नमस्कार मित्रों आप सब का हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है मित्रों आज हम बात करने जा रहे हैं स्थानीय स्वशासन की परिभाषा और इतिहास के बारे में दोस्तों राजनीतिक व्यवस्था में स्थानीय स्वशासन का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है। स्थानीय स्वशासन का तात्पर्य है कि स्थानीय मामलों का प्रबंध स्थानीय व्यक्ति स्वयं अपने प्रतिनिधियों द्वारा करें स्थानीय स्वशासन में दो प्रकार की स्थानीयता होती है।
1. क्षेत्र संबंधी स्थानीय स्वशासन का शासन क्षेत्र सीमित होता है।
2. कार्य संबंधी इन संस्थाओं के कार्य नल बिजली यातायात इत्यादि ऐसे छोटे कार्य है जिन का महत्व केवल स्थानीय होता है।
दोस्तों सबसे पहले हम जानते हैं स्थानीय स्वशासन की परिभाषाएं फिर उसके बाद में हम जानेंगे भारत में स्थानीय स्वशासन का इतिहास
स्थानीय स्वशासन की परिभाषा-Sthaniy Swashasan ki Paribhasa
स्थानीय स्वशासन की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं।
गिलक्राइस्ट के अनुसार, स्थानीय संस्थाएं अधीनस्थ संस्थाएं हैं, लेकिन एक सीमित क्षेत्र में इन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता होती है।
डब्ल्यू ए. राब्सन के अनुसार, स्थानीय शासन के अंतर्गत क्षेत्रीय संप्रभु समुदायों की अवधारणा आती है जिसके पास वैधानिक अधिकारों तथा अपने मामलों के निष्पादन हेतु संगठन हो।
कार्ल जे. फ्रेडरिक के अनुसार, स्वायत्त शासन स्थानीय समाज पर एक प्रशासकीय व्यवस्था है, जो व्यवस्थापन के नियमों द्वारा इस प्रकार विनियमित होती है कि सरकार की सत्ता का उस समय प्रतिनिधित्व करें जबकि वह स्थानीय रूप से सक्रिय है।
एनसाइक्लोपीडिया ऑफ ब्रिटेनिका के अनुसार,स्थानीय स्वशासन का अर्थ पूर्ण राज्य की अपेक्षा एक अंदरूनी प्रबंधक एवं छोटे क्षेत्र में निर्णय लेने तथा उनके क्रियान्वित करने वाली सत्ता।
स्थानीय स्वशासन के विभिन्न नाम-Sthaniye Swshasan ke Vibhinn Nam
स्थानीय स्वशासन को प्रजातांत्रिक विकेंद्रीकरण(Democratic Decentralization)थर्ड टायर ऑफ डेमोक्रेसी(Third tier of Democracy), ग्रासरूट डेमोक्रेसी(Grassroot Democracy) आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है।
स्थानीय स्वशासन का महत्व-Sthaniy Swshasan ka mahtw
स्थानीय शासन के महत्व को हम निम्न प्रकार से देख सकते हैं
1.भागीदारी – स्थानीय शासन में अधिक से अधिक लोगों को प्रशासनिक कार्यों में भाग लेने का अवसर मिलता है। जब व्यक्ति विभिन्न प्रशासनिक कार्यों को करते हैं, तो उन्हें स्वता ही उन कार्यों का परीक्षण मिल जाता है या परीक्षण आगे राष्ट्र और समाज की सेवा करने में सहयोग देता है।
2. जागरूकता- जब हम व्यक्ति भी शासनकाल में भाग लेता है, तो उसमें उनमें जागरूकता आती है इससे जनता में जन भावना और उदास दृष्टिकोण का विकास होता है।
3. स्थानीय समस्याओं का समाधान- स्थान स्थान की परिस्थितियों और समस्याएं भिन्न-भन्न हो सकती हैं इन विभिन्न समस्याओं को स्थानीय स्तर पर अधिक सुविधा पूर्वक अनुभव और हल किया जा सकता है स्थानीय जनता के सहयोग से प्रशासन में दक्षता आती है
4. संसाधनों का सदुपयोग- स्थानीय जनता को पता होता है कि वहां कौन से संसाधन उपलब्ध हैं और वह उन संसाधनों का उपयोग भी कर सकते हैं। यह केंद्रीय स्तर के शासन से नहीं जाना जा सकता है कि किस स्थान पर कौन सी योजना सही रहेगी।
5. भ्रष्टाचार में कमी- स्थानीय शासन का क्षेत्र छोटा होता है वहां के कर्मचारी उस क्षेत्र में अपनापन अनुभव करते हैं। जनता का उन कार्यों में सहयोग भ्रष्टाचार को रोकता है।
6. कार्य शीघ्रता से होता है- केंद्र और राज्य सरकारें दूर स्थित होती हैं तथा नौकरशाही के कारण इतनी शीघ्रता से किसी स्थानीय समस्या का समाधान नहीं कर सकती हैं जितनी की शीघ्रता से स्थानीय शासन कर सकता है।
7. केंद्रीय तथा राज्य सरकारों के कार्य भार में कमी– स्थानीय कार्यों को स्थानीय शासन को देने से केंद्र और प्रांतीय सरकारों को इनके कार्यभार
से मुक्ति मिल जाती है, जिससे उन्हें अन्य कार्यों के लिए समय मिल जाता है।
दोस्तों आपने इस आर्टिकल में ऊपर जाना स्थानीय स्वशासन की परिभाषाएं, स्थानीय स्वशासन के विभिन्न नाम तथा स्थानीय स्वशासन का महत्व अब हम आगे जानते हैं स्थानीय स्वशासन का इतिहास?
