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समाज का अर्थ (Samaj ka Arth)

नमस्कार दोस्तों हमारे वेबसाइट में आप सब का बहुत-बहुत स्वागत है आज हम आप सबको बताएंगे समाज का अर्थ समाज किसे कहते हैं। दोस्तों प्राया सामान्य रूप से समाज शब्द से प्रत्येक व्यक्ति परिचित है। ऐसी मान्यता है, कि जहां जीवन है वही समाज भी है। समाज एक प्रमुख अवधारणा है। सामाजिक व्यवस्था है जिसमें सदस्य संबंधों के आधार पर जुड़े होते हैं। कुछ व्यक्ति व्यक्तियों के किसी भी संगठन को समाज कर देते हैं। कुछ विद्वानों ने तो प्रजाति के आधार पर समाज का उल्लेख किया है, तो चलिए दोस्तों अब हम जानते हैं। समाज का अर्थ उसके बाद में हम जानेंगे समाज का परिभाषा बस आप लोग सिर्फ इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ें?

समाज का अर्थ (Samaj ka Arth)

दोस्तों दोस्तों यद्यपि दैनिक बोलचाल की भाषा में समाज शब्द का उपयोग बहुत मनमाने ढंग से किया जाता है पराया व्यक्ति मनुष्य के किसी संगठन को समाज कह देते हैं कुछ लोग भाषा धर्म अथवा संस्कृत के आधार पर संबंधित समूह को समाज के रूप में परिभाषित करते हैं। प्राय: हम हिंदू समाज ईसाई समाज अथवा मुस्लिम समाज जैसे शब्दों का प्रयोग करते हैं यह सभी शब्द नितांत वैज्ञानिक है। दोस्तों समाजशास्त्रीय अर्थ में समाज व्यक्तियों का समूह नहीं होता है। बल्कि व्यक्तियों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक संबंधों की व्यवस्था को हम समाज का देते हैं। समाज व्यक्तियों का कोई संगठन नहीं है इसका कोई भौतिक स्वरूप भी नहीं है। समाज पूर्णतया अपूर्व है एक आपूर्ति व्यवस्था के रूप में समाज को सामाजिक संबंधों का जाल कहा जाता है जिसे इंग्लिश में हम(Web of Social relationship) कहां जाता है। संबंधों के जाल का अभिप्राय सामाजिक संबंधों की उस जटिल व्यवस्था से है। जिसके द्वारा व्यक्ति आपस में एक दूसरे से संबंधित रहते हैं। और स्वयं समाज की क्रियाशीलता में भाग लेते हैं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के नाते वह अपने परिवार मित्रों स्कूल के साथियों धार्मिक संस्थानों कार्यालय राज्य और अनेक दूसरे समूह का सदस्य होता है। सदस्यता का आधार कुछ विशेष प्रकार के संबंध ही होते हैं। उदाहरण के लिए परिवार का सदस्य होने का तात्पर्य है, कि वह पारिवारिक व्यक्तियों के रक्त एवं नातेदारी के संबंधित हो मित्रों से संबंध पारस्परिक विश्वास और समान रुचियों के कारण स्थापित होता है। धार्मिक संस्थाओं व कार्यालयों से वाहन एक संस्कृत और आर्थिक स्वार्थों के कारण संबंधित होते हैं। इसी प्रकार राज्य का सदस्य होने के नाते व्यक्ति कुछ राजनीतिक संबंधों की स्थापना करता है।यदि व्यक्ति और उसके संबंधों की कोई सीमा नहीं है कल्पना कीजिए यदि लाखों-करोड़ों व्यक्ति अपने संबंधों की स्थापना करते हैं। तभी व्यक्ति प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में एक दूसरे से संबंधित होते हैं। जब सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था पनपती है तभी हम उसे समाज कहते हैं।

विद्वान परिभाषा
रिइट (Wright) समाज की सरल परिभाषा देते हुए कहा है समाज केवल व्यक्तियों का समूह नहीं है यह समाज में रहने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों की व्यवस्था है
गिडिंग्स(Giddings) समाज स्वयं एक संघ है एक संगठन है औपचारिक संबंधों का योग है जिसमें परस्पर संबंध रखने वाले लोग एक साथ संगठित होते हैं
मैकाइवर एवं पेज(Maikayiver yewam pej) समाज नीतियों कार्य विधियों अधिकार व पारस्परिक सहायता अनेक समूहों तथा उनके विभाजन मानव व्यवहार के नियंत्रण तथा स्वतंत्रताओं की व्यवस्था है
गिन्सबर्ग (Ginsabarg) समाज को और अधिकार स्पष्ट करते हुए कहा है।समाज ऐसे व्यक्तियों का संग्रह है जो अनेक संबंध और व्यवहार की गतिविधियों द्वारा संगठित है तथा उन व्यक्तियों से भिन्न है जो इस प्रकार के संबंधों द्वारा बंधे हुए नहीं है।
पार्क (Park) समाज अनेक आदतों,भावनाओं, जनरीतियों,लोकाचारों, विधियों और संस्कृति की एक सामाजिक विरासत है। जो मानव के सामूहिक व्यवहारों का निर्धारण करती है।
रयूटर (Reuter) समाज को सबसे सरल रूप में परिभाषित करते हुए कहा है समाज एक अमूर्त धारणा है जो एक समूह के सदस्यों के बीच पाए जाने वाले पारस्परिक संबंधों की संपूर्णता का बोध कराती है
पारसन्स (Parsans) समाज उन मानव संबंधों की पूर्ण जटिलता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो क्रियाओं के करने से उत्पन्न हुए हैं, और वह कार्य साधन व साध्य के रूप में किए जाते हैं। चाहे वह यथार्थ हो या प्रतीकात्मक।
कूले (Kule) समाज नीतियों या प्रक्रियाओं का एक जटिल ढांचा है जिसमें प्रत्येक जीवित है और दूसरों के साथ अंतक्रिया करते हुए बढ़ता है।
लेपियर (Lepiyr) समाज मनुष्यों के समूह का नाम नहीं है वरुण वरना या समूह के अंतर संबंधों की जटिल व्यवस्था है

समाज की परिभाषा(Samaj ki paribhasha)

दोस्तों समाज को मानव व्यवहार एवं उसी के परिणाम स्वरूप विकसित संबंधों की समस्याओं व सामंजस्य में वितरित किया जा सकता है। समाज की उपर्युक्त सभी परिभाषा ओं से यह स्पष्ट होता है, कि समाज सामाजिक संबंधों की एक व्यवस्था है यह सामाजिक संबंध सदैव परिवर्तित होते रहते हैं। इसीलिए समाज को भी एक परिवर्तनशील और जटिल व्यवस्था कहा जाता है। समाज के निर्माण में योगदान देने वाला कोई भी संबंध अनियमित और मनमाना नहीं होता है। बल्कि प्रत्येक संबंध कुछ सांस्कृतिक नियमों से बना रहता है। समाज के निर्माण में मनुष्य का स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन केवल मनुष्यों के संग्रह को ही समाज नहीं कहा जा सकता समाज की अवधारणा को समझने में व्यक्त की कभी अवहेलना नहीं की जा सकती है। व्यक्त की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उस पर जो विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक दबाव पढ़ते हैं। उन्हीं के प्रभाव से व्यवस्थित रूप से संबंध स्थापित करता है। इन्हीं संबंधों की समग्रता से समाज को एक विशेष स्वरूप प्राप्त होता है। इसे हम अंग्राकित के रूप से प्रदर्शित कर सकते हैं। कुछ विद्वानों ने समाज की परिभाषा अपने अपने शब्दों में दिया है।

समाज के प्रमुख आधार(Samaj ke pramukh Adhar)

समाज के प्रमुख आधारों को निम्नलिखित रुप से समझा जा सकता है

अधिकार- सामाजिक संबंधों को व्यवस्थित रखने के लिए प्रत्येक समाज में अधिकार की विशेष व्यवस्था होती है प्रत्येक समाज में कुछ व्यक्तियों के संबंध अधिकार के होते हैं।

सामाजिक विभाजन– समाज कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक विभागों में विभक्त रहता है। जिस प्रकार एक राज्य अनेक छोटे-छोटे हिस्सों में संगठित रहकर अपना कार्य करता है उसी प्रकार समाज भी राज, नगर, गांव, पड़ोस, परिवार तथा दूसरे बहुत से छोटे बड़े समूह द्वारा अपने संगठन को कायम रखता है।

स्वतंत्रता– कोई भी सामाजिक व्यवस्था अपने सदस्यों पर अधिक नियंत्रण लगाकर लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकती स्वयं संबंधों का विकास होने के लिए समूह के सदस्यों को स्वतंत्रता भी आवश्यक है स्वतंत्रता के आधार पर अन्य क्षेत्रों में विचार वमर्श द्वारा अपने संबंधों को अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है वास्तविकता यह है कि नियम और स्वतंत्रता एक दूसरे के पूरक हैं।।

निष्कर्ष(conclusion)

दोस्तों दोस्तों इस आर्टिकल में निष्कर्ष निकलकर यह आता है। कि सामाजिक संबंधों की व्यवस्था है। इस दृष्टिकोण से समाज के प्राकृतिक से परिचित होना अत्यंत महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है मानव समाज का अध्ययन सभी सामाजिक विज्ञानों में किया जाता है। लेकिन हमारे सामने कठिनाई आ जाती है कि समाज के बारे में सभी सामाजिक विज्ञानों का दृष्टिकोण एक दूसरे से बहुत भिन्न है।

Written by skinfo

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