नमस्कार मित्रों आप सब का हमारे व्यवसाय में बहुत-बहुत स्वागत है मित्रों आज हम बात करने जा रहे हैं सन 1857 ई. का विद्रोह के बारे में दोस्तों 19वीं शताब्दी के भारतीय इतिहास की सबसे प्रमुख घटना 1857 ई. का विद्रोह माना जाता है। दोस्तों अगर आप छात्र हैं, और किसी कंपटीशन एग्जाम की या की तैयारी कर रहे हैं,तो आप सबके लिए यह आर्टिकल पढ़ना अति महत्वपूर्ण है। चलिए आगे बढ़ते हैं। और जानते हैं सन 1857 ई. का विद्रोह विस्तार पूर्वक?
विद्रोह के कारण(Vidroh ke Karan)
राजनीतिक कारण-1757-1857 के मध्य कंपनी सरकार ने बल, छल, प्रपंच के द्वारा भारत में अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना की थी। इस प्रयास में अनेक राजवंशों एवं राजघरानों का सफाया हो गय। जो राज्य बचे भी रहे उनके आंतरिक एवं बुरा हुआ मामलों पर नियंत्रण कायम कर वहां के शासकों को कटपुतली मात्र बना दिया गया था। कंपनी जिससे और जब चाहती गद्दी पर बैठा देती या हटा देती थी। इसलिए इतने वेलेजली के समय में एक निश्चित निर्धारण कर ली जब देसी राज्यों पर जबरदस्ती सहायक संधि थोप दी गई। सहायक संधि वास्तव में देसी नरेशों के शोषण एवं उनकी स्वतंत्रता के अपहरण के उद्देश्य से कार्यान्वित की गई थी। यद्यपि राज्यों ने विवशता एवं फल इच्छा पूर्वक इस संधि को स्वीकार किया। तथापि इससे उनके दिलों में असंतोष की अग्नि धीरे-धीरे प्रचलित होने लगी।
डलहौजी की नीतियां(Dalhouji ki Neetiyan)
दोस्तों डलहौजी की नीति ने इस अग्नि में घी का काम किया। डलहौजी ने गोद निषेध नीति के आधार पर सातारा, नागपुर, झांसी, संबलपुर, जैतपुर, उदयपुर आदि राज्यों को जबरदस्ती ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया। इसी प्रकार कुशासन के आधार पर बरार तथा अवध को भी अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। अवध के विलय ने समस्त भारत एवं अवध के असंतोष व्याप्त कर दिया। इसका प्रभाव सेना पर भी पड़ा क्योंकि कंपनी की सेना में अवध के सैनिक बहुत अधिक संख्या में थे। इसके साथ ही साथ अवध के तालुके दारू, जमीदारों, सैनिकों, प्रशासनिक, अधिकारियों एवं जनसाधारण में भी असंतोष व्याप्त हो गया। क्योंकि उनके सामने अधिकारी एवं आर्थिक समस्याएं उठ खड़ी हुई। अवध के विलय अंग्रेजों की स्वामीभक्त भी उनका रक्षा नहीं कर सकती है। अंग्रेज ना तो अपने मौखिक और ना ही लिखित संधि का पालन करते थे। इससे अंग्रेजों के प्रति निराशा भय असंतोष एवं घबराहट देसी शासकों एवं उनके आश्रितों में छाने लगी। वह अपनी सुरक्षा के लिए तैयार होने लगे।
डलहौजी की अन्य नीतियां भी घातक सिद्ध हुई। उसने पदों एवं पेंशनों को समाप्त कर बड़े भारतीय वर्ग को असंतुष्ट कर दिया। कर्नाटक एवं तंजोर के नवाब एवं राजा के पद समाप्त कर दिए गए। इसी प्रकार अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहब की पेंशन बंद कर दी गई। इससे नाना साहब अंग्रेजों का कट्टर दुश्मन बन गया। और विद्रोह में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मुगल के बादशाह के साथ हुए दुर्व्यवहार ने तो हिंदू – मुस्लिम जनता को भी क्रोधित कर दिया। मुगल बादशाह शक्त ही नहीं सही परंतु अब भी वह भारत का एकछत्र बादशाह माना जाता था।डलहौजी ने उसके पद को भी समाप्त करने की योजना बनाई और 1849 ई. में यह घोषणा की कि बहादुर शाह के पश्चात उसके उत्तराधिकारी को लाल किला छोड़कर कुतुब के पास रहना होगा। लॉर्ड कैनिंग तो और भी आगे बढ़ गया उसने 1856 ई. में या घोषणा