स्थानीय स्वशासन का इतिहास-Sthaniy Swshasan ka Etihas
दोस्तों भारत में स्थानीय स्वशासन के इतिहास को हम तीन भागों में बांट सकते हैं प्राचीन काल, मध्य युग काल, तथा आधुनिक काल।
1. प्राचीन काल- प्राचीन काल में ऋग्वेद में सभा और समिति नामक दो स्थानीय संस्थाओं का उल्लेख आता है।सभा एक छोटे संस्था होती थी जिसमें प्रत्येक घर का बुजुर्ग मुखिया इसका सदस्य होता था। समिति का आकार बड़ा होता था आम जनता इसके सदस्य होती थी इन दोनों के प्रत्यक्ष प्रजातंत्र के उदाहरण थे।
2. मध्य युग काल- मध्य काल में जाति पंचायतों के रूप में स्थानीय शासन का उल्लेख मिलता है
मद्रास के राजा राजेंद्र चोल में भी स्थानीय शासन की स्थापना में योगदान दिया था।
3.आधुनिक काल- आधुनिक काल में स्थानीय स्वशासन के विकास को हम दो रूप में बांट कर देखते हैं आजादी से पहले तथा आजादी के बाद
आजादी से पूर्व भारत में स्थानीय शासन का प्रारंभ 1687 से माना जाता है जब मद्रास नगर के लिए एक स्थानीय शासन के निकाय अर्थात एक नगर निगम की स्थापना की गई। 1687 से 1881 तक स्थानीय शासन को केंद्र तथा प्रांतों के वित्तीय बोझ को हल्का करने का साधन माना जाता था। और इसी रूप में उसका प्रयोग किया जाता था 1882 मैं भारत के गवर्नर जनरल लार्ड रिपन ने स्थानीय शासन को स्वशासी बनाने का प्रस्ताव रखा। उसकी दृष्टि में स्थानीय शासन प्रधानत: राजनीतिक तथा सार्वजनिक शिक्षा का साधन था। जिस प्रस्ताव में इन सिद्धांतों का समावेश किया गया था उसे एक महान अधिकार पत्र मैग्नाकार्टा कहा गया और लॉर्ड रिपन को भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक कहा गया।
आजादी के बाद – 1950 में नए संविधान के लागू होने के साथ-साथ स्थानीय शासन ने एक नए दौर में प्रवेश किया संविधान ने स्थानीय शासन को राज्य सूची के अंतर्गत रखा और दूसरे राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 40 में कहां गया – राज्य का कर्तव्य होगा कि वह ग्राम पंचायतों का ढंग से संगठन करें जिससे वह स्थानीय स्व-शासन की संस्थाओं के रूप में कार्य कर सकें।
गांधीजी ग्राम राज्य के पक्षधर थे। वह चाहते थे कि देश की पंचायती राज संस्थाओं को अधिक मजबूत और प्रभावी बनाया जाए, किंतु डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा में पंचायतों की बड़ी तीखी आलोचना की। उनके विचार से पंचायतें भ्रष्टाचार, संकीर्णता, दकियानूसीपन और पिछड़ेपन का प्रतीक रही है आधुनिक संवैधानिक शासन में उनका कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अंत में एक समझौते द्वारा अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख कर दिया गया लेकिन नीति- निदेशक तत्वों में होने के कारण यह बाध्यकारी नहीं था।
नगरीय स्थानीय स्वशासन-Nagariy Sthaniy Swshasan
नगरीय स्थानीय स्वशासन के लिए मूल संविधान में कोई व्यवस्था नहीं थी 74 वें संविधान संशोधन द्वारा नगरीय निकायों को संवैधानिक दर्जा दिया गया 74 वें संविधान संशोधन से पूर्व भी कुछ नगरों में स्थानीय इकाइयां पाई जाती थी, जैसे नगरनिगम, नगरपालिका, अधिसूचित क्षेत्र समिति, नगर क्षेत्र समिति, छावनी बोर्ड, नगर-क्षेत्र आदि 74 वें संविधान संशोधन द्वारा तीन प्रकार की नगरपालिका ओं का उल्लेख किया गया नगर पंचायत, नगर – पालिका परिषद तथा नगर निगम।
निष्कर्ष(conclusion)
दोस्तों हमें विश्वास है कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को पूरा पढ़ा होगा तथा अच्छे तरीके से आप लोगों ने जाना होगा कि स्थानीय स्वशासन किसे कहते हैं तो स्थानीय स्वशासन का शासन क्षेत्र सीमित होता है स्थानीय शासन के अंतर्गत क्षेत्रीय संप्रभु समुदायों की अवधारणा आती है जिसके पास बैठा निक अधिकारों तथा अपने मामलों के निष्पादन हेतु संगठन हो।
अस्वीकरण (Disclemar)
यह पोस्ट हमने अपनी जानकारी के माध्यम से लिखा है इसलिए यह पोस्ट काफी हद तक सही है यदि इसमें कोई मिस्टेक दिखाई देती है तो आप हमें कमेंट करके बता सकते हैं।