नमस्कार दोस्तों सब हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है आज हम इस आर्टिकल में सहज और सरल शब्दों में चर्चा करने जा रहे हैं राज्य मंत्री परिषद के बारे में – हमारे संविधान के अनुसार राज्य में राज्यपाल को परामर्श देने के लिए एक मंत्री परिषद की व्यवस्था की गई है राज्यपाल द्वारा स्वविवेक से किए गए कार्यों के अतिरिक्त अन्य शासन संबंधी कार्यों में मंत्रिपरिषद से सलाह व सहायता देती है।
राज्य मंत्री परिषद – Rajya Mantri parishad
भारत का संविधान केंद्र के समान राज्य में भी संसदीय व्यवस्था उपबंध करता है। राज्य की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था का वास्तविक कार्यकारी अधिकारी मंत्री परिषद का मुखिया यानी (मुख्यमंत्री) होता है। राज्य में मंत्री परिषद का कार्य बिल्कुल केंद्रीय मंत्रिपरिषद की तरह होता है।
संविधान में संसदीय व्यवस्था की सरकार के सिद्धांतों को विस्तार से नहीं बताया गया है। लेकिन 2 अनुच्छेदों 163 और 164 में कुछ सामान्य वह उपबंधों की चर्चा की गई है। अनुच्छेद 163 में राज्य मंत्री परिषद की स्थिति के बारे में बताया गया है जबकि अनुच्छेद 164 में मंत्रियों के वेतन एवं भत्तों, शपथ, योगिता उत्तरा दायित्व कार्यकाल एवं नियुक्ति के बारे में बताया गया।
राज्य मंत्री परिषद से संबंधित अनुच्छेद
अनुच्छेद | विषय वास्तु |
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163 | मंत्री परिषद द्वारा राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देना |
164 | मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान |
166 | राज्य सरकार द्वारा कार्यवाही संचालन |
167 | मुख्यमंत्री का राज्यपाल को सूचना प्रदान करने का कर्तव्य |
संवैधानिक प्रावधान
अनुच्छेद 163 राज्यपाल को सहायता एवं सलाह देने के लिए मंत्री परिषद
1. जिन बातों में इस दिन संविधान द्वारा किया इसके अधीन राज्यपाल से या अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करें, उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्री परिषद होगी जिस का प्रावधान मुख्यमंत्री होगा।
2. यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं जिस के संबंध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से या अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करें तो राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधमान्यता इस आधार पर प्रश्न गत नहीं की जाएगी कि उसे अपने विवेका अनुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं।
3. इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राजपाल को कोई सलाह दी और दी तो क्यों नहीं दी।
अनुच्छेद 164 मंत्रियों संबंधी अन्य उपबंध
1. मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल, मुख्यमंत्री के परामर्श पर करेगा। हालांकि छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा में अधिकारियों के अलावा जनजातियों के कल्याण हेतु एक पृथक मंत्री होगा। 94 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2006 द्वारा बिहार राज्य को इस बाध्यता से मुक्त कर दिया गया है।
2. राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की अधिकतम संख्या विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी किंतु राज्यों में मुख्यमंत्री समेत मंत्रियों की नियुक्ति संख्या 12 से कम नहीं होगी। इस प्रावधान को 91वें संविधान संशोधन विधेयक 2003 द्वारा जोड़ा गया।
3. राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य यदि दलबदल के आधार पर सदस्यता के निरर्ह करार दिया जाता है तो ऐसा सदस्य मंत्री होने पर मंत्री पद के भी निरर्ह होगा। इस बंद को 91वें संविधान संशोधन विधेयक 2003 द्वारा जोड़ा गया है।
4. मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पर धारण करेंगे
5. मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से राज्य विधानसभा के प्रति उत्तरदाई होगी
6. राज्यपाल, मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाएंगे।
एक मंत्री जो विधानमंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं है उसे 6 माह के भीतर अनिवार्य रूप से किसी एक सदन का सदस्य बनना होगा
8. मंत्रियों के वेतन एवं भत्ते राज विधान मंडल द्वारा निर्धारित किए जाएंगे
अनुच्छेद 166 राज्य के राज्यपाल द्वारा कार्यवाही का संचालन
1. सरकार के समस्त कार्यपालक कार्य वासियों की अभिव्यक्ति राज्यपाल के नाम से ही की गई कार्यवाही के रूप में अभिव्यक्त होगी।
2. राज्यपाल के नाम से तैयारियों कार्यान्वित आदेशों एवं अन्य दस्तावेजों का एक इस प्रभीवीकरण किया जाएगा। जैसा कि राज्यपाल द्वारा बनाए जाने वाले नियमों में निर्दिष्ट को पुनः किसी आदेश अथवा दस्तावेज की वैधता जिसको उक्त प्रकार से प्रमाणित किया गया हो पर इस आधार पर प्रश्न नहीं किया जाएगा कि वह आदेश या दस्तावेज राज्यपाल द्वारा निर्मित अथवा कार्यान्वित नहीं है।
3. राज्यपाल द्वारा राज्य सरकार की कार्यवाहीयों में सुगमता लाने तथा मंत्रियों के बीच उनके आवंटन के लिए नियम बनाए जाएंगे।
अनुच्छेद 167 मुख्यमंत्री के कर्तव्य
प्रत्येक राज्य के मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि:
1. वह मंत्री परिषद द्वारा राज्य के प्रशासन से संबंधित मामलों में लिए एक सभी निर्णय हो तथा विधायन के प्रस्तावों के बारे में राज्यपाल को सूचित करें।
2. राज्यपाल द्वारा राज्य प्रशासन से संबंधित मामलों अथवा विधायक प्रस्तावों के बारे में मांगे जाने वाले
4. यदि राजपाल चाहे तो मंत्री परिषद के समस्त किसी ऐसे मामलों को विचार करें जिस पर निर्णय तो किसी मंत्री द्वारा लिया जाना है लेकिन जिस पर मंत्री परिषद ने विचार नहीं किया।
अनुच्छेद 177 साधनों के संबंध में मंत्रियों के अधिकार
प्रत्येक मंत्री को विधान सभा विधान परिषद जहां कहीं पर है कि कार्यवाही में भाग लेने और बोलने का अधिकार होगा। उसी प्रकार या अधिकार राज्य विधायिका की समिति के लिए भी लागू होगा जिसका उसे सदस्य बनाया गया है किंतु उसे मत देने का अधिकार नहीं होगा।
मंत्रियों द्वारा दिए गए परामर्श की प्रकृति
अनुच्छेद 163 के अनुसार जिन बातों में संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से या अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकनुसार करें उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्री परिषद होगी जिसका प्रधान मुख्यमंत्री होगा। यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं जिस के संबंध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करें तो राज्यपाल का अपने विवेकनुसार किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधि मान्यता इस आधार पर प्रश्न गत नहीं की जाएगी कि उसे अपने अनुसार कार्य करना चाहिए था या नहीं। इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी और दी तो क्या दी।
1971 में उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी कि राज्यपाल को परामर्श देने के लिए मंत्री परिषद हमेशा रहेगी। यदि राज्य विधानमंडल विघटित हो गया हो या मंत्री परिषद ने त्यागपत्र दे दिया हो। अतः वर्तमान मंत्रालय नए अनुवर्ती मंत्रालय के आने तक कार्यरत रहता है 1974 में दोबारा न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल के निर्णय या कार्यक्षेत्र का अनुदान एवं सलाह यह मंत्री परिषद के कार्य एवं शक्तियों के आधार पर होगा वह बिना मंत्रिपरिषद की सलाह के व्यक्तिगत रूप से कुछ नहीं करेगा या मंत्री परिषद के सभा या अनुदान के विरुद्ध नहीं जाएगा। यानी संविधान ने इस बात की मंशा जाहिर की है कि राज्यपाल की संतुष्टि उसकी व्यक्तिगत नहीं वरन मंत्री परिषद की संतुष्टि होनी चाहिए।
मंत्रियों की नियुक्ति
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री के परामर्श पर राज्यपाल के द्वारा की जाएगी इसका अभिप्राय राज्यपाल उन्हीं लोगों को बतौर मंत्री नियुक्त करता है जिन की सिफारिश मुख्यमंत्री करता है
लेकिन छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा में एवं आदिवासी मंत्री भी होना चाहिए। प्रारंभ में यह उपबंध बिहार, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा के लिए था। लेकिन 94वें संविधान संशोधन अधिनियम 2007 द्वारा बिहार राज्य को इस दायित्व से मुक्त कर छत्तीसगढ़ एवं झारखंड के लिए ऐसा करना आवश्यक बना दिया गया। और बिहार में कोई अनुसूचित क्षेत्र नहीं है और अनुसूचित जनजातियों की संख्या काफी कम है।
सामान्यत: उसी व्यक्ति को बतौर मंत्री नियुक्त किया जाता है जो विधानसभा और विधान परिषद में से किसी एक का सदस्य हो कोई व्यक्ति और विधानमंडल का सदस्य नहीं भी है तो उसे मंत्री नियुक्त किया जा सकता लेकिन 6 महीने के अंदर उसका सब सदस्य बनना अनिवार्य है (निर्वाचन या मनोनयन द्वारा) अन्यथा उसका मंत्री पद समाप्त हो जाएगा।
एक मंत्री जो विधानमंडल के किसी एक सदन का सदस्य है कोई दूसरे सदन की कार्यवाही में भाग लेने एवं बोलने का अधिकार है लेकिन वह मतदान उसी सदन में कर सकता है जिसका वह सदस्य है।
मंत्रियों के उत्तरदायित्व
सामूहिक उत्तरदायित्व
संसदीय व्यवस्था में सामूहिक उत्तरदायित्व कार का सैद्धांतिक आधार है अनुच्छेद 164 स्पष्ट करता है कि राज विधानसभा के प्रति मंत्रिपरिषद के सामूहिक उत्तरदायित्व होगा इसका तात्पर्य है कि अपने सभी क्रियाकलापों कृतियों के लिए विधानसभा के प्रति उनका संयुक्त उत्तरदायित्व होगा वह टीम की तरह कार्य करेंगे यदि विधान पर सभा मंत्री परिषद के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास कर देती है तो सभी मंत्रियों सहित विधान परिषद से आए मंत्रियों को भी त्यागपत्र देना पड़ता है। इसका एक विकल्प यह भी है कि मंत्रिपरिषद राज्यपाल को विधानसभा विघटित करने और नए चुनाव कराने की घोषणा करने की सलाह दे सकती है राज्यपाल उस मंत्री परिषद के पक्ष में कुछ नहीं कर सकता जिसने विश्वास खो दिया है।
मंत्री परिषद का गठन
संविधान में राज्य मंत्री परिषद के आकार एवं मंत्री के पद को अलग से विवेचित नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री समय और परिस्थिति के हिसाब से इसका निर्धारण करता है।
केंद्र की तरह ही राज्य मंत्री परिषद के भी तीन वर्ग कैबिनेट राज्य मुख्यमंत्री होते हैं। उनके पद विशेष भत्ते और राजनीतिक महत्व के हिसाब से उम्र में विभेद होता है इन मंत्रियों के ऊपर मुख्यमंत्री राज्य सर्वोच्च शासकीय प्राधिकारी होता है।
कैबिनेट
मंत्री परिषद का एक छोटा सा मुख्य भाग कैबिनेट या मंत्रिमंडल कहलाता है इसमें केवल कैबिनेट मंत्री शामिल होते हैं राज्य सरकार में यही वास्तविक कार्यकारिणी का केंद्र होता है इसकी निम्नलिखित भूमिका होती है
1. यह राज्य की राजनीति प्रशासनिक व्यवस्था में सर्वोच्च निर्धारण कार्यकारिणी है।
2. यह राज्य सरकार की मुख्य निर्धारक अंग है।
3. यह राज्य सरकार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की तरह है।
4. यह राज्य सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था में मुख्य समन्वयक होती है।
5.यह राज्यपाल के सलाहकार होती है।
6. यह मुख्य प्रबंधक होती है और इस तरह आपात स्थितियों को संभालती हैं।
7. यह सभी प्रमुख वैधानिक और वित्तीय मामलों को देखता है
8. यह कुछ नियुक्तियां करता है जैसे संवैधानिक प्राधिकारी और वरिष्ठ प्रशासनिक सचिवों की।
कैबिनेट समितियां
कैबिनेट विभिन्न प्रकार की समितियों के जरिए कार्य करती है जिन्हें कैबिनेट समितियां कहा जाता है यह दो तरह की होती है- स्थायी एवं अल्पकालिक पहली की स्थिति अस्थाई जैसी होती है जबकि दूसरे की प्राकृतिक अस्थायी ।
परिस्थितियों और आवश्यकता अनुसार इन्हें मुख्यमंत्री गठित करता है अतः इनकी संख्या संरचना आज समय-समय पर अलग-अलग होती है
ये केवल मुद्दों का समाधान ही नहीं करती हैं वरन कैबिनेट के सामने सुझाव भी करती हैं। और निर्णय भी लेते हैं हालांकि कैबिनेट उनके फैसलों की समीक्षा कर सकती है।
अस्वीकरण-(Disclemar)
दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ा होगा और जाना होगा राज्य मंत्री परिषद के बारे में दोस्तों यह आर्टिकल हमने अपने स्टडी के माध्यम से लिखा है इसलिए आर्टिकल सही है अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयास करेंगे।