कर दी कि बहादुर शाह की मृत्यु के बाद मुगल बादशाह की उपाधि धारण नहीं कर सकेंगे। स्पष्टता यह मुगल वंश के शासन को समाप्त करने की घोषणा थी। इस ने जनमानस में कोलाहट की भावना भरकर उन्हें विद्रोह करने को उत्प्रेरित किया।
प्रशासनिक कारण(Prasashnik Karan)
दोस्तों कंपनी सरकार की प्रशासकीय नीति भी असंतोष का कारण बनी। विभिन्न गवर्नर जनरल द्वारा किए गए सुधार कार्य ऊपर से ही लुभावने प्रतीत होते हैं।व्यावहारिक दृष्टि से अत्यंत ही लोकप्रिय एवं कष्टप्रद थे।कंपनी सरकार की न्याय व्यवस्था प्रकार लगान व्यवस्था भी संतोषजनक एवं कष्टप्रद थी।कृषकों पर कर का अत्याधिक भार था।प्रायः प्रत्येक भू-राजस्व प्रणाली चाहे वह स्थायी बंदोबस्त हो या रैयतवाड़ी या महालवाड़ी व्यवस्था और सब का एकमात्र उद्देश्य एवं परिणाम क्रिसको पर लगान का बोज बढ़ना ही था। फलस्वरूप व्यापारियों, किसानों की अवस्था बिगड़ती गई। किसानों एवं जनसाधारण को प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार का भी सामना करना पड़ा था। कंपनी के कर्मचारी धनलोलुप थे। किसानों पर अत्याचार कर मनचाहा धन बटोरते थे। न्याय सिर्फ धनी लोगों को ही प्राप्त होता था।
कंपनी सरकार नौकरी देने में भी भेदभाव की नीति बरताती थी। ऊंची और अच्छी तनख्वाह वाली नौकरीया सिर्फ अंग्रेजों के लिए सुरक्षित थी। मध्यम उच्च वर्ग वाले भारतीयों को ऐसी नौकरियों से अलग रखा गया था। और जो भारतीय सरकारी सेवा में थे भी उनके साथ तो और अपमानजनक व्यवहार किया जाता था। इससे भारतीयों में आक्रोश एवं असंतोष था। इसके साथ-साथ देसी रियासतों के अंग्रेजी राज्य में विलय हो जाने से अनेक प्रतिष्ठित उच्च कुलीन मध्यवर्गीय व्यक्तियों कलाकारों, धार्मिक, पैसे वाले व्यक्तियों के समक्ष बेकारी एवं भुखमरी की समस्या आ खड़ी हुई। अपनी सुरक्षा के लिए मौलवियों एवं पंडितों ने जनमानस में आक्रोश एवं विद्रोह की भावना भरना आरंभ कर दिया।
आर्थिक कारण(Aarthik Karan)
कंपनी द्वारा भारतीयों का आर्थिक शोषण भी विद्रोह का एक प्रमुख कारण बना। भारत आते ही अंग्रेजों ने यहां के कुटीर उद्योगों को नष्ट करना एवं भारतीयों का शोषण करना आरंभ कर दिया। फलस्वरूप 18वीं शताब्दी के उत्तरार्धद तक अनेक कुटीर उद्योग नष्ट हो चुके थे। अंग्रेजों की मुक्त व्यापार की नीति एवं इंग्लैंड के बने हुए वस्त्रों को कम मूल्य पर बेचने से भारत का कुटीर वस्त्र उद्योग समाप्त हो गया। भारतीय व्यापार वाणिज्य पर भी कंपनी का एकाधिकार स्थापित हो गया।