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संसद में कानून कैसे बनते हैं – Sansad Mein Kanoon Kaise bante Hain

नमस्कार मित्रों आप सबका हमारे वेबसाइट मैं बहुत-बहुत स्वागत है आज हम अपने वेबसाइट के इस आर्टिकल में चर्चा करने जा रहे हैं संसद में कानून कैसे बनते हैं उसके बारे में

संसद में कानून कैसे बनते हैं (Sansad Mein Kanoon Kaise bante Hain)

सामान्यतया विधेयक दो प्रकार के होते हैं साधारण विधेयक धन विधेयक या वित्त विधेयक

इन दोनों प्रकार के विधेयकों के पारित होने की प्रक्रिया में अंतर है।

साधारण विधेयकों के पारित होने की प्रक्रिया-

साधारण विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं। विधेयक शासन की ओर से किसी मंत्री द्वारा अथवा संसद के किसी अन्य सदस्य द्वारा प्रस्तावित किया जा सकता है। जब विधेयक शासन की ओर से किसी मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है, तो इसे सरकारी विधेयक कहते हैं। और जब इसे किसी ऐसे सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो मंत्री मंडल का सदस्य नहीं है तो इसे गैर सरकारी विधेयक या निजी सदस्य का विधेयक कहते हैं।

इंग्लैंड की भांति भारत में भी विधेयक के तीन वाचन होते हैं, जो निम्न प्रकार हैं:

1. प्रथम वाचनविधेयक को प्रस्तावित करना – कुछ विषयों से संबंधित विधायकों को सदन में प्रस्तावित करने के लिए राष्ट्रपति पूर्व अनुमति आवश्यक होती है जैसे राज्यों की सीमा में परिवर्तन करने वाले विधेयक साधारणतया किसी भी विधेयक को प्रस्तुत करने की आज्ञा प्राप्त करने के लिए एक माह का नोटिस देना आवश्यक होता है यदि कोई सदस्य किसी विधेयक को पेश करना चाहता है तो उसे सदन की आज्ञा लेनी होती है आज्ञा मिलने पर विधेयक प्रस्तुत करने वाला सदस्य यदि विधेयक महत्वपूर्ण हुआ तो उसकी मुख्य बातों के संबंध में एक भाषण भी दे सकता है इसी समय विधेयक के विरोधी सदस्य द्वारा भी अपने विचार व्यक्त किए जा सकते हैं यही विधेयक का प्रथम वाचन कहलाता है

2. दितीय वाचन – इसके बाद एक निश्चित दिन विधायक आदित्य वाचन प्रारंभ होता है। उसे दिल विधायक का प्रस्तावक इनमें से कोई एक प्रस्ताव रखता है – (1) विधेयक प्रवर समिति को विचारार्थ सौंप दिया जाए। (2) जनमत जानने के लिए प्रस्तावित किया जाए। (3) उसे पर तत्काल ही विचार किया जाए। साधारणत: अति आवश्यक सरकारी अथवा विवाद रहित विधायकों को छोड़कर अन्य विधायकों पर तत्काल विचार नहीं किया जाता। समाज सुधार संबंधी विधेयक बहुधा जनमत जानने के लिए प्रसारित किए जाते हैं किंतु अधिकांश विधायकों पर विचार हेतु प्रवर समिति ने बना दी जाती हैं। उपर्युक्त में से कोई सा भी प्रस्ताव पास होने पर सदन में विधेयक के मूल सिद्धांतों पर वाद – विवाद होता है। इस समय विचार की बातों पर वाद – विवाद नहीं होता और ना ही कोई संशोधन पेश किया जाता है। इसके उपरांत विधायक तीसरी स्थिति में आता है जिन्हे

