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प्रथम मुस्लिम महिला शासिका कौन थी – Pratham Muslim Mahila shasaka Kaun Thi

नमस्कार मित्रों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है आज हम इस आर्टिकल में सहज और सरल शब्दों में चर्चा करने जा रहे हैं प्रथम मुस्लिम महिला शासिका कौन थी दोस्तों सर्वप्रथम मुस्लिम महिला शासिका रजिया सुल्तान थी, जोकि इल्तुतमिश की पुत्री थी रजिया से पूर्व प्राचीन मिस्र और ईरान में महिलाओं ने रानियों के रूप में शासन किया था परंतु मध्यकालीन विश्व में रजिया पहली मुस्लिम महिला शासक थी।

प्रथम मुस्लिम महिला शासिका कौन थी – (Pratham Muslim Mahila shasaka Kaun thi)

दोस्तों सर्वप्रथम मुस्लिम महिला शासिका रजिया सुल्तान थी इनसे पहले इनके पिता इल्तुतमिश सुल्तान थे इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी बना दिया था परंतु सरदारों तथा उलेमा के विरोध के चलते इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद उसका पुत्र रुकनुद्दीन फिरोजशाह गद्दी पर बैठ गया लेकिन दुर्बल शासक होने के कारण 12 से 36 ईसवी में रजिया सुल्ता

रजिया ने लगभग 3 वर्ष 8 माह शासन किया। रजिया ने स्त्रियों का पहनावा छोड़ दिया और बिना पर्दे के दरबार में बैठने लगी। वह युद्ध में सेना का नेतृत्व करती। अमीरों को शीघ्र ही पता लग गया कि स्त्री होने पर भी रजिया उनके हाथों की कठपुतली बनने को तैयार नहीं थी तो वह सरदार भी किसी महिला के अधीन कार्य करने को तैयार नहीं थे। उन्होंने एक षड्यंत्र के द्वारा उसने गद्दी से हटा दिया तथा अंततः 1240 ई० में कैथल (हरियाणा) में रजिया की हत्या कर दिया गया। रजिया के बाद उसका एक भाई एवं दो भतीजे बारी-बारी से सुल्तान बने जो अयोग्य थे। अतः इल्तुतमिश के छोटे पौत्र नासिरुद्दीन महमूद को दिल्ली का सुल्तान बनाया गया।

नासिरुद्दीन महमूद (1246-1265 ई०)

´´चालीस तुर्की सरदारों का दर इस समय अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था। वे जिसे चाहते गद्दी से उतार देते हो जिसे चाहते गद्दी पर बैठा देते थे। 1246 ई० में इस दल ने इल्तुतमिश के पौत्र नासिरूद्दीन महमूद को सुल्तान बना दिया।

महमूद ने एक अमीर जिसका नाम बलबन था। उसको अपना नायब बनाया। बलबन ने धीरे-धीरे अपनी स्थिति सुदृढ़ कर ली और वह एक शक्तिशाली सरदार बन गया। 1265 ई० में नासिरुद्दीन महमूद के बाद बलबन दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा।

(बलबन 1265 – 1287 ई०)

बलबन एक योग्य और अनुभवी शासक था। उसने अपने शासनकाल में कई महत्वपूर्ण कार्य किए। सर्वप्रथम उसने ´तुर्कान – ऐ – चिहलगानी´ नामक चालीस गुलामों के दल को समाप्त किया तथा दिल्ली को सुरक्षित बनाने के लिए आसपास के जंगलों को कटवाया तथा साफ करवा कर वहां पुलिस चौकियों का निर्माण कराया। इस प्रकार वह दिल्ली के आसपास रहने वाले मेवातियों के विद्रोह को रोकने में सफल रहा मेवातियों के अलावा उसने अन्य विद्रोहों का भी दमन किया।

बलबन ने कानूनों को लागू करने में कठोरता बरती। उसने लौह एवं रक्त की नीति अपनाई तथा उसने राजा के पद को प्रतिष्ठित बनाया वह राजा को धरती पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। बलबन का मानना था कि राजा को ईश्वर से शक्ति प्राप्त होती है। इसलिए उसके कार्यों की सार्वजनिक जांच नहीं की जा सकती।

इससे उसकी निरंकुशता सुरक्षित होती थी। इसलिए वह दरबार में अत्यंत गंभीर मुद्रा में बैठता था। वह ना तो कभी मजाक करता था और ना ही हंसता था। उसने दरबार में निर्धारित ढंग से वस्त्र पहनकर आने बैठने आदि के बारे में नियम बनाए जिनका कठोरता से पालन किया जाता था। बलबन ने दरबार में सिजदा एवं पायबोस नामक ईरानी परंपरा प्रारंभ कराई। दरबार में उसने प्रत्येक वर्ष इरानी त्यौहार नौरोज मनाने की प्रथा प्रारंभ की। उसने सुदृढ़ गुप्तचर व्यवस्था बनाई जिससे राज्य की पूरी खबरें गुप्तचर सुल्तान को देते थे। बलबन की प्रमुख विशेषता थी कि उसने सदैव न्याय को सुल्तान का प्रमुख कार्य समझा। उसने शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए सेना पर भी ध्यान दिया। सैनिकों को संतुष्ट रखने के लिए उसने उनका वेतन सदैव समय पर दिया। उन्हें सक्रिय रखने के लिए निरंतर अभ्यास पर बल दिया।

मंगोल आक्रमण

बलबन ने राज्य को बाहरी आक्रमण से बचाने एवं मंगोलों (मध्य एशिया, तिब्बत एवं चीन के क्षेत्रों में रहने वाली जाति) शक्ति को रोकने का प्रयास किया। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ में एशिया और यूरोप के आक्रांताओं की नई लहराई।

यह नए आक्रमणकारी मंगोल थे जिन्हें उस महान साम्राज्य के लिए सबसे अधिक जाना जाता है। जिसका गठन उन्होंने चंगेज खां के नेतृत्व में किया तेरहवीं सदी का अंत होते-होते मंगोल साम्राज्य ज्ञात दुनिया के बड़े भाग तक फैल चुका थ। चंगेज खां के नेतृत्व में उनके शक्ति बहुत बढ़ गई थी।

मंगोल आक्रमण के भयंकरता को बलबन भली-भांति अनुभव करता था। इसलिए उन्हें रोकने के लिए उसने मंगोलों के मार्ग में पड़ने वाले पुराने दुर्गों की मरम्मत करवाई तथा नए दुर्गों का निर्माण करवाया। वहां पर हिस्ट-पुस्ट सैनिकों एवं विश्वसनीय और अनुभवी अधिकारियों को नियुक्त किया। शस्त्र तथा भोजन आपूर्ति की पूर्ण व्यवस्था भी वहां पर की गई।

उसकी मृत्यु के बाद दिल्ली की गद्दी पर उसके वंश का शासन अधिक दिन तक ना रह पाया। परंतु दिल्ली को जो सख्तसक्ति बलबन ने प्रदान की उसी के परिणाम स्वरूप खिलजी सुल्तान अलाउद्दीन अपने साम्राज्य का विस्तार करने में सफल रहा।

अस्वीकरण-(Disclemar)

दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ा होगा और जाना होगा की प्रथम मुस्लिम महिला शासिक कौन थी। दोस्तों यह आर्टिकल हमने अपने स्टडी के माध्यम से लिखा है इसलिए यह आर्टिकल सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयास करेंगे।

Written by skinfo

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