अंग्रेज सरकार की आर्थिक नीति का दुष्प्रभाव भारत के कृषि को कारीगरों, दस्तकारों एवं जमीदारों पर पड़ा। उनकी की अवस्था अत्यंत ही दयनीय हो गई। अनेक भूमिपति दरिद्र बन गए। सिर्फ मुंबई में इनाम कमीशन द्वारा 20000 जागीरें जप्त कर ली गई। अवध के अनेक तालुकेदार के भी जमीन छीन लिए गए। शैक्षणिक एवं धार्मिक संस्थाएं भी प्रभावित हुई। उदाहरणस्वरूप झांसी में लक्ष्मी मंदिर के कर मुक्त गांव कंपनी ने जप्त कर लिए। कंपनी की इस आर्थिक नीति ने कृषि को शिल्पीयों, जमीदारों, व्यापारियों की अवस्था को दयनीय बना दिया। वस्तुत: भारत के आर्थिक शोषण ने समाज के सभी वर्गों को प्रभावित किया तथा उनमें असंतोष की भावना भर दी।
सामाजिक कारण(Samajik)
अनेक सामाजिक कारणों से भी भारतीयों में असंतोष फैल रहा था। अंग्रेज अधिकारी भारतीयों के प्रति तिरस्कारपूर्ण दृष्टिकोण रखते थे। एवं उनसे अपमानजनक व्यवहार करते थे। वह अंग्रेज जाति की उच्चता में विश्वास रखते थे। एवं कालों को घृणा से देखते थे। जनसाधारण की तो बात ही अलग है। राजा राममोहन राय जैसे सम्मानित भारतीयों को भी अंग्रेजों ने अपमानित करने से नहीं बख्शा। अंग्रेजों के भारतीयों पर घातक प्रहार करने पर भी न्यायालय उन्हें दंडित नहीं करता था। जनसाधारण को अंग्रेजों के अत्याचारों का सामना करना पड़ता था। नीलदर्पण में नीलहों के अत्याचारों का वर्णन रोंगटे खड़े कर देने वाला है। इसी प्रकार अंग्रेजों ने भारतीय रीति-रिवाजों पर भी आक्रमण किया। बाल विवाह, सती प्रथा, गोद लेने की प्रथा पर रोक लगाने एवं विधवा विवाह को जायज करार देने से भारतीय सशंकित हो उठे। अंग्रेज भारतीय भाषा संस्कृति एवं प्राचीन परंपराओं को जिस उपेक्षा की दृष्टि से देखते थे वह उन पर आज आक्षेप करते थे। वैसे परिस्थिति में अंग्रेजों द्वारा किए गए सुधार के काम भी अपना महत्व खो बैठे और उन्हें भारतीयों के आक्रोश का सामना करना पड़ा।
धार्मिक कारण(Dharmik Karan)
दोस्तों 1857 ई. के विद्रोह में धार्मिक कारणों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत में ईसाई मिशनरियों के कार्यों ने असंतोष को बढ़ाने में योगदान दिया। पाटरी वर्ग एवं मिशनरी स्कूलों शिक्षित वर्ग दोनों भारतीय धर्म की खुली आलोचना करते थे। मिशन भारतीयों को लोग देखकर अपना धर्म परिवर्तित करने को भी प्रेरित कर रहे थे। ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले को सरकारी नौकरियां दी जाती थी। इतना ही नहीं बैटिक ने एक कानून बनाकर इसाई धर्म स्वीकार करने वाले को पैतृक सम्पति में भी हिस्सा दिलवा दिया।यह हिन्दू धर्म एवं क़ानून पर सीधा प्रहार था। इसी प्रकार गोद लेने की प्रथा भी हिंदू धर्म के अंतर्गत मान्य एवं आवश्यक थी परंतु डलहौजी ने इस पर प्रतिबंध लगाकर सब को नष्ट कर दिया। अंग्रेजी मिशन हिंदू धर्म के बदले ईसाई धर्म की शिक्षा को बढ़ावा देते थे। मिशनरी स्कूलों में बाइबल की शिक्षा अनिवार्य थी। जहां विद्यार्थियों को हिंदू धर्म के बदले ईसाई धर्म की सर्वोच्चता का पाठ पढ़ाया जा रहा था। इससे भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई कि अंग्रेज उनके धर्म को भी नष्ट