3. तृतीय वाचन – अंत में भी देखो किसी निश्चित दिन सदन के विचारार्थ लाया जाता है, यह वाचन मुख्यता औपचारिक ही होता है क्योंकि इस चरण में विधेयक में कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं किया जा सकता। तृतीय वाचन में साधारणतया विधेयक के स्पष्ट शब्दों को अधिक स्पष्ट करने और उसने भाषा संबंधी सुधार किए जाते हैं। विधेयक पर मती के लिए जाते हैं। और यदि बहुमत विधेयक के पक्ष में हो तो सदन का अध्यक्ष विधेयकों पास हुआ प्रमाणित करके उसे दूसरे सदन में भेज देता है। दूसरे सदन द्वारा भी विधेयक के संबंध में यही प्रक्रिया अपनाई जाती है दूसरे सदन द्वारा विधेयक आज स्वीकृत किए जाने या उसमें ऐसे संशोधन किए जाने पर जो प्रथम सदन को सभी कार्य ना हो अनुच्छेद 108 के अनुसार राष्ट्रपति दोनों सदनों की एक संयुक्त बैठक बुला सकता है। और संयुक्त बैठक में बहुमत के आधार पर विधायक के भाग्य का निर्णय होता है। यदि दूसरा सदन 6 माह तक विधेयक पर कोई कार्यवाही ना करे तो भी राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलवा सकता है

सामान्यतया प्रथम वाचन, दितीय वाचन और तृतीय वाचन आज स्थितियों में विधेयक पर विधिवत रूप से मतदान होता है। लेकिन कभी-कभी विधेयक ऐसे विषय से संबंधित होता है जिस पर सदन की सामान्य सहमति हो ऐसी स्थिति में सदस्य मौके के रूप में और एक साथ घोषणा कर सकते हैं। कि हम विधेयक को स्वीकार करते हैं। इस प्रकार की घोषणा को ध्वनि मत कहते हैं।और इस मौके घोषणा के आधार पर विधेयक को सभी कृति समझा जाता है। लेकिन यदि सदन का एक भी सदस्य इस बात की मांग करें कि विधेयक पर मतदान होना चाहिए, तो विधेयक पर मतदान होता है। संसद के समान राज्य विधानमंडलों में भी ध्वनिमत की स्थिति को अपनाया जा सकता है।

विधेयक के दोनों सदनों द्वारा पारित होने पर हुआ राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता है

राष्ट्रपति उसे स्वीकृति या अस्वीकृत कर सकता है या विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा विधेयक को पुनर्विचार के लौट आने पर यह दोनों सदन विधेयक को संशोधन के साथ या बिना संशोधन के स्वीकार कर लेते हैं, तो राष्ट्रपति उस पर स्वीकृति प्रदान करने के लिए बाध्य होता है।

संविधान संशोधन विधेयक पारित किए जाने की भी वही प्रक्रिया है, जो प्रक्रिया साधारण विधेयकों के पास किए जाने की है। अंतर केवल यह है कि संविधान संशोधन विधेयकों के संबंध में संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की कोई व्यवस्था नहीं है और इस प्रकार के विधेयक के संसद के दोनों सदनों से पृथक – पृथक स्वीकृति होना आवश्यक।

वित्त विधेयक के संबंध में कुछ विशेष बातें

साधारणतया आय व्यय से संबंधित सभी विधेयक वित्त विधेयक कहे जाते हैं। संविधान के अनुच्छेद 110 में यह स्पष्ट किया गया है कि किसी प्रकार के विधेयक वित्त विधेयक कहे जाएंगे कोई विधेयक वित्त विधेयक है अथवा नहीं इसका अंतिम निर्णय लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा किया जाएगा।

अस्वीकरण (Disclemar)

मित्रों हम आशा करते हैं कि इस आर्टिकल को आप लोगों ने अंत तक पढ़ा होगा और समझा होगा कि संसद में कानून कैसे बनते हैं। मित्रों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर आप सबके समक्ष प्रस्तुत किया है इसलिए यह आर्टिकल सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।

Written by skinfo

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