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विधानपरिषद के अधिकार अथवा शक्तियां तथा कार्य VidhanParishad ke Adhikar athva shaktiyan tatha Karya

नमस्कार दोस्तों आप सब का हमारे वेबसाइट में बहुत-बहुत स्वागत है दोस्तों आज हम इस आर्टिकल में चर्चा करने जा रहे हैं विधानपरिषद के अधिकार अथवा शक्तियां तथा कार्य के बारे में-

विधानपरिषद के अधिकार अथवा शक्तियां तथा कार्य -VidhanParishad ke Adhikar athva shaktiyan tatha Karya

दोस्तों विधानपरिषद के अधिकार तथा कार्यों का उल्लेख निम्न पों में किया जा सकता है:

1. कानून निर्माण संबंधी कार्य
2. कार्यपालिका संबंधी कार्य
3. वित्त संबंधी कार्य

1. कानून निर्माण संबंधी कार्य (Kanoon Nirman sambandhi Karya)

वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य विधेयक राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन में प्रस्तावित किए जा सकते हैं तथा यह विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने चाहिए। लेकिन इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 197 में कहा गया है कि यदि कोई विधायक विधानसभा के पारित होने के पश्चात विधान परिषद द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाता है या परिषद विधेयक में संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार नहीं होते या परिषद के सक्षम विधेयक रखे जाने की तिथि से 3 माह तक विधेयक पारित नहीं किया जाता है तो विधानसभा उस विधेयक को पुणे स्वीकृत कार्य के विधान परिषद को भेजती है। यदि परिषद विधायक को पुनः स्वीकृत देती है अथवा विधेयक रखे जाने की तिथि से 1 माह बाद तक विधेयक पास नहीं करती या परिषद विधेयक में पुणे से संशोधन करती है जो विधानसभा को स्वीकार नहीं होते तो विधेयक विधान परिषद द्वारा पारित किए जाने के बिना ही दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जाता है। इस प्रकार विधानपरिषद किसी साधारण विधेयक को केवल 4 माह तक रोक सकती है। विधानपरिषद किसी विधेयक को समाप्त नहीं कर सकती।

2. कार्यपालिका संबंधी कार्य (karypalika sambandhi Karya)

विधान परिषद के सदस्य मंत्री परिषद के सदस्य हो सकते हैं, विधान परिषद प्रश्नों प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मंत्री परिषद को नियंत्रित कर सकती है, किंतु उसे मंत्री परिषद को पदच्युत करने का अधिकार नहीं है। यह कार्य केवल विधानसभा के ही द्वारा किया जा सकता है।

3. वित्त संबंधी कार्य (Vitt sambandhi Karya)

संविधान में स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया गया है कि वित्त विधेयक केवल विधानसभा में ही प्रस्तावित किए जा सकते हैं, विधानपरिषद में नहीं।

विधानसभा जब किसी वित्त विधेयक को पारित कर सिफारिशों के लिए विधानपरिषद के पास भेजती है, तो विधान परिषद 14 दिन तक वित्त विधेयक को अपने पास रोक सकती है। यदि वह 14 दिन के भीतर अपनी सिफारिशों सहित विधेयक विधानसभा को नहीं लौटा देती है तो वह विधेयक उस रूप में दोनों सदनों से पारित समझा जाता है जिस रूप में उसे विधानसभा में पारित किया था। यदि वित्त विधेयक के संबंध में विधानपरिषद कोई सिफारिशों करती है, तो उन्हें मानना या ना मानना विधानसभा की इच्छा पर निर्भर करता है

इस प्रकार विधान परिषद विधानसभा की तुलना में एक शक्तिहीन सदन है। सामान्यतया विधान परिषद को कम उपयोगी समझा जाता है। इसका प्रमाण यह है कि 1967 के पूर्व पंजाब और पश्चिम बंगाल में विधान परिषदों की व्यवस्था थी, लेकिन 1967 में इन राज्यों की विधानसभाओं में विधानपरिषद समाप्त करने का प्रस्ताव पारित किया और 1969 में इन दोनों राज्यों की विधानपरिषद में समाप्त कर दी गयीं। आंध्र विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर 1985 में आंध्र विधान परिषद और तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित प्रस्ताव के अनुसार 1986 में तमिलनाडु विधान परिषद समाप्त कर दी गयीं।

विधान परिषद के अस्तित्व के पक्ष में तर्क – उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे विशाल राज्यों में विधानपरिषद का अस्तित्व निश्चित रूप से अपना महत्व रखता है इसके अस्तित्व के पक्ष में प्रमुख तर्क हैं:

1. विधेयक को अधिकतम 4 महीने की अवधि तक रोके रखकर यह प्रथम सदन विधानसभा की मनमानी पर रोक लगाता है।

2. विधानसभा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होती है। विधानपरिषद अप्रत्यक्ष रूप से जिन वर्गों को प्रथम सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं होता वह द्वितीय सदन में प्रतिनिधित्व प्राप्त कर सकते हैं।

3. विधायक को 4 माह तक रोककर विधानपरिषद विधेयक पर जनमत जागृत करने का कार्य करती है।

अस्वीकरण(Disclemar)

दोस्तों हम आशा करते हैं कि आप लोगों ने इस आर्टिकल को अंदर तक पढ़ा होगा और जाना होगा विधान परिषद के अधिकार अथवा शक्तियां तथा कार्य के बारे में। दोस्तों इस आर्टिकल में बताई गई जानकारी हमने अपने शिक्षा के अनुभव के आधार पर दी है इसलिए आर्टिकल सही है। अगर आप सबको इसमें कोई मिस्टेक दिखाई पड़ता है, तो आप लोग कमेंट करके बता सकते हैं हम उसे सुधारने का प्रयत्न करेंगे।

Written by skinfo

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