करना चाहते हैं। अपने धर्म पर आक्रमण होते हुए वह नहीं देख सकते थे मुल्ला,मौलवी, पंडित साधु-सन्यासी जिनका राज्य के संरक्षण समाप्त हो चुका था। इस बात का घूम घूम कर प्रश्न कर रहे थे। एवं जनमानस को उद्वेलित कर रहे थे। भारतीयों का अंग्रेजों पर से विश्वास इस हद तक हट चुका था कि वे रेल,तार,डाक डाक जैसी सुविधाजनक एवं आवश्यक सुविधाओं को भी संकाय एवं अविश्वास की दृष्टि से देखते थे। चर्बी वाले कारतूस की घटना ने तो उनकी रही सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया तथा उन्हें विद्रोह के लिए तत्पर पर कर दिया।
अंग्रेजों के प्रति अविश्वास की भावना(Angrejon ke prti Aviswas ki bhawna)
दोस्तों भारतीय अंग्रेजों को हमेशा विदेशी ही समझते रहे उनके प्रति उनकी सहानुभूति नहीं हो सकी। अंग्रेजों के पूर्व यद्यपि तुर्क और मुगल भी भारत आए तथा उन्होंने अपने आप को भारतीय जीवन धारा में समाहित कर लिया था। अंग्रेज ऐसा नहीं कर पाए उनका एकमात्र उद्देश्य भारत पर शासन करना और इसे लूट कसोडकर धन कमाना ही था। इसलिए वे भारतीय समाज के साथ संपर्क कायम नहीं कर पाए। उनका अपना अलग ही वर्ग था। अतः भारतीय उन्हें कभी अपने हितेषी के रूप में नहीं देखा। अंग्रेजों के स्वामीभक्त भारतीय भी दिल से उन्हें पसंद नहीं करते थे। जनमानस सदा ही अंग्रेज विरोधी भावनाओं से भरा रहा।
अंग्रेजों की अजेयता में विश्वास कम होना(Angrejon ki Ajeyta men Viswas kqm Hona)
दोस्तों सीमित साधनों प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जिस प्रकार अंग्रेजों ने भारत में अपने राज्य की स्थापना की थी, उससे भारतीयों में उनकी अजेयता के प्रति विश्वास की भावना पैदा हो गई। थी परंतु 18 57 ई. के पूर्व अनेक युद्धों में उनकी पराजय ने अंग्रेजों की अपराजिता की भावना नष्ट कर दी। प्रथम अफगान युद्ध, पंजाब युद्ध, क्रीमिया के युद्ध में अंग्रेजो को पराजय का सामना करना पड़ा। इसी प्रकार 1855 -56 इ. में संथालो ने अंग्रेजों का जमकर मुकाबला किया एवं संथाल परगना से अंग्रेजी सत्ता थोड़े समय के लिए समाप्त कर दी। इन घटनाओं ने भारतीयों में यह विश्वास जगा दिया कि साहस और शक्ति से अंग्रेजों को परास्त कर भारत को मुक्त किया जा सकता है।
सैनिक कारण(Sainik karan)
दोस्तों अगर इन सारे असंतोषों के बावजूद अगर सैनिकों का सहयोग भारतीयों को नहीं मिलता तो संभवत: क्रांति नहीं होती भाग्य व सैनिक वर्ग भी अंग्रेजों से असंतुष्ट था।
विद्रोह का तात्कालिक कारण(Vidroh kw tatkalik Karan)
दोस्तों विद्रोह का तत्कालीन कारण यह था कि ऐसी ही परिस्थिति में कंपनी सरकार ने पुरानी ब्राउन बैस बंदूक की जगह जनवरी 1857 को नई एनफील्ड राइफल का प्रयोग आरंभ किया। इस राइफल में जो कारतूस भरी जाती थी। उसे दांत से काटना पड़ता था। बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गई कि इस कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है। इससे हिंदू,मुसलमान सैनिकों में भयंकर रोष उत्पन्न हो गया। उनके मन में यह बात बैठ गई की सरकार उनका धर्म भ्रष्ट करने पर तुली हुई है। इस घटना ने उस आग को जलाया जिसके लिए लकड़ियां पहले ही से इकट्ठी हो चुकी थी। लोगों ने यह कहना शुरू कर दिया कि कंपनी औरंगजेब की भूमिका में है। और सैनिकों को शिवाजी बनना ही है। अतः सेना अपने धर्म की रक्षा के लिए कटिबद्ध हो गई।
