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नीति निदेशक तत्व किसे कहते हैं। अर्थ, महत्व और आलोचना- Niti nideshak Tatv Kise Kahate hain. Arth, mahatva aur aalochana

नमस्कार दोस्तों आप सब का हमारे व्यवसाय में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में चर्चा करने जा रहे हैं नीति निदेशक तत्व किसे कहते हैं अर्थ, महत्व और आलोचना के बारे में दोस्तों संविधान निर्माताओं का लक्ष्य भारत में लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना था। और इसलिए उन्होंने नीति निर्देशक तत्वों में ऐसी बातों का समावेश किया जिन्हें कार्य रूप में परिणत किए जाने पर एक लोककल्याणकारी राज्य की स्थापना संभव हो सकती है

तो चलिए दोस्तों हम इस आर्टिकल में आगे बढ़ते हैं और सबसे पहले चर्चा करते हैं नीति निदेशक तत्वों का अर्थ और स्वरूप के बारे में-

नीति निदेशक तत्व का अर्थ और स्वरूप ( Niti nideshak Tatv ka Arth aur Swaroop)

दोस्तों निदेशक तत्व हमारे राज्य के सम्मुख कुछ आदर्श उपस्थित करते हैं, जिनके द्वारा देश के नागरिकों का सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक उत्थान हो सकता है। संविधान की प्रस्तावना द्वारा भारत के नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता एवं न्याय प्रदान करवाने का लक्ष्य इन आदेशों को क्रियान्वित किए जाने पर ही पूर्ण हो सकता है। यह निदेशक तत्व एक प्रकार से राज्य के लिए नैतिकता के सूत्र हैं तथा देश में स्वस्थ एवं वास्तविक प्रजातंत्र की स्थापना की दिशा में प्रेरणा देने वाले हैं।

इन तत्वों की प्रकृति के संबंध में संविधान की 37वीं धारा में कहा गया है कि.´´ इस भाग में दिए गए वह बंधुओं को किसी भी न्यायालय द्वारा बाध्यता नहीं दी जा सकेगी, किंतु तो भी इसमें दिए हुए तत्व देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि निर्माण में इन तत्वों का प्रयोग करना राज का कर्तव्य होगा

इस धारा से यह बात स्पष्ट है कि निदेशक तत्वों को मूल अधिकारों के समान वैधानिक शक्ति प्रदान नहीं की गई है अर्थात निदेशक तत्वों की क्रियान्वित के लिए न्यायालय के द्वारा किसी भी प्रकार के आदेश जारी नहीं किए जा सकते हैं। वैधानिक शक्ति प्राप्त ना होने पर भी यह तत्व राज्य शासन के संचालन के आधारभूत सिद्धांत हैं और राज्य का यह नैतिक कर्तव्य है कि व्यवहार में सदैव ही इन तत्वों का पालन करें। निदेशक तत्वों की प्रकृति को स्पष्ट करते हुए जी.एन.जोशी ने लिखा है की´´ इन निदेशक तत्वों का विधान मंडलों को कानून बनाते हुए और कार्यपालिका को इन कानूनों को लागू करते हुए समय ध्यान रखना चाहिए। यह उस नीति के और संकेत हैं जिसका अनुकरण संघ ओर राज्यों को करना चाहिए।

अमरनंदी का कथन है कि.´´ नीति निदेशक तत्व ऐसे आदेश के रूप में है जो संविधान द्वारा राज्य को दिए गए हैं।

नीति निदेशक तत्वों का स्वरूप – नींद निदेशक तत्वों के स्वरूप के संबंध में प्रमुखतया निम्न तीन बातें उल्लेखनीय हैं :

1. इन तत्वों को न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जा सकता। दूसरे शब्दों में इन्हें वैधानिक सख्त प्रप्त नहीं है।

2. निदेशक तत्व देश के शासन में मूलभूत स्थान रखते हैं।

3. कानून बनाते समय इन तत्वों का प्रयोग करना राज्य का कर्तव्य होगा। यहां राज्य का अभिप्राय सभी राजनीतिक सत्ताओं से है। केंद्रीय सरकार, संसद, राज्य सरकार, विधानमंडल और भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी इसके अधीन हैं।

नीति निदेशक तत्वों को इसलिए कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं बनाया गया कि इनके क्रियान्वयन में अत्यधिक संसाधनों की आवश्यकता होगी जो कि राज्य की छमता के बाहर हो सकते हैं।

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नीति निदेशक तत्व ( Niti nideshak Tatv )

संविधान की धारा 38 से 51 तक में राज्य नीति के निदेशक तत्व का वर्णन किया गया है। अध्ययन की सुविधा के लिए इन तत्वों को निम्न वर्गों में बांटा जा सकता है:

