नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों इस आर्टिकल में सहज और सरल शब्दों में चर्चा करने जा रहे हैं राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति के बारे में भारत के संविधान में राज्य में भी केंद्र की तरह संसदीय व्यवस्था स्थापित की गई है राज्यपाल को नाम मात्र का कार्यकारी बनाया गया है जबकि वास्तविकता में कार्य मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद करती है दूसरे शब्दों में कहें तो राज्यपाल अपने सख्त कार्य को मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कर सकता है सिर्फ उन मामलों को छोड़कर जिले में वह अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकता है (मंत्रियों की सलाह के बगैर)।
राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति (Rajyapal ki sanvaidhanik sthiti)
राज्यपाल के संवैधानिक शक्तियों का अंदाजा लगाते हुए हम अनुच्छेद 154, 163 एवं 164 के उपबंधों से समझ सकते हैं-
(अ) राज्य की कार्यकारी शक्तियां राज्यपाल में निहित होगी यह संविधान सम्मत कार्य सीधे उसके द्वारा या उसके अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा संपन्न होंगे (अनुच्छेद 154)।
(ब) अपने विवेकाधिकार वाले कार्यों के अलावा (अनुच्छेद 163) अपने अधिकारियों को करने के लिए राज्यपाल को मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद से सलाह लेनी होगी।
(स) राज्य मंत्रीपरिषद की विधानमंडल के प्रति सामूहिक जिम्मेदारी होगी (अनुच्छेद 164)। या उपबंध राज्य में राज्यपाल के संवैधानिक बुनियाद के रूप में है।
उपर्युक्त इससे यह स्पष्ट है कि राज्यपाल की स्थिति, राष्ट्रपति की तुलना में निम्नलिखित दो मामलों में भिन्न है-
1. संविधान में इस बात की कल्पना की गई थी कि राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर कुछ स्थितियों में काम करें जबकि राष्ट्रपति के मामले में ऐसी कल्पना नहीं की गई।
2. 42 वें संविधान संशोधन (1976) के बाद राष्ट्रपति के लिए मंत्रियों की सलाह की बाध्यता तय कर दी गई, जबकि राज्यपाल के संबंध में इस तरह का कोई उपबंध नहीं है।
संविधान में स्पष्ट किया गया है कि यदि राज्यपाल के विवेकाधिकार पर कोई प्रश्न उठे तो राज्यपाल का निर्णय अंतिम एवं वैध होगा इस संबंध में इस आधार पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता कि उसे विवेकानुसार निर्णय लेने का अधिकार था या नहीं। राज्यपाल के संवैधानिक विवेकाधिकार निम्नलिखित मामलों में है –
1. राष्ट्रपति के विचारार्थ किसी विधेयक को आरक्षित करना।
2. राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना।
3. पड़ोसी केंद्र शासित राज्य में अतिरिक्त प्रभार की स्थिति में बतौर प्रशासक के रूप में कार्य करते समय
4. असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के राज्यपाल द्वारा खनिज उत्खनन की रॉयल्टी के रूप में जनजातीय जिला परिषद को दिए राशि का निर्धारण।
5. राज्य के विधान परिषद एवं प्रशासनिक मामलों में मुख्यमंत्री से जानकारी प्राप्त करना।
उपर्युक्त संवैधानिक विवेकाधिकार ओं के अतिरिक्त (उदाहरणार्थ संविधान में उल्लिखित विवेकाधिकारों के बारे में) राज्यपाल, राष्ट्रपति की तरह परिस्थितिजन्य निर्णय ले सकता है। (जैसे राजनीतिक स्थिति के मामलों में अप्रत्यक्ष निर्णय)। यह सब निम्नलिखित मामलों में संबंधित है-
1. विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में या कार्यकाल के दौरान अचानक मुख्यमंत्री का निधन हो जाने एवं उसके निश्चित उत्तराधिकारी ना होने पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति के मामले में।
2. राज्य विधानसभा में विश्वास मत हासिल ना करने पर मंत्री परिषद की बर्खास्तगी के मामले में।
3. मंत्री परिषद के अल्पमत में आने पर राज्य विधानसभा को विघटित करना
इसके अतिरिक्त कुछ विशेष मामलों में राष्ट्रपति के निर्देश पर राज्यपाल के विशेष उत्तरदायित्व होते हैं। ऐसे मामलों में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रिपरिषद से परामर्श लेता है और अपने स्वविवेक से निर्णय लेता है यह इस प्रकार हैं –
1. महाराष्ट्र विदर्भ एवं मराठवाड़ा के लिए पृथक विकास बोर्ड की स्थापना।
2. नागालैंड त्वेनसांग नागा पहाड़ियों पर अतिरिक्त विघ्नों के चलते कानून एवं व्यवस्था के संबंध में।
3. गुजरात-सौराष्ट्र और कच्छ के लिए प्रथम विकास बोर्ड की स्थापना।
4. असम जनजातीय इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था।
5. मणिपुर-राज्य के पहाड़ी इलाकों में प्रशासनिक व्यवस्था।
6. सिक्किम-राज्य की जनता के विभिन्न वर्गों के बीच सामाजिक और आर्थिक विकास के साथ शांति सुनिश्चित करना।
7. अरुणाचल प्रदेश-राज्य में कानून एवं व्यवस्था बनाना।
8. कर्नाटक-हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड की स्थापना।
राज्यपाल से संबंधित अनुच्छेद एक नजर में
अनुच्छेद | विषय वस्तु |
---|---|
153 | राज्यों के राज्यपाल |
154 | राज्य की कार्यपालक शक्ति |
155 | राज्यपाल की नियुक्ति |
156 | राज्यपाल का कार्यकाल |
157 | राज्यपाल के नियुक्त होने के लिए अहर्ता |
158 | राज्यपाल कार्यालय के लिए दशाएं |
159 | राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण |
160 | कतिपय आकस्मिक रिस्थितियों में राज्यपाल के कार्य |
161 | राज्यपाल की क्षमादान आज की शक्ति |
162 | राज्य की कार्यपालक शक्ति की सीमा |
163 | मंत्री परिषद का राज्यपाल को सहयोग तथा सलाह देना |
164 | मंत्रियों से संबंधित अन्य प्रावधान जैसे नियुक्त कार्यकाल तथा वेतन इत्यादि |
165 | राज्य का महाधिवक्ता |
166 | राज्य की सरकार द्वारा संचालित कार्यवाही |
167 | राज्यपाल को सूचना देने इत्यादि का मुख्यमंत्री का दायित्व |
174 | राज्य विधायिका का सत्र सत्रावसान तथा उसका भंग होना |
175 | राज्यपाल का राज्य विधायिका के किसी अथवा दोनों सदनों को संबंधित करने अथवा संदेश देने का अधिकार |
176 | राज्यपाल द्वारा विशेष संबोधन |
200 | विधेयक पर सहमति राज्यपाल द्वारा राज्य विधायिका द्वारा पारित विधेयकों पर स्वीकृति प्रदान करना |
201 | राज्यपाल द्वारा विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख लेना |
213 | राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति |
217 | राज्यपाल की उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मामले में राष्ट्रपति द्वारा सलाह लेना |
233 | राज्यपाल द्वारा जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति |
234 | राज्यपाल द्वारा न्यायिक सेवा के लिए नियुक्ति जिला न्यायाधीशों को छोड़कर |
निष्कर्ष-(conclusion)
दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस पोस्ट को अंत तक पढ़ा होगा और समझा होगा राज्यपाल की संवैधानिक स्थिति के बारे में विस्तार पूर्वक-
दोस्तों इस तरह संविधान में राज्यपाल कार्यालय के मामले में भारतीय संघीय ढांचे के तहत दोहरी भूमिका तय की गई है। वह राज्य का संवैधानिक मुखिया होने के साथ-साथ केंद्र (अर्थात राष्ट्रपति) का प्रतिनिधि होता है।
अस्वीकरण-(Disclemar)
दोस्तों यह पोस्ट हमने अपने शिक्षा के आधार पर लिखा इसलिए आर्टिकल बिल्कुल सही है अगर आप सबको इसमें कोई संदेह दिखाई पड़ता है तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे