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प्लासी का युद्ध(Plasee ka Yuddh)

नमस्कार मित्रों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है आज हम बात करने जा रहे हैं Education से रिलेटेड प्लासी का युद्ध जो आप सबके लिए अति महत्वपूर्ण है। अगर आप लोग छात्र हैं। और किसी कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं, तो आप सबके लिए यह आर्टिकल पढ़ना बहुत आवश्यक है। दोस्तों प्लासी का युद्ध 23 जून 1757 ई. को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला और अंग्रेजों ने मुर्शिदाबाद के दक्षिण 22 मील दूर नदिया जिले में भागीरथी गंगा के किनारे प्लासी नामक गांव में आमने-सामने आ गई। ईस्ट इंडिया कंपनी के संघर्ष का परिणाम था। युद्ध के अत्यंत महत्वपूर्ण तथा अस्थाई परिणाम निकले इस युद्ध में भारत में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना कर दी। तो चलिए दोस्तों अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं इस आर्टिकल में प्लासी का युद्ध का विस्तार पूर्वक जानकारी। दोस्तों प्लासी का युद्ध जाने से पहले सबसे पहले हमें प्लासी के युद्ध का कारण स्वरूप एवं महत्त्व जानना होगा। तभी समझ में आएगा की प्लासी का युद्ध कैसे और किस कारण हुआ था।

1. प्लासी के युद्ध के कारण स्वरूप एवं महत्व
2. सिराजुद्दौला का नवाब बनना सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से संबं
3. सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से संबंध
4. अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच संघर्ष के कारण
5. संघर्ष का प्रारंभ
6. काली कोठरी की दुर्घटना
7.अंग्रेजों की प्रतिक्रिया
8.अलीनगर संधि
9. अंग्रेजों का षड्यंत्र एवं प्लासी के युद्ध का आरंभ

तो चलिए दोस्तों अब हम जानते हैं प्लासी का युद्ध कैसे और किस कारण हुआ था

https://youtu.be/u3E-NCc9x9w

प्लासी के युद्ध के कारण, स्वरूप एवं महत्व

बंगाल की तत्कालीन स्थितियों में अंग्रेजी स्वार्थ में ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने का मौका प्रदान किया। औरंगजेब की मृत्यु से उत्पन्न राजनीतिक विश्व श्रृंखलता का लाभ उठाकार अलीवर्दी खां जो पहले बिहार का नायब निजाम था। उसने अपनी सक्ति अत्यधिक बढ़ा ली थी। इसलिए 1740 ई.तक पर्याप्त शक्ति एवं प्रतिष्ठा हासिल कर ली। वह एक महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसने बंगाल के तत्कालीन नवाब सरफराज खान से विद्रोह कर उसे युद्ध में परास्त कर मार डाला। और स्वयं ही नवाब बन बैठा अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उसने मुगल सम्राट मोहम्मद शाह को धन देकर अपनी नवाबी को कानूनी मान्यता भी दिलवाई। उसने कुशलतापूर्वक बंगाल के प्रशासन का संचालन किया। और अंग्रेजी और फ्रांसीसी कंपनियों को बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने से रोके रखा। उसने यूरोपियों की मधुमक्खियों से तुलना की थी, यदि उन्हें ना छेड़ा जाए तो वें शहद देंगे और यदि छेड़ा जाए तो वह काट काट कर मार डालेंगे इसलिए वह इनकी गतिविधियों पर नियंत्रण रखें रहा।

सिराजुद्दौला का नवाब बनना

9 अप्रैल 1756 को अली वर्दी खान की मृत्यु हो गई।उसकी मृत्यु के साथ ही बंगाल में उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर षड्यंत्र होने प्रारंभ हो गए। जिसके चलते अंततः अंग्रेजों को बंगाल की राजनीति में हस्तक्षेप करने का मौका मिल गया। क्योंकि मृत नवाब अली वर्दी खां का कोई पुत्र नहीं था। इसलिए उसने अपनी सबसे छोटी बेटी के पुत्र सिराजुद्दौला को अपने जीवन काल में ही उत्तराधिकारी मनोनीत कर दिया था। अतः अली वर्दी खां की मृत्यु के पश्चात सिराजुद्दोला बंगाल का नवाब बन गया। नवाब बनने के साथ ही उसे अनेकों विरोधियों का सामना करना पड़ा नवाब के प्रबल प्रतिद्वंदी उसिकी मौसी घसीटी बेगम, उसका पुत्र शौकतजंग जो पूर्णिया का शासक था। तथा उसका दीवान राजवल्लभ थे। इन लोगों ने अपने पक्ष में सेनापति मिर्जाफर एवं कोलकात्ता के धनी व्यापारी अमीरचंद (अमीचंद) एवं जगत सेठ को भी मिला रखा था। यह सिराजुद्दौला को गद्दी से हटाकर अपना मनचाहा व्यक्ति नियुक्त करना चाहते थे। अतः सिराजुद्दौला के लिए आवश्यक था कि वह पहले अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ले सबसे पहले उसने घसीटी बेगम को कैद कर उसका सारा धन जप्त कर लिया। प्रारंभ में शौकतजंग ने सिराजुद्दौला से भयभीत होकर उसके प्रति वफादार रहने का वचन दिया। परंतु जब उसे मुगल बादशाह ने बंगाल के नवाबी की समद मिली तो सिराजुद्दोला ने उसे 16 अक्टूबर 1756 को मनिहारी के युद्ध में परास्त कर मार डाला। अब सिराजुद्दौला की आंतरिक स्थिति मजबूत हो गई। उसने आवश्यक प्रशासनिक परिवर्तन भी किए और अंग्रेजों की तरफ अपना पूरा ध्यान दिया।

सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से संबंध

दोस्तों अंग्रेज इस समय तक अपनी स्थिति मजबूत कर चुके थे। दक्षिण में फ्रांसीसीयों पर विजय होने से और बंगाल में धन कमाने से उनके हौसले बढ़ चुके थे। इसके साथ ही बंगाल की राजनीतिक स्थिति को देखते हुए भी वह अपना हित साधन चाहते थे। दूसरी तरफ नवाब भी अंग्रेजों की तरफ से सशंकित था। कहा तो यह भी जाता है कि अलीवर्दी खां ने सिराजुद्दौला को अंग्रेजों से सावधान रहने और उन्हें बंगाल में पांव नहीं जमाने देने की सलाह भी दी थी। फलत: अंग्रेजों के प्रति उसका सशंकित होना आवश्यक था। इसी समय अंग्रेजों के कार्यों ने भी सिराज को कड़ा कदम उठाने को बाध्य किया।

अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच संघर्ष के कारण

दोस्तों बंगाल के नवाब और अंग्रेजों के बीच संघर्ष के अनेक कारण थे। हुआ यूं कि अंग्रेजों ने सिराजुद्दौला के नवाब बनने पर उसे नजराना नहीं भेजा। इससे सिराज को दुख पहुंचा तथा उसने अपने आप को अपमानित महसूस किया। इतना ही नहीं अंग्रेज नवाब की आज्ञा की अवहेलना भी करते रहे वह नवाब के अधिकारियों की मदद से ही सारा काम करवा लेते तथा नवाब से किसी प्रकार का संबंध नहीं रखना चाहते थे। उन्होंने नवाब को एक बार कासिम बाजार की कोठी में भी आने से रोक दिया था। किसी भी शासक के लिए वह बहुत ज्यादा अपमानजनक स्थिति थी। इससे भी बड़ी बात तो यह थी कि अंग्रेज नवाब के रोकने के बावजूद कोलकात्ता एवं अन्य जगहों पर किलेबंदी करते रहे दस्तक के दुरुपयोग से नवाब को आर्थिक क्षति भी हो रही थी। अंग्रेज नवाब के विरोधियों शत्रुओं को शरण दे रहे थे। तथा राजनीतिक षड्यंत्र में संलग्न थे। उदाहरणस्वरूप कर्नल स्टाक ने नवाब को गद्दी से हटाने के लिए घसीटी बेगम, अमीरचंद आदि को सहयोग दिया था।

अंग्रेज राजनीतिक अपराधियों को भी अपने यहां शरण दे रहे थे। उन्होंने राजबल्लभ के पुत्र कृष्णबल्लभ को अपने यहां पनाह दी तथा नवाब की आज्ञा के बावजूद उसे वापस नहीं भेजा। ऐसी परिस्थिति में अंग्रेजों और नवाब के बीच संघर्ष होना अनिवार्य हो गया। वस्तुतः सिराजुद्दौला यूरोपीय व्यापारियों (अंग्रेज और फ्रांसीसी)को बंगाल में व्यापारी के रूप में देखने को तैयार तो था परंतु मालिक के रूप में नहीं। फ्रांसीसीयों ने उसकी आज्ञा मानकर चंद्रनगर की किलेबंदी नष्ट कर दी थी। परंतु अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाओ

ने कर्नाटक के युद्ध के पश्चात बड़ी हुई थी अंग्रेज सिराजुद्दौला की सार्वभौमिकता को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे ऐसी स्थिति में दोनों में संघर्ष होना अनिवार्य था।

संघर्ष का प्रारंभ पहला चरण

दोस्तों सिराजुद्दौला ने फोर्ट विलियम की किलेबंदी को नष्ट करने का आदेश दिया जिसे अंग्रेजों ने ठुकरा दिया। क्रोधित होकर नवाब ने मई 1756 में कासिम बाजार पर आक्रमण कर उस पर अधिकार कर लिया। उसके बाद उसने कोलकात्ता पर आक्रमण किया 20 जून 1756 को नवाब का फोर्ट विलियम पर अधिकार हो गया। अधिकार होने के पूर्व ही अंग्रेज गवर्नर ड्रेक स्त्रियों, बच्चों और अन्य लोगों के साथ भागकर फुल्टा दीप में शरण लेने को बाध्य हुआ। इधर कोलकात्ता में बची कुची अंग्रेजों की सेना ने भूतपूर्व सर्जन हालबेल के नेतृत्व में किले को बचाने का प्रयास किया लेकिन उसे आत्मसमर्पण करना पड़ा। नवाब की यह बहुत बड़ी विजय थी। अनेक अंग्रेजों को बंदी बनाकर और मानिकचंद के जिम्मे कोलकात्ता का भार शौप कर नवाब अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद लौट गया।

काली कोठरी की दुर्घटना

दोस्तों ऐसी ही परिस्थिति में काली कोठरी की दुर्घटना(The Black Hole Tragedy)घटी जिसने अंग्रेजो और बंगाल के नवाब के संबंध और भी कट बना दिए। कहा जाता है कि नवाब के अधिकारियों ने फोर्ट विलियम पर अधिकार करने के पश्चात 146 अंग्रेज कदियों को जिनमें स्त्रियां और बच्चे भी थे। एक छोटे और अंधेरे कमरे में जो 18 फीट लंबा और 14 फीट 10 इंच चौड़ा था। बंद कर दिया जून की अत्याधिक गर्मी में और यातनाओं के चलते उनमें से अगली सुबह सिर्फ 23 व्यक्ति ही जिंदा बचे बचने वालों में हॉलवेल भी था। जिसने इस घटना को प्रचारित किया। इस घटना की सत्यता अत्यंत विवादास्पद है।

अंग्रेजों की प्रतिक्रिया

जब काली कोठरी की घटना की खबर मद्रास पहुंची तो अंग्रेज को बहुत ज्यादा सदमा हुआ उन लोगों ने नवाब को सबक सिखाने की सोची। शीघ्र ही मद्रास से क्लाईव एवं वाटसन थल एवं जलसेना लेकर कोलकात्ता की तरफ बढ़े। इन दोनों ने नवाब के अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने पक्ष में मिला लिया। फलत: मानिकचंद ने बिना प्रतिरोध के कोलकात्ता अंग्रेजों को सौंप दिया। उन लोगों ने बाद में हुगली पर भी अधिकार कर लिया। ऐसी स्थिति में नवाब को बाध्य होकर अंग्रेजों से समझौता करना पड़ा।

अलीनगर की संधि

अलीनगर की संधि 9 फरवरी 1757 को क्लाईव ने नवाब के साथ एक संधि की जिसके अनुसार मुगल सम्राट द्वारा अंग्रेजों को प्रदत्त सारी सुविधाएं वापस मिलनी थी। दस्तक वाला सारा माल बिहार, बंगाल और उड़ीसा में बिना चुंगी दिए जा सकता था। नवाब ने कंपनी की सारी जप्त फैक्ट्रियों संपत्ति और आदमियों को लौटाने का वजन लिया। कंपनी को नवाब की तरफ से हरजाने की रकम भी मिलनी थी। अंग्रेज जब कोलकात्ता की किलेबंदी कर रह सकते थे तथा अपना सिक्का चला सकते थे नि:संदेह संधि नवाब के लिए अपमानजनक थी। इससे उसके शक्ति एवं प्रतिष्ठा को ठेस लगी परंतु इसके पास दूसरा कोई चारा नहीं था

अंग्रेजों का षड्यंत्र एवं प्लासी के युद्ध का आरंभ

अंग्रेज अलीनगर की संधि के पश्चात भी शांत नहीं बैठे हुए सिराजुद्दौला को गद्दी से हटाकर उसकी जगह पर एक ऐसा नवाब लाना चाहते थे, जो उनके हित साधन में रोड़ा नहीं अटकाए। फलत: क्लाईव ने नवाब से संतुष्ट व्यक्तियों से सांठ गांठ प्रारंभ कर दी। उसने मीरजाफर से एक गुप्त सन्धि उसे नवाब बनाने का लोभ दिया। इसके बदले उसने अंग्रेजों को कासिम बाजार ढाका तथा कोलकात्ता की किलेबंदी करने तथा 1करोड़ रुपए कंपनी को देने तथा उसकी सहायता के लिए भेजी गई सेना का व्यय सहन करने का आश्वासन दिया। इस षड्यंत्र में जगत सेठ, राय दुर्लभ तथा अमीचंद भी सम्मिलित किए गए।

अब क्लाईव ने नवाब पर अलीनगर की संधि भंग करने का आरोप लगाया। इस समय नवाब की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। दरबारी षड्यंत्र एवं अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण से उत्पन्न खतरे की स्थिति ने उसे और भी घबरा दिया। उसने मीरजाफर को अपने पक्ष में मिलाने का प्रयास किया परंतु असफल रहा। नवाब की कमजोरी भापकर क्लाईव ने सेना के साथ प्रस्थान किया। नवाब भी राजधानी छोड़कर आगे बढ़ा 23 जून 1757 को प्लासी के मैदान में दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हुई। यह युद्ध नाम मात्र का युद्ध था। नवाब की सेना के एक बड़े भाग ने युद्ध में हिस्सा नहीं लिया। उसके थोड़े से सैनिकों ने ही अमीर मदन और मोहनलाल के नेतृत्व में युद्ध में भाग लिया। आंतरिक कमजोरी के बावजूद सिराजुद्दौला ने बहुत ही बहादुरी एवं हिम्मत से क्लाईव का मुकाबला किया। परंतु मीरजाफर के विश्वासघात के कारण उसे अंततः हारना पड़ा। वह जान बचाकर भागा पर अंत मीरजाफर के पुत्र मीरन ने उसे पकड़कर मरवा डाला।

निष्कर्ष(conclusion)

दोस्तों प्लासी के युद्ध के परिणाम अत्यंत ही व्यापक और स्थायी निकले। इसका प्रभाव कंपनी, बंगाल और भारतीय इतिहास पर पड़ा। मीरजाफर को क्लाईव ने बंगाल का नवाब घोषित कर दिया। उसने कंपनी एवं क्लाईव को बेशुमार धन दिया। और संधि के अनुसार अंग्रेजों को सारी सुविधाएं भी मिली। बंगाल की गद्दी पर अब एक ऐसा नवाब आया जो अंग्रेजों के हाथों की कठपुतली मात्र था। और जिससे अंग्रेज अपना मनचाहा काम निकलवा सकते थे। प्लासी के युद्ध ने बंगाल की राजनीति पर अंग्रेजों का नियंत्रण कायम कर दिया। प्लासी की लड़ाई के बाद भारत में अत्यंत अंधकारमय रात्रि आरंभ हो गई। ताराचंद के अनुसार प्लासी के युद्ध ने परिवर्तनों की लंबी प्रक्रिया आरंभ की जिसने भारत का स्वरूप बदल दिया। सदियों से प्रचलित आर्थिक और शासकीय व्यवस्था बदल गई।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों इस आर्टिकल जानकारी को हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर लिखा है। इसलिए यह काफी हद तक सही है। अगर आपको इस आर्टिकल में कोई मिस्टेक दिखाई देता है, तो आप कमेंट करके बता सकते हैं मैं उसे सुधारने का कोशिश करूंगा।

Written by skinfo

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