विद्रोह का आरंभ और विस्तार(Beginning and Spread of the Revalt)
दोस्तों अब बात आती है विद्रोह की तो जनवरी 18 57 से चर्बी वाले कारतूस की अफवाह बंगाल सेना में फाइनली शुरू हो गई इस घटना से बैरकपुर की छावनी में असंतोष फैल गया। बहरामपुर की सैनिकों ने भी इस कारतूस का प्रयोग करने से इंकार कर दिया। क्रुद्ध होकर लॉर्ड कैनिंग ने इस टुकड़ी को ही बंद कर दिया। इससे 34 एन.आई. के सैनिकों में बड़ा असंतोष फैला।
29 मार्च 1857 को बैरकपुर के सैनिक मंगल पांडे ने अपने दो अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी। मंगल पांडे को गिरफ्तार कर बाद में फांसी की सजा दी गई। एवं सेना की एक टुकड़ी को भंग कर दिया गया। इस टुकड़ी में अधिकांश सिपाही अवध के थे। उन लोगों ने वही जाकर इस घटना का प्रचार किया। अंबाला में भी कुछ उपद्रव हुए लखनऊ में भी 7वी अवध रेजिमेंट के सिपाहियों ने भी इन कारतूसों का प्रयोग बंद कर दिया।अवध के कमिश्नर हेनरी लॉरेंस ने इसे भंग कर दिया। इस बीच विद्रोह के संकेत स्वरूप उत्तरी भारत में चपातीया तथा कमल के फूल एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी गई यह क्रांति एवं विप्लव की अग्रदूत थी।
10 मई 1857 की संध्या को सैनिकों ने खुली बगावत कर दी। विद्रोह का केंद्र मेरठ बना वहां पहले ही सैनिकों ने चर्बी लगे कारतूस का प्रयोग करने से इंकर कर दिया था। फलत: 85 सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया था। क्रुद्ध होकर 10 मई को सैनिकों ने जेल तोड़कर अपने बंदी साथियों को छुड़ा लिया। एवं अंग्रेज अधिकारियों पर हमला कर अनेकों की जाने ले ली। मेरठ की विद्रोही सेना 11 मई को दिल्ली पहुंची इसने मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर को भारत का सम्राट एवं अपना नेता घोषित किया। विद्रोहियों ने अनेकों अंग्रेजों की हत्या कर दी। शस्त्रागार नष्ट कर दिया तथा लाल किला एवं दिल्ली पर अधिकार कर लिया दिल्ली की जनता ने भी विद्रोहियों का साथ दिया।
दोस्तों यह विद्रोह दिल्ली से आरंभ होकर अन्य नगरों में फैल गया। अलीगढ़, इटावा, मथुरा, मैनपुरी, रुहेलखंड, मुरादाबाद, फर्रुखाबाद, कानपुर, बरेली शाहजहांपुर, आगरा, मुजफ्फरनगर आदि महत्वपूर्ण शहर इसकी चपेट में आ गए। अवध का संपूर्ण इलाका क्रांति की ध्वनि से गूंज रहा था। झांसी, नागपुर तथा बिहार में भी यह विद्रोह फैल गया। लगभग समस्त उत्तरी एवं मध्य भारत में यह विद्रोह उग्र रूप से व्याप्त हो गया। भारत का कोई ऐसा भाग नहीं था जिसमें शासकों की नींद हराम ना हुई हो। और जहां विद्रोह का कोई भाई ना रहा हो 15 जून 1854 तक क्रांति पूरे उत्तरी भारत में फैल चुकी थी एवं कंपनी की सत्ता अनेक जगहों से समाप्त हो गई थी।