नमस्कार दोस्तों आप सबका मारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है आज हम इस आर्टिकल में सहज और सरल शब्दों में चर्चा करने जा रहे हैं राष्ट्रपति और राज्यपाल की वीटो शक्ति की तुलना के बारे में
राष्ट्रपति एवं राज्यपाल की वीटो शक्ति की तुलना-(Rashtrapati AVN Rajyapal ki Vito Shakti ki tulna)
राष्ट्रपति – | राज्यपाल |
दोस्तों सबसे पहले हम राष्ट्रपति बीटो की तुलना के बारे में जानेंगे फिर उसके बाद में राज्यपाल के बारे में जानेंगे बस आप लोग इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े?
राष्ट्रपतिकी वीटो शक्ति की तुलना
सामान विधेयकों से संबंधित– प्रत्येक साधारण विधेयक जब वह संसद के दोनों सदनों, चाहे अलग-अलग या संयुक्त बैठक से पारित होकर आता है तो उसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा जाता है। इस मामले में उसके पास तीन विकल्प हैं-
1. वह विधेयक को स्वीकृति दे सकता है फिर विधेयक अधिनियम बन जाता है।
2. वाह विधेयक को अपनी स्वीकृति रोक सकता है ऐसी स्थिति में विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
3.यदि विधेयक को बिना किसी परिवर्तन के फिर से दोनों सदनों द्वारा पारित कराकर राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए भेजा जाए तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकृति अवश्य देनी होती है। इस तरह राष्ट्रपति के पास केस स्थगन वीटो का अधिकार है।
जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखा जाता है तो राष्ट्रपति के पास तीन विकल्प होते हैं-
(अ) वाह विधेयक को स्वीकृति दे सकता है जिसके बाद वह अधिनियम बन जाएगा
(ब) वह विधायक को अपनी स्वीकृति रोक सकता है, फिर विधायक खत्म हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
(स) वह विधेयक राज्य विधान परिषद के सदस्य साधनों के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। सदन द्वारा 6 महीने के भीतर इस पर पुनर्विचार करना आवश्यक है। यदि विधेयक को कुछ सुधार या बिना सुधार के राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए दोबारा भेजा जाए तो राष्ट्रपति से देने के लिए बात भी नहीं है; वह स्वीकृति कर भी सकता है और नहीं भी।
धन विधायकों से संबंधित
संसद द्वारा पारित प्रत्येक वित्त विधेयक को जब राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है तो उसके पास दो विकल्प होते हैं-
1. वह विधेयक को स्वीकृति दे सकना है ताकि वह अधिनियम बन जाए।
2. वह स्वीकृति ना दे तब विधेयक समाप्त हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
इस प्रकार राष्ट्रधर्म विधेयक को संसद को पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता सामान्यत: राष्ट्रपति वित्त विधेयकों को संसद में पुनः स्थापित होने के स्वरूप को स्वीकृति दे देता है क्योंकि इस उसी की पूर्व अनुमति से प्रस्तुत किया गया होता है। जब वित्त विधेयक किसी राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को विचारार्थ भेजा जाता है तो राष्ट्रपति के पास दो विकल्प होते हैं-
(अ) वह विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है, ताकि विधेयक अधिनियम बन सके।
(ब) वाह उसे अपनी स्वीकृति रोक सकता है तब विधेयक खत्म हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
इस प्रकार राष्ट्रपति वित्त विधेयक को राज्य विधानसभा के पास पुनर्विचार के लिए नहीं भेज सकता जैसा कि संसद के मामले में
राज्यपाल के वीटो शक्ति की तुलना-
सामान्य विधेयकों से संबंधित– प्रत्येक साधारण विधेयक को विधानमंडल के सदन या साधनों द्वारा पहले या दूसरे मौके में पारित कर इसे राज्यपाल के सम्मुख प्रस्तुत किया जाएगा। राज्यपाल के पास चार विकल्प हैं-
1. वाह विधेयक को स्वीकृति प्रदान कर सकता है विधेयक फिर अधिनियम बन जाता है।
2. वाह विधेयक को अपनी स्वीकृति रोक सकता है तब विधेयक समाप्त हो जाएगा और अधिनियम नहीं बन पाएगा।
3. यदि विधेयक को बिना किसी परिवर्तन के पीछे दोनों सदनों द्वारा पारित कराकर राज्यपाल की स्वीकृति के लिए भेजा जाए तो राज्यपाल को उसे स्वीकृति अवश्य देनी होती है। इस तरह राज्यपाल के पास केवल स्थगन वीटो का अधिकार है।
4. वह विधेयक को राष्ट्रपति कि केवल के लिए सुरक्षित रख सकता है।
जब राज्यपाल राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए किसी विधायक को सुरक्षित रखता है तो उसके बाद विधेयक को अधिनियम बनाने में उसकी कोई भूमिका नहीं रहती यदि राष्ट्रपति द्वारा उस विधेयक को पुनर्विचार के लिए सदन या सदनों के पास भेजा जाता है और उसे दोबारा पारित कर के राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है यही राष्ट्रपति संस्कृति देता है तो यह अधिनियम बन जाता है इसका तात्पर्य है कि अब राज्यपाल की स्वीकृति की आवश्यकता नहीं रह जाती है
धन विधेयकों से संबंधित-
कोई भी वित्त विधेयक जब राज्य विधान मंडल द्वारा पारित कर राज्यपाल के पास संस्कृति के लिए भेजा जाता है तो उसके पास तीन विकल्प होते हैं-
1. वह विधेयक को अपनी स्वीकृति दे सकता है, तब विधेयक अधिनियम बन जाता है।
2. वह विधेयक को अपनी संस्कृति रोक सकता है जिसे विधेयक समाप्त हो जाता है और अधिनियम नहीं बनपाता है।
3. वहां विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकता है। इस तरह राज्यपाल वित्त विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज विधान सभा को वापस नहीं कर सकता।
सामान्यत: उसीकी पूर्व अनुमति के बाद विधानसभा द्वारा पुनः स्थापित वित्त विधेयक को वह स्वीकृति दे देता है। जब राज्यपाल राष्ट्रपति के विचारार्थ वित्त विधेयक को सुरक्षित रखता है तो इस विधेयक के क्रियाकलाप पर फिर उसी की कोई भूमिका नहीं रहती। यदि राष्ट्रपति विधेयक को स्वीकृति दे दे तो यह अधिनियम बन जाता है इसका अर्थ है कि राज्यपाल की स्वीकृति अब आवश्यक नहीं है। यह है की आगे चलकर राज्यपाल की मंजूरी आवश्यक नहीं है।
निष्कर्ष-(conclusion)
दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ा होगा जो कि राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के वीटो शक्ति की तुलना के बारे में हमने चर्चा किया है।
जिस प्रकार राष्ट्रपति पूरे देश का नाम मात्र का प्रधान होता है उसी प्रकार एक प्रदेश का राज्यपाल भी नाम मात्र का प्रधान होता है। सही मायने में जो काम राष्ट्रपति केंद्र सरकार के लिए करता है वही काम राज्यपाल प्रदेश सरकार के लिए करता है। दरअसल राज्यपाल राज्य में केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है, जो कि केंद्र सरकार को राज्य की कार्यप्रणाली के बारे में बताता रहता है।