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सल्तनत काल की शुरुआत – saltnat Kal Ki shuruaat

नमस्कार दोस्तों आप सबका हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है आज हम इस आर्टिकल में सहज व सरल शब्दों में चर्चा करने जा रहे हैं सल्तनत काल की शुरुआत के बारे में दोस्तों तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय के पश्चात दिल्ली में पूर्व शासकों का राज्य स्थापित हो गया पूर्व शासकों का रहन-सहन भाषा धर्म तथा शासन करने का तरीका भारतीय शासकों से अलग था तुर्क शासक सुल्तान की उपाधि धारण करते थे उन्होंने दिल्ली को शासन का केंद्र बनाया और लगभग 320 साल तक शासन किया

सल्तनत काल की शुरुआत -(saltnat Kal Ki shuruaat)

मोहम्मद गौरी की मृत्यु 1206 ई० में हो गई। उसके मृत्य के समय तक लगभग पूरा उत्तर भारत उसके अधीन हो चुका था। उसने भारत में शासन चलाने के लिए गुलाम अधिकारी नियुक्त कर रखे थे। इन्हीं में एक योग गुलाम अधिकारी कुतुबुद्दीन ऐबक था। गौरी की मृत्यु का समाचार मिलने के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने स्वयं को भारत में तुर्क राज्य शासक घोषित कर दिया। यह तुर्क राज्य अब तुर्क सल्तनत कहलाया। अगला शासक इल्तुतमिश ने 12 10 ई० में सत्ता संभालने के साथ दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। तब यह दिल्ली सल्तनत के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

आपको इस बात से हैरानी हो सकती है पर उन दिनों गुलाम रखने की प्रथा थी। तुर्किस्तान के युवकों को खरीद कर उन्हें युद्ध और प्रशासन के काम में प्रशिक्षण देकर सुल्तानों को बेचा जाता था। इसलिए वह गुलाम कहलाते थे। सुल्तान की सेवा में आने पर योगी और होनहार गुलामों को ऊंचे हो जिम्मेदारी के पद भी कम पर जाते थे। सुल्तान मोहम्मद गौरी की सेवा में भी ऐसे कई ग्राम थे। और भारत में उसके राज्य का शासन चलाते थे।

सल्तनत के सामने चुनौतियां-(saltnat Ke Samne chunautiyan)

सरदार जिन्हें अमीर कहा जाता था। तुर्क और अफगान कबीलों के होते थे। इनमें जाति श्रेष्ठता तथा सल्तनत में ऊंचा स्थान पाने की भी पूर्ण रहती थी। इन्हीं अमीर सरदारों में से ही सुल्तान होता था। सुल्तान होने के लिए सैनिक योगिता एवं शासकीय क्षमता का होना आवश्यक था। इन क्षमताओं के प्रभाव सेवा सुल्तान बन जाता था। और तभी तुर्क अमीरों का समर्थन प्राप्त करना भी संभव था। सुल्तान के लिए अमीर सरदारों का समर्थन और विश्वास जरूरी था उसे हमेशा भय रहता था कि कहीं यह अमीर सरदार आपस में मिलकर कोई षड्यंत्र ना रखें अतः सुल्तान का अधिकांश समय इनको षड्यंत्र से बचने के उपायों में बीतता था सुल्तानों को इन अमीर सरदारों में संतुलन भी बनाए रखना पड़ता था

सुल्तान इस्लाम धर्म व लंबी थे तथा बाहरी देशों से आए थे। इसलिए भारतीय जनता पर शासन करने के लिए तुर्क अमीरों, उलेमा (धार्मिक वर्ग) को खुश करने के साथ ही हिंदुस्तानी जनता से भी सतर्क रहते थे। क्योंकि सल्तनत में विद्रोह का भय हमेशा बना रहता था। सल्तनत कालीन शासकों ने आंतरिक शांति बनाए रखने के लिए शासकीय प्रबंध तंत्र तथा राज्य विस्तार एवं बाहिरी आक्रमण से रक्षा के लिए मजबूत सैन्य संगठन भी बनाए। इनमें प्रारंभिक तुर्क, खिलजी वंश, तुगलक वंश, सैयद वंश एवं लोधी वंश प्रमुख थे।

प्रारंभिक तुर्क शासक गुलाम वंश (1206 ई० से 1290 ई०)- prarambhik turk shasak gulam vansh(1206-1290 tak)

कुतुबुद्दीन ऐबक-(kutubuddin yebak)

1206 ई० में मोहम्मद गौरी की मृत्यु के पश्चात उसका तुर्क गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक उत्तर भारत का पहला तुर्क शासक बना। कुतुबुद्दीन ऐबक ने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया उसकी उदारता के कारण ही उसे लाखबख्श कहा जाता था, अर्थात वाला आंखों का दान करने वाला दान प्रिय व्यक्ति था। भारतवर्ष में उसके जीवन का अधिकांश समय सैनिक गतिविधियों में ही बीता।

कुतुबुद्दीन ऐबक को भवन निर्माण में भी रुचि थी उसने दिल्ली में कुतुबमीनार, कुव्वल-उल इस्लाम मस्जिद और अजमेर में अड़ाई दिन का झोपड़ा का निर्माण कराया।

कुतुब मीनार की शुरुआत युवक ने की थी परंतु इसको पूर्ण इल्तुतमिश ने कराया

कुतुबुद्दीन ऐबक ने भारत में एक नए राज्य की नींव अवश्य डाली पर उस राज्य को सुदृढ़ बनाने का अवसर उसे नहीं मिल पाया कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ईस्वी में चौगान खेलते हुए घोड़े से गिरकर हो गई

इल्तुतमिश (1210 ई० – 1236)

1210 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के पश्चात दिल्ली के अमीरों ने इल्तुतमिश को गद्दी पर बैठाया उसे ही उत्तरी भारत में तुर्कों के राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है गद्दी पर बैठने के बाद उसे आंतरिक और बाहरी समस्याओं से जूझना पड़ा इल्तुतमिश मैं चालीस गुलाम सरदारों का संगठन अर्थात तुर्कान ऐ-चेहल गानी का निर्माण किया।

इल्तुतमिश का शासन व्यवस्था-(Iltutmish ka shasan vyavastha)

इल्तुतमिश ने देश में एक राजधानी एक स्वतंत्र राज्य, राजतंत्र प्रशासनिक व्यवस्था और अफसरशाही व्यवस्था की स्थापना की। उसने दिल्ली को भारतवर्ष में तुर्क साम्राज्य का राजनीतिक प्रशासनिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया। उसने अक्ता व्यवस्था के द्वारा केंद्र को प्रांतीय और स्थानीय शासन से जोड़ने की नींव डाली।

सुल्तान ने अपनी सल्तनत राज्य को कुछ प्रांतों में बांटा प्रांतों को इक्ता कहते थे। हर इक्ता में सुल्तान अपने एक जिम्मेदार सेनापति को नियुक्त करता था। जिसे इक्ता या अक्तादार कहा जाता था।

इक्तादार के पास अपनी सेना होती थी। और प्रशासन चलाने के लिए अधिकारी होते थे। इक्तादार इन की सहायता से राज्य की रक्षा करते थे और अपने नियंत्रण क्षेत्रों से हर वसूल करते थे। अपने इक्ता से इकट्ठे किए गए कर से ही वह अपना अपने अधिकारियों का और अपने सैनिकों का खर्चा चलाते थे।

इस खर्चे के उपरांत जो कर बचता था उसे इक्तादार सुल्तान को भेज देते थे।

इल्तुतमिश ने मुद्रा व्यवस्था में सुधार करते हुए चांदी का टंका और तांबे का जीतल चलाया। 1236 ई० में इल्तुतमिश की मृत्यु हो गई उसने अपने जीवन काल में ही अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था। जो कि पूरे विश्व में रजिया पहली मुस्लिम महिला शासक थी

अस्वीकरण-(Disclemar)

मित्रों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंदर तक पढ़ा होगा जो की (सल्तनत काल की शुरुआत) के बारे में हमने बताया। मित्रों यह आर्टिकल हमने अपने स्टडी के माध्यम से लिखा है इसलिए आर्टिकल सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयास करेंगे।

Written by skinfo

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