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राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति -Rashtrapati ki adhyadesh Jari karne ki Shakti

नमस्कार दोस्तों आप सबका मारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों आज हम चर्चा करने जा रहे हैं एजुकेशन से रिलेटेड राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति के बारे में-

राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति (Rashtrapati ki adhyadesh Jari karne ki Shakti)

संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति को संसदीय सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई है। अनन्या देशों का प्रभाव व शक्तियां संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की तरह ही होती हैं परंतु यह प्राकृतिक से अल्पकालीन होते हैं।

राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधायी शक्ति हैं या शक्ति उसे अप्रत्याशित अथवा अविलंबनीय मामलों से लेफ्ट ले हेतु दी गई है परंतु इस शक्ति के प्रयोग में निम्नलिखित 4 सीमाएं हैं:

1. वह अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब संसद के दोनों अथवा दोनों में से किसी भी एक सदन का सत्र चल रहा हो अध्यादेश उस समय भी जारी किया जा सकता है। जब संसद में केवल एक सदन का सत्र चल रहा हो क्योंकि कोई भी विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाना होता है ना कि केवल एक सदन द्वारा जब संसद के दोनों सदनों का सत्र चल रहा हो उस समय जारी किया गया अध्यादेश अमान्य इस प्रकार राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति विधायिका के समांतर शक्ति नहीं है।

2. वह कोई अध्यादेश केवल तभी जारी कर सकता है जब वह इस बात से संतुष्ट हो कि मौजूदा परिस्थिति ऐसी है कि उसके लिए तत्काल कार्रवाई करना आवश्यक है कूपर केस 1970 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा राष्ट्रपति संतुष्टि पर असदभाव के आधार पर प्रश्न चिन्ह लगाया जा सकता है इसका अर्थ है कि राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी करने के निर्णय पर न्यायालय में इस आधार पर प्रश्न उठाया जा सकता है कि राष्ट्रपति ने विचार पूर्वक संसद के एक सदन अथवा दोनों सदनों को कुछ समय के लिए स्थगित कर एक विवादास्पद विषय में अध्यादेश प्रख्यापित किया है और संसद को नजर अंदाज किया है जिससे संसद के प्राधिकार की परिवंचना हुई है।38वें संविधान संशोधन अधिनियम 1975 में कहा गया कि राष्ट्रपति की संतुष्टि अंतिम व मान्य होगी तथा न्यायिक समीक्षा से परे होगी परंतु 44 वें संविधान संशोधन द्वारा इस उपबंध का लोप कर दिया गया। अत: राष्ट्रपति की संतुष्टि को असदभाव के आधार पर न्यायिक चुनौती दी जा सकती है।

3. सभी मामलों में अध्यादेश जारी करने की उसकी शक्ति केवल समय अवधि को छोड़कर संसद की कानून बनाने की शक्तियों के समविस्तीर ही है। इस की विवक्षाएं हैं:

( अ ) अध्यादेश केवल उन्हीं मुद्दों पर जारी किया जा सकता है जिन पर संसद कानून बना सकती है।

( ब ) अध्यादेश को वही संवैधानिक सीमाएं होती हैं जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून की होती हैं। अतः एक अध्यादेश किसी भी मौलिक अधिकार का लघुकारण अथवा उसको छीन नहीं सकता।

4. संसद सत्रावसान की अवधि में जारी किया गया प्रत्येक अध्यादेश संसद की पुनः बैठक होने पर दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए यदि संसद के दोनों सदनों से अध्यादेश को पारित कर देती हैं तो वह कानून का रूप धारण कर लेता है यदि इस पर संसद कोई कार्रवाई नहीं करती तो संसद की दोबारा बैठक के 6 हफ्ते पश्चात या अध्यादेश समाप्त हो जाता है यदि संसद के दोनों सदन इसका निरनुमोदन कर दे तो यह निर्धारित 6 सप्ताह की अवधि से पहले भी समाप्त हो सकता है यदि संसद के दोनों सदनों को अलग-अलग तिथि में पुनः बैठक के लिए बुलाया जाता है तो यह 6 सप्ताह बाद वाली तिथि से गिने जाएंगे इसका अर्थ है कि अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 महीने संसद की मंजूरी न मिलने की स्थिति में 6 हफ्ते की होती है। (संसद के दो सत्रों के मध्य अधिकतम अवधि 6 महीने होती हैं)। यदि कोई अध्यादेश सभा पटल पर रखने से पूर्व ही समाप्त हो जाता है तो इसके अंतर्गत किए गए कार्य वैध व प्रभावी रहेंगे।

राष्ट्रपति भी किसी भी समय किसी अध्यादेश को वापस ले सकता है। हालांकि राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने की शक्ति उसके कार्य स्वतंत्रता का अंग नहीं है और वह किसी भी अध्यादेश को प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल की सलाह पर ही जारी करता है अथवा वापस लेता है।

एक विधायक की भांति एक अध्यादेश भी पूर्ववर्ती हो सकता है। अर्थात इसे पिछली तिथि से प्रभावी किया जा सकता है यह संसद के किसी भी कार्य या अन्य अध्यादेश को संशोधन अथवा निरसित कर सकता है या किसी कर विधि को भी परिवर्तित अथवा संशोधित कर सकता है। हालांकि संविधान संशोधन हेतु अध्यादेश जारी नहीं किया जा सकता है।

भारत के राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने की शक्ति अनोखी है तथा अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों जैसे अमेरिका और ब्रिटेन में प्रयोग नहीं की जा सकती है। अध्यादेश जारी करने की शक्ति के पक्ष में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में कहा अध्यादेश जारी करने की प्रक्रिया राष्ट्रपति को उस परिस्थिति से निपटने में योग्य बनाती है जो आकाश में हुआ अचानक उत्पन्न होती है जब संसद के सत्र कार्यरत नहीं होते हैं यहां पर यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने की शक्ति का अनुच्छेद 352 में वर्णित राष्ट्रीय आपातकाल से कोई संबंध नहीं है राष्ट्रपति युद्ध ब्राह्म और सशस्त्र विद्रोह ना होने की स्थिति में भी अध्यादेश जारी कर सकता है।

लोकसभा के नियम के अनुसार जब कोई विधेयक किसी अध्यादेश का स्थान लेने के लिए सदन में प्रस्तुत किया जाता है उस समय अध्यादेश जारी करने के कारण व परिस्थितियों को भी सदन के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए।

अब तक राष्ट्रपति के अध्यादेश पुनः जारी करने के संबंध में कोई भी मामला उच्चतम न्यायालय में प्रस्तुत नहीं किया गया है।

परंतु डी. सी. वाधवा मामले (1987) में उच्चतम न्यायालय का निर्णय यहां पर काफी संगत है इसमें न्यायालय द्वारा कहा गया कि सन् 1967 – 1981 के बीच बिहार के राज्यपाल द्वारा 256 अध्यादेश जारी किए गए और इन्हें समय-समय पर पुनः जारी कर 1 से 14 वर्ष तक प्रभावी रखा गया न्यायालय ने कहा कि अध्यादेश ओं की भाषा में परिवर्तन किए बिना तथा विधानसभा द्वारा विधेयक पारित करने का प्रयास न करके अध्यादेश ओं का प्रकाशन करना संविधान का उल्लंघन है। तथा इस प्रकार के पुनः प्रकाशित अध्यादेश रद्द होने चाहिए या कहा गया कि अध्यादेश द्वारा विधि बनाने की वैकल्पिक सबको राज्य विधायिका के विधायी शक्ति का विकल्प नहीं बनाना चाहिए।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी को विस्तार पूर्वक पड़ा होगा जोकि राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने की शक्ति के बारे में बताया गया है दोस्तों इसमें बताई गई जानकारी हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर दी है इसलिए यह आर्टिकल बिल्कुल सही है। दोस्तों अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।

Written by skinfo

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