारे सामाजिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकता रहे हैं जिनके बिना ना तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और ना ही समाज के लिए उपयोगी कार्य कर सकता है
वस्तुतः अधिकारों के बिना मानव जीवन के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है इस कारण वर्तमान समय में प्रत्येक राज्य के द्वारा अधिकाधिक विस्तृत अधिकार प्रदान किए जाते हैं
अस्वीकरण(Disclaimer)
यह पोस्ट हमने अपनी जानकारी के माध्यम से लिखा है। इसलिए यह पोस्ट काफी हद तक सही है यदि इसमें कोई मिस्टेक दिखाई देती है, तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं।