in

राजनीतिक दल का अर्थ और परिभाषा-Rajneetik Dal ka Arth aur Paribhasha

नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है। दोस्तों इस आर्टिकल में हम बात करने जा रहे हैं राजनीतिक दल का अर्थ और परिभाषा के बारे में दोस्तों दल प्रणाली चाहे पूर्ण रूप से भले के लिए हो या बुरे के लिए प्रजातंत्रात्मक शासन – व्यवस्था के लिए अपरिहार्य है। तो चलिए दोस्तों अब हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं राजनीतिक दल के बारे में विस्तार पूर्वक अगर दोस्तों आप लोग छात्र हैं और किसी कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रहे हैं तो आप सबके लिए यह आर्टिकल पढ़ना अति आवश्यक है।

दोस्तों इस आर्टिकल में सबसे पहले हम जानते हैं राजनीतिक दल का अर्थ और परिभाषा उसके बाद में हम जानेंगे राजनीतिक दल के आवश्यक तत्व फिर उसके बाद में प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों का महत्व इन सभी का उत्तर आप सब को विस्तार पूर्वक बताऊंगा बस आप लोग इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें तभी समझ में आएगा।

राजनीतिक दल का अर्थ और परिभाषा(Rajneetik Dal ka Arth aur Paribhasha)

दोस्तों विभिन्न विद्वानों द्वारा राजनीतिक दल की अलग-अलग प्रकार के परिभाषाएं की गई हैं।

1.एडमण्ड बर्क के अनुसार,´´ राजनीतिक दल ऐसे लोगों का एक समूह होता है जो किसी ऐसे सिद्धांत के आधार पर जिस पर वह एकदम हों, अपने सामूहिक प्रश्न द्वारा जनता के हित में काम करने के लिए एकता में बंधे होते हैं

2.गैटिल के अनुसार,´´ एक राजनीतिक दल न्यूनाधिक संगठित उन नागरिकों का समूह होता है जो राजनीतिक इकाई के रूप में कार्य करते हैं और जिनका उद्देश्य मतदान की शक्ति के आधार पर सरकार पर नियंत्रण करना तथा अपनी सामान्य नीतियों को कार्यान्वित करना होता है।

राजनीतिक दल के आवश्यक तत्व(Rajneetik Dal ke Aawasyk Tatw)

दोस्तों जैसे विद्वानों द्वारा राजनीतिक दल की जो परिभाषाएं दी गई है उनके आधार पर इन दलों के निम्नलिखित आवश्यकता तो बताया जा सकते हैं जैसे

1.संगठन
2.सामान्य सिद्धांतों की एकता
3. संवैधानिक साधनों में विश्वास
4. शासन पर प्रभुत्व की इच्छा
5. राष्ट्रीय हित

1. संगठन – आधारभूत समस्याओं के संबंध में एक ही प्रकार का विचार रखने वाले व्यक्ति जब तक भली प्रकार से संगठित नहीं होते, उस समय तक उन्हें राजनीतिक दल नहीं कहा जा सकता। राजनीतिक दलों की शक्ति संगठन पर ही निर्भर होती है, अतः राजनीतिक दलों का यह प्रथम आवश्यक तत्व है कि वह वाली प्रकार संगठित होने चाहिए।

2. सामान्य सिद्धांतों की एकता – राजनीतिक दल उसी समय संगठित रूप में कार्य कर सकते हैं, जबकि राजनीतिक दल के सभी सदस्य सामान्य सिद्धांतों के विषय में एक ही प्रकार की धारणा रखते हों। विस्तार की बातों के संबंध में उनके किसी प्रकार के मतभेद हो सकते हैं, किंतु आधारभूत बातों के संबंध में विचारों की एकता होना आवश्यक है। इन आधारभूत बातों पर एकता के अभाव में राजनीतिक दलों में आंतरिक गुटबन्दी बढ़ जाती है तथा राजनीतिक दल का एक संगठन इकाई के रूप में कार्य करना कठिन हो जाता है।

3. संवैधानिक साधनों में विश्वास – राजनीतिक दल शासन शक्ति प्राप्त करने के लिए संगठित होते हैं, किन्तु शासन शक्ति प्राप्त करने के लिए उनके द्वारा संवैधानिक उपायों का ही आश्चय लिया जाना चाहिए। मतदान और मतदान के निर्णय में उनका विश्वास होना चाहिए गुप्त उपाय या सशस्त्र क्रांति में विश्वास करने वाले संगठन विशुद्ध राजनीतिक दल नहीं कहे जा सकते हैं।

4. शासन पर प्रभुत्व की इच्छा – राजनीतिक दल का एक तत्व यह होता है कि उसका उद्देश्य शासन पर प्रभुत्व स्थापित कर अपने विचारों और नीतियों के कार्य रूप में परिणत करना होता है। यदि कोई संगठन शासन के बाहर रहकर कार्य करना चाहता है तो उसे राजनीतिक दल नहीं कहा जा सकता।

5. राष्ट्रीय हित – राजनीतिक दल के लिए यह आवश्यक है कि उसके द्वारा किसी विशेष जाति, धर्म या वर्ग के हित को दृष्टि में रखकर नहीं वरन् संपूर्ण राज्य के हित को दृष्टि में रखकर कार्य किया जाना चाहिए। बर्क ने राजनीतिक दल की परिभाषा करते हुए उन्हें राष्ट्रीय हित की वृद्धि के लिए संगठित राजनीतिक समुदाय´ ही कहा है।

प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों का महत्व(prjatantra men Rajneetik Dalon ka mahtw)

प्रजातंत्र आत्मक शासन व्यवस्था के प्रमुख रूप से दो प्रकार होते हैं : (1) प्रत्यक्ष प्रजातंत्र (2) अप्रत्यक्ष या प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र। वर्तमान समय में राज्यों की विशाल जनसंख्या और क्षेत्रीय कारण विश्व के लगभग सभी राज्यों में प्रतिनिध्यात्मक खो प्रजातंत्र के शासन ही प्रचलित है। इस शासन-व्यवस्था में जनता अपने प्रतिनिधियों को चुनती है। और प्रतिनिधियों द्वारा शासन किया जाता है। इस शासन-व्यवस्था की समस्त प्रक्रिया राजनीतिक दलों के आधार पर ही संपन्न होती है। प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों के महत्व को निम्न रूपों में स्पष्ट किया जा सकता है।

जैसे-

1. स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए आवश्यक
2. चुनाव के संचालन के लिए आवश्यक
3. सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक
4. सरकार के निर्माण तथा संचालन के लिए आवश्यक
5. शासन सत्ता को मर्यादित रखना

1. स्वस्थ लोकमत के निर्माण के लिए आवश्यक – प्रजातंत्र शासन लोकमत पर आधारित होता है और स्वस्थ लोकमत के अभाव में सच्चे प्रजातंत्र की कल्पना असंभव है। इस लोकमत के निर्माण तथा उसकी अभिव्यक्ति राजनीतिक दलों के आधार पर ही संभव है। इस संबंध में राजनीतिक दल जल से एवं अधिवेशन आयोजित करते हैं तथा एजेंट, व्याख्यान दाताओं और प्रचारकों के माध्यम से जनता को शिक्षित करने का प्रयास करते हैं। राजनीतिक दल स्थानीय एवं राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं प्रचार के आधार पर अपनी नियत जनता के सम्मुख रखते हैं।

2. चुनावों के संचालन के लिए आवश्यक – जब मताधिकार बहुत अधिक सीमित था और निर्वाचक ओं की संख्या कम थी, तब स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़े जा सकते थे, लेकिन अब सभी देशों में वयस्क मताधिकार को अपना ले जाने के कारण स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना असंभव हो गया है। ऐसी स्थिति में राजनीतिक दल अपने दल की ओर से उम्मीदवारों को खड़ा करते और उनके पक्ष में प्रचार करते हैं। यदि राजनीतिक दल ना हो तो आज के विशाल लोकतंत्रात्मक राज्यों में चुनावों का संचालन लगभग असंभव ही हो जाय।

3. सभी वर्गों के प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक – प्रजातंत्र के लिए यह आवश्यक है कि देश के शासन में जनता के सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होना चाहिए और इस बात को राजनीतिक दलों के द्वारा ही संभव बनाया जाता है। देश के विभिन्न वर्ग अलग-अलग राजनीतिक दलों के रूप में संगठित होकर अपनी विचारधारा का प्रचार और प्रसार करते हैं तथा उनके द्वारा व्यवस्थापिका में प्रतिनिधित्व प्राप्त किया जाता है।

4. सरकार के निर्माण तथा संचालन के लिए आवश्यक – निर्वाचन के बाद राजनीतिक दलों के आधार पर ही सरकार का निर्माण कर सकना संभव होता है और यह बात संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक दोनों ही प्रकार की शासन व्यवस्थाओं के संबंध में नितांत सत्य है। राजनीतिक दलों के अभाव में व्यवस्थापिका के सदस्य अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग´ की प्रवृत्ति को अपना लेंगे और सरकार का निर्माण असंभव हो जाएगा। ना केवल सरकार का निर्माण वरन् व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में संबंध स्थापित कर राजनीतिक दल सरकार के संचालन को भी संभव बनाते हैं।

5. शासन सत्ता को मर्यादित रखना – प्रजातंत्र आवश्यक रूप से सहमत शासन होता है, लेकिन यदि प्रभावशाली विरोधी दल का अस्तित्व ना हो तो प्रजातंत्र असीमित शासन में बदल जाता है। यदि बहुसंख्यक राजनीतिक दल शासन सत्ता के संचालन का कार्य करता है तो अल्पसंख्यक दल विरोधी दल के रूप में कार्य करते हुए शासन शक्ति को सीमित रखने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। ऐसे दृष्टि से प्रजातंत्र में ना केवल बहुसंख्यक दल वरन् अल्पसंख्यक दल का भी अपना और बहुसंख्यक दल के समान ही महत्व होता है।

निष्कर्ष(conclusion)

द्विदलिय और बहुदलीय पद्धति के उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि ´´बहुदलीय व्यवस्था में गंभीर दोष और भयंकर आशंकाएं हैं।´´ बहुदलीय व्यवस्था मिली-जुली सरकारों को जन्म देती है जो बहुत अधिक कमजोर और स्थायी होती हैं और जिन्हें जनहित के स्थान पर अपने अस्तित्व को बनाए रखने की चिंता सदैव बनी रहती है। वस्तुतः बहुदलीय प्रणाली के चाहे जो भी गुण बताए जाते हों और लोक भावना के वास्तविक विभाजन को चाहे वह कितने ही सही रूप से प्रकट करती हो, व्यावहारिक आदर्श के रूप में उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। प्रशासन की सबसे बड़ी आवश्यकता स्थायित्व, अनिश्चितता का अभाव, एकता और उत्तरदायित्व की अनिश्चितता है और इन गुणों को द्विदलिय प्रणाली के अंतर्गत ही प्राप्त किया जा सकता है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने स्टडी के माध्यम से दी है, इसलिए यह आर्टिकल काफी हद तक सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं।

Written by skinfo

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

लोकमत किसे कहते हैं,अर्थ और परिभाषा-Lokmat kise kahte hain Arth aur Paribhasha

कृषक की समस्याएं और ग्राम्य जीवन-krishak ki samsyayen Aur gramya jeevan