क्र.नीति निदेशक तत्व
1. आर्थिक सुरक्षा संबंधी निदेशक तत्व
2. सामाजिक हित संबंधी निदेशक तत्व
3. न्याय शिक्षा और प्रजातंत्र संबंधी निदेशक तत्व
4. प्राचीन स्मारकों की रक्षा संबंधी निदेशक तत्व
5. अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा संबंधी निदेशक तत्व

1. आर्थिक सुरक्षा संबंधी निदेशक तत्व – भारतीय संविधान के निर्माताओं का उद्देश्य भारत में एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना था और इस दृष्टि से अधिकांश निदेशक तत्वों द्वारा आर्थिक सुरक्षा और आर्थिक न्याय के संबंध में व्यवस्था की गई है। संविधान में इस प्रकार के नियम तत्वों का उल्लेख है:

(1) राज प्रत्येक स्त्री और पुरुष को समान रूप से जीविका के साधन प्रदान करने का प्रयत्न करेगा।

(2) राज देश के भौतिक साधनों के स्वामित्व और नियंत्रण की ऐसी व्यवस्था करें कि अधिक से अधिक सार्वजनिक हित हो सके।

(3) राज इस बात का भी ध्यान रखना कि संपत्ति और उत्पादन के साधनों का इस प्रकार केंद्रीकरण ना हो कि सार्वजनिक हित को किसी प्रकार की हानि पहुंचे।

(4) राज्य प्रत्येक नागरिक को चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, समान कार्य के लिए समान वेतन प्रदान करेगा।

(5) राज श्रमिक पुरुषों और स्त्रियों के स्वास्थ्य और शक्ति तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग ना होने देगा।

(6) मूल संविधान में कहा गया था कि राज्य बच्चों तथा युवकों की शोषण से तथा भौतिकी अनैतिक परित्याग से रक्षा करेगा 42 वें संवैधानिक संशोधन द्वारा उसे इस प्रकार संशोधित किया गया है:´´ राज्य के द्वारा बच्चों को स्वस्थ रूप में विकास के लिए अवसर और सुविधाएं प्रदान की जाएंगी, उन्हें स्वतंत्रता और सम्मान की स्थिति प्राप्त होगी, बच्चों तथा युवकों की शोषण से तथा भौतिकी या नैतिक परित्याग से रक्षा की जाएगी।

(7) राज्य अपनी आर्थिक साधनों के अनुसार और विकास की सीमाओं के भीतरिया प्रयास करेगा कि सभी नागरिक अपनी योग्यता के अनुसार रोजगार पा सकें, शिक्षा पा सकें, एवं बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी और अंगहीनता आदि दिशाओं में सर्वजनिक सहायता प्राप्त कर सकें।

(8) राज ऐसा प्रतिक्रिया क व्यक्तियों को अपने अनुकूल अवस्थाओं में ही कार्य करना पड़े तथा स्त्रियों को प्रसूतावस्था में कार्य ना करना पड़े।

(9) राज इस बात का प्रतिक्रिया की कृषि और उद्योग में लगे हुए सभी मजदूरों को अपने जीवन – निर्वाह के लिए यथोचित वेतन मिल सके, उनका जीवन – स्तर ऊपर उठ सके, वे अवकाश के समय का उचित उपयोग कर सके तथा उन्हें सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति का अवसर प्राप्त हो सके।

(10) राधिका करते बाकी गांव में व्यक्तिगत अथवा सहकारी आधार पर कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन दे।

(11) वैज्ञानिक आधार पर कृषि का संचालन करना भी राज्य का कर्तव्य होगा।

(12) राज्य पशुपालन की अच्छी प्रणालियों का प्रचलन करेगा और गायों, बछड़ों तथा अन्य दुधारू और वाहक पशुओं की नस्ल सुधारने और उनके वध को रोकने का प्रयत्न करेगा।

42वे संवैधानिक संशोधन द्वारा आर्थिक सुरक्षा संबंधी दो निदेशक तत्व और जोड़े गए हैं यह अग्र प्रकार हैं :

(13) राज इस बात का प्रयत्न करेगा कि कानूनी व्यवस्था का संचालन समान अवसर तथा न्याय की प्राप्ति में सहायक हो और उचित व्यवस्थापन, योजना या अन्य किसी प्रकार से समाज के कमजोर वर्गों के लिए निशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था करेगा जिससे आर्थिक असमर्थ या अन्य किसी प्रकार से व्यक्ति न्याय प्राप्त करने से वंचित ना रहे।

(14) राज उचित व्यवस्थापन या अन्य प्रकार से औद्योगिक संस्थानों के प्रबंध में कर्मचारियों के भागीदार बनाने के लिए कदम उठाएगा

44वे संवैधानिक संशोधन (अप्रैल 1979) द्वारा आर्थिक सुरक्षा संबंधी निदेशक तत्वों में एक और तत्व जोड़ा गया।इसमें कहा गया कि ´´ राज न केवल व्यक्तियों की आए और उनके सामाजिक अक्षर सुविधाओं और अवसरों संबंधित भेदभाव को कम से कम करने का प्रयत्न करेगा।वरन् विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले और विभिन्न व्यवसायियों में लगे हुए व्यक्तियों के समुदायों के बीच विद्यमान आए सामाजिक स्तर सुविधाओं और अवसरों संबंधी भेदभाव को भी कम से कम करने का प्रयत्न करेगा

1. सामाजिक हित संबंधी निदेशक तत्व – इस संबंध में राज्य के अधोलिखित कर्तव्य निश्चित किए गए हैं:

(1) राज लोगों के जीवन स्तर को सुधारने और स्वास्थ्य सुधारने के लिए प्रेरित करेगा। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए औषधि में प्रयोग किए जाने के अतिरिक्त स्वास्थ्य के लिए हानिकारक मादक द्रव्य तथा अन्य पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध लगाएगा।

(2) राज्य जनता के दुर्बलता अंगों के विशेषता या अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा तथा अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से उन्नत करेगा और सामाजिक अन्याय तथा सभी प्रकार के शोषण से उनकी रक्षा करेगा।

3. न्याय, शिक्षा और प्रजातंत्र संबंधी निदेशक तत्व – भारत में सुगम और 16 व न्याय व्यवस्था शिक्षा के प्रचार और प्रसार तथा प्रजातंत्र की भावना की विकास के लिए भी कुछ निदेशक तत्वों का वर्णन किया गया है जो इस प्रकार हैं :

(1) राज्य भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक´´ समान नागरिक संहिता(Uniform Civil Code) प्राप्त कराने का प्रयास करेगा (अनुच्छेद 44)।

(2) राज्य की लोक सेवाओं में न्यायपालिका को कार्यपालिका से पृथक करने के लिए राज्य कदम उठाएगा।

(3) नीति निदेशक तत्वों के अंतर्गत मूल संविधान के अनुच्छेद 45 में कहा गया था : ´ विधान लागू होने के 10 वर्ष के समय में राज्य 14 वर्ष तक के बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने की व्यवस्था करेगा। विधान लागू होने के बाद 50 वर्ष के समय में भी इस स्थिति को प्राप्त नहीं किया जा सका। 86वें संवैधानिक संशोधन (2002) के आधार पर इस निदेशक तत्व को स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत मूल अधिकार की स्थिति प्रदान की गई है तथा निदेशक तत्वों में इस स्थान पर नया अनुच्छेद जोड़ा गया जो इस प्रकार है–´´ राज्य प्रारंभिक बाल्यावस्था में देखभाल और 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की शिक्षा के लिए प्रयास

(4) प्रजातंत्र की भावना के विकास के लिए निर्देशक तत्वों में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों के संगठन की ओर कदम उठाएगा और इन्हें उतन अधिकार प्रदान किए जाएंगे कि वह स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य कर सकें।

4. प्राचीन स्मारकों की रक्षा संबंधी निदेशक तत्व – इन तत्वों द्वारा प्राचीन स्मारकों कलात्मक महत्व के स्थानों राष्ट्रीय महत्व के भावनाओं की रक्षा का कार्य भी राज्य को सौंपा गया है। राज्य का कर्तव्य निश्चित किया गया है कि वह प्रत्येक स्मारक कलात्मक या ऐतिहासिक रुचि के स्थानों को जिसे संसद में राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर दिया हो रक्षा करने का प्रयत्न करेगा।

42वें संवैधानिक संशोधन में कहा गया है कि राज्य देश के पर्यावरण(Environment) की रक्षा और उसमें सुधार का प्रयास करेगा राज्य के द्वारा वनों और वन्य जीवन की सुरक्षा का भी प्रयास किया जाएगा

5. अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा संबंधी निदेशक तत्व – हमारे देश का आदर्श सदैव ही वसुधैव कुटुंबकम् का रहा है और हमने सदैव ही शांति तथा जियो और जीने दो के सिद्धांत को अपनाया है। इसी आदर्श को हमारे संविधान के अंतिम निदेशक तत्व में अग्र प्रकार बताया है।

राज अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में निम्नलिखित आदर्शों को लेकर चलने का प्रयत्न करेगा :

(अ) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा में वृद्धि

(ब) राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मान पूर्ण संबंध स्थापित करना,

(स) राष्ट्रों के आपसी व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधियों के प्रति आदर का भाव बढ़ाना,

(द) अंतर्राष्ट्रीय झगड़ों को मध्यस्थता द्वारा समझाने के लिए प्रोत्साहित करना।

निदेशक तत्वों की इस वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि इन तत्वों के आधार पर भारत में वास्तविक प्रजातंत्र की स्थापना हो सकेगी और हमारा देश एक ऐसा लोक कल्याणकारी राज्य बन सकेगा जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को स्वतंत्रता समानता तथा सामाजिक न्याय प्राप्त हो सकें।

नीति निदेशक तत्वों की आलोचना ( Niti nideshak tatvon ki aalochana )

जिस समय संविधान का निर्माण हो रहा था उसी समय संविधान सभा में और बाहर भी राज्य के निदेशक तत्व संबंधित बंधुओं की बहुत आलोचना हुई थी। संविधान के सभी कृत हो जाने के पश्चात भी अनेक विद्वानों ने कई आधारों पर इन तत्वों की आलोचना की है। आलोचकों की आलोचना के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं:

क्र. नीति निदेशक तत्वों की आलोचना
1. वैधानिक शब्द का अभाव
2. निदेशक तत्व काल्पनिक आदर्श मात्र
3. एक संप्रभुतासंपन्न राज्य में अप्राकृतिक
4. संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न होने की आशंका

1. वैधानिक शब्द का अभाव – निदेशक तत्वों की आलोचना का सबसे प्रमुख आधार यह है कि इन तत्वों को वैधानिक संघ प्रार्थना होने के कारण यह निरर्थक हैं। संविधान में राज्य नीति के निदेशक तत्वों को एक और तो देश के शासन में मूलभूत माना है केंद्र साथ ही वह वैधानिक शक्ति प्राप्त या न्याय योग्य नहीं है अर्थात न्यायालय उपर्युक्त सिद्धांतों को क्रियान्वित नहीं करा सकते। अतः आलोचकों की राय में यह निदेशक तत्व शुभ इच्छाएं (Pious Wishes) नैतिक आदेश (Moral Precepts) या ऐसी राजनीति घोषणाओं के समान हैं जिनका कोई संवैधानिक महत्व नहीं है।

2. निदेशक तत्व कल्पनिक आदर्श – मात्र – आलोचकों का कथन है कि निदेशक तत्वों में ऐसे कंपनी का आदर्शों का चित्रण किया गया है जिन्हें क्रियान्वित करना निश्चित रूप से बहुत दूर की बात है।

3.एक संप्रभुतासंपन्न राज्य में अप्राकृतिक – एक संप्रभुता संपन्न राज्य में इस प्रकार के सिद्धांतों को ग्रहण करना अप्राकृतिक भी प्रतीत होता है। एक उच्च सत्ता अधीनस्थ सत्ता को आदेश दे सकती है लेकिन एक संप्रभुता संपन्न राज्य को आदेश दिया जाए या नितांत अस्वाभाविक जान पड़ता है। विधिवेत्ताओं की दृष्टि में एक संप्रभुता संपन्न राज्य को इस प्रकार के आदेशों का कोई औचित्य नहीं है।

4. संवैधानिक गतिरोध उत्पन्न होने की आशंका – संवैधानिक विधिवेत्ताओं ने आशंका व्यक्त की है कि यह तत्व संवैधानिक द्वंद और गतिरोध के कारण भी बन सकते हैं। संविधान सभा में सन्थानम ने प्रकट किया था कि इन्हें निर्देशक तत्वों के कारण राजपथ तथा प्रधानमंत्री अथवा राज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच मतभेद पैदा हो सकता है इंसान संदेशों तत्वों के विरुद्ध व्यवस्थापिका से कोई विधेयक स्वीकृत करवा लेता है तो राष्ट्रपति या राज्यपाल इस आधार पर विधेयक पर निषेधाधिकार का प्रयोग कर सकते हैं कि वह शासन के मूलभूत सिद्धांत देकर तत्वों के विरुद्ध। इस प्रकार की घटनाएं कार्यपालिका के औपचारिक प्रधान और वास्तविक प्रधान के बीच मतभेदों को जन्म देगी और इससे संसदीय प्रजातंत्र को गंभीर आघात पहुंचा सकता है।

नीति निदेशक तत्वों का महत्व ( Nind nideshak tatvon ka mahatva )

नीति निदेशक तत्वों की आलोचना की गई है उसका यह तात्पर्य नहीं लिया जाना चाहिए कि वे बिल्कुल व्यर्थ और महत्वहीन वास्तव में संवैधानिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से निदेशक तत्वों का बहुत अधिक महत्व है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपनी स्टडी के माध्यम से ली है, इसलिए या पोस्ट बिल्कुल सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे अवश्य सुधारने का प्रयत्न करेंगे।

Written by